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सरकार पर राम मन्दिर पर अध्यादेश लाने का दबाव क्यों?

सरकार पर राम मन्दिर पर अध्यादेश लाने का दबाव क्यों?

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, सरकार पर राम मन्दिर पर अध्यादेश लाने का दबाव भी बढ़ता जा रहा है। लेकिन मन्दिर पर अध्यादेश लाने के अपने ख़तरे भी हैं।

राम मन्दिर-बाबरी मसजिद मामले में सुनवाई जनवरी तक के लिए टलने की ख़बर आते ही आरएसएस की ओर से बयान आया है कि केन्द्र राम मन्दिर के लिए अध्यादेश लेकर आए। इससे पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत कह चुके हैं कि राम मन्दिर का निर्माण जल्द से जल्द होना चाहिए। देखना यह होगा कि क्या पीएम नरेन्द्र मोदी संघ की बात को टाल पाएँगे। 

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काम के दम पर सत्ता में वापसी का भरोसा नहीं

चुनाव से ठीक पहले राम मन्दिर के मुद्दे को उठाने से ऐसा लगता है कि संघ परिवार को इस बात का भरोसा नहीं है कि मोदी सरकार के काम के दम पर बीजेपी दुबारा सत्ता में आ पाएगी। इसीलिए वह राम मंदिर के जल्द निर्माण की बात कह रहा है। ऐसा इसलिए भी है कि संघ किसी भी क़ीमत पर सत्ता नहीं खोना चाहता क्योंकि ऐसा होने से भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का उसका सपना अधूरा रह जाएगा। इसलिए उसने बीजेपी पर अध्यादेश लाने के लिए दबाव बढ़ा दिया है।आगे बढ़ने से पहले जानें कि आख़िर भागवत ने इस मामले पर क्या कहा था। उन्होंने कहा - 

'अब यह मामला न्यायालय में चल रहा है लेकिन कितना लंबा चलेगा? इस मामले में राजनीति आ गई इसलिए मामला लम्बा हो गया। राम जन्मभूमि पर शीघ्र राम मन्दिर बनना चाहिए। इस प्रकरण को लंबा करने के लिए हुई राजनीति को खत्म होना चाहिए।'

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विपक्षी गठबंधन से डर

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी में हुए गठबंधन से प्रदेश में बीजेपी की सीटों पर बहुत असर पड़ने की सम्भावना है। इसका ट्रेलर इस साल हुए उपचुनावों में ही दिख गया है जब इस गठबंधन के कारण पार्टी राज्य में तीन-तीन लोकसभा सीटें हार गई। ऐसे में बीजेपी कोई ऐसा मुद्दा खोज रही है जो जाति में बँटे खेमाबंद वोटों को तोड़ सके। संघ परिवार के अनुसार राम मन्दिर ही ऐसा मुद्दा हो सकता है और इसीलिए वह मन्दिर बनवाने के लिए अध्यादेश लाने की बात कर रहा है।यह भी पढ़ें: राम जन्मभूमि बाबरी मसज़िद विवाद: कब क्या हुआ

संघ को यह भी लगता है कि अध्यादेश लाने के बाद विपक्षी दल इसका विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएँगे क्योंकि ऐसा करने से उन्हें अपने हिंदू वोटों को खोने का ख़तरा रहेगा। इसलिए सत्ता में वापसी करने के लिए राम मंदिर पर अध्यादेश लाना भाजपा के लिए रामबाण साबित हो सकता है।

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अध्यादेश लाने में पसोपेश

लेकिन यह रास्ता ख़तरों से भी भरा है। बीजेपी के लिए अध्यादेश लाना एक सीमा तक फ़ायदेमंद तो होगा मगर इससे जेडीयू जैसे कुछ सहयोगी दल एनडीए से अलग हो सकते हैं और बीजेपी अभी कोई सहयोगी खोने का ख़तरा नहीं उठा सकती। उसे नहीं पता कि अध्यादेश लाने का लोगों पर क्या असर होगा और कितने नए हिंदू वोटर उसकी तरफ़ आएँगे। यदि ज़्यादा वोटर नहीं आए और सहयोगी पार्टियों के समर्थकों के वोट चले गए तो पार्टी सीटों के मामले में भारी नुक़सान में रह सकती है। यह वैसा ही होगा कि चौबेजी छब्बेजी बनने गए मगर दुबेजी रह गए।

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