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गृह मंत्री बताएं, कहां भेजेंगे घुसपैठियों को?

गृह मंत्री बताएं, कहां भेजेंगे घुसपैठियों को?

भारतीय जनता पार्टी हर मंच से कहती रही है कि वह सत्ता में आने पर देश में अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर कर देगी। 

भारतीय जनता पार्टी हर मंच से कहती रही है कि वह सत्ता में आने पर देश में अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर कर देगी। बीजेपी के नेता इन्हें घुसपैठिया कहकर बुलाते हैं। केंद्र की सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया था। इस ख़बर में हम बात करेंगे कि बीजेपी और उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार इन लोगों के लिए क्या सोच रखती है और आख़िर वे इन लोगों को कहां, कैसे और किस देश में भेजेंगे। 

असम के दौरे पर गए बीजेपी अध्यक्ष और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने एक बार फिर से जोर देकर कहा है कि उनकी सरकार घुसपैठियों को चुन-चुनकर देश से बाहर करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शाह लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान लगभग सभी रैलियों में अवैध रूप से रह रहे लोगों को देश से बाहर करने की बात कहते रहे हैं। बीजेपी अध्यक्ष शाह तो इन्हें दीमक कहकर संबोधित कर चुके हैं। 

मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल में नागरिकता विधेयक लेकर आई थी और वह इसे लोकसभा में पास भी करवा चुकी थी लेकिन राज्यसभा में इसे पेश नहीं किया जा सका था। चुनाव से पहले पूरे पूर्वोत्तर में इस विधेयक का कड़ा विरोध हुआ था।

नागरिकता विधेयक के तहत बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान से असम में आने वाले ग़ैर मुसलिम, ख़ासकर हिंदू आप्रवासियों को नागरिकता देने की बात की। इसके पीछे बीजेपी का कहना था कि इन देशों में हिंदुओं समेत दूसरे अल्पसंख्यकों का काफ़ी उत्पीड़न होता है, जिसके कारण वे भागकर भारत में शरण लेते हैं और मानवीय आधार पर ऐसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता दी जानी चाहिए। 

इस विधेयक के तहत हिंदू, पारसी, सिख, जैन और ईसाई प्रवासियों को 6 साल भारत में रहने पर ही यहाँ की नागरिकता मिल जाएगी और इसके लिए उन्हें किसी दस्तावेज़ को दिखाने की ज़रूरत भी नहीं होगी।

मंशा पर उठे थे सवाल

इस विधेयक को लेकर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठे थे। तब यह सवाल पूछा गया था कि अगर भारत की चिंता अपने पड़ोसी देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अत्याचारों को लेकर है तो बिल में सिर्फ़ तीन पड़ोसी देशों की ही क्यों शामिल किया गया है और आख़िर इन अल्पसंख्यकों में मुसलमानों को शामिल क्यों नहीं किया गया है 

यह भी सवाल पूछा गया था कि क्या भारत की संवेदनशीलता केवल इन तीन देशों में उत्पीड़न झेल रहे (मुसलमान को छोड़कर) अल्पसंख्यकों के लिए ही है इसे लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठने लाज़िमी हैं। 

लोकसभा चुनाव से पहले नागरिकता विधेयक के विरोध में असम के कई जिलों में बीजेपी के दफ़्तरों को निशाना बनाया था। आंदोलनकारियों ने त्रिपुरा, मिज़ोरम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मेघालय में हिंसा की थी और बंद बुलाया था। 

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, बीजेपी का तर्क है कि नागरिकता विधेयक के क़ानून बनने के बाद पूर्वोत्तर विशेषकर असम में बाहर से आई ग़ैर मुसलिम आबादी की वजह से जनसंख्या संतुलन नहीं बिगड़ेगा।

शाह ने असम के दौरे में अनुच्छेद 370 को हटाये जाने का भी जिक्र किया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 371 से कोई छेड़छाड़ नहीं की जायेगी। लेकिन अमित शाह से मिज़ोरम के मुख्यमंत्री एन. ज़ोरमथंगा ने अपील की है कि वह पूर्वोत्तर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक से बाहर ही रखें। ज़ोरमथंगा ने कहा कि नागरिकता विधेयक बेहद ही संवेदनशील मुद्दा है और जो भी राजनीतिक दल इस विवादास्पद विधेयक का समर्थन कर रहे हैं वे आत्महत्या करने की कगार पर खड़े हैं। 

अप्रवासी नागरिकों का मसला उत्तर-पूर्व के राज्यों में लंबे समय से विवाद का मुद्दा बना हुआ है। 70 और 80 के दशक में इस विवाद ने काफ़ी उग्र रूप धारण कर लिया था। असम के लोगों का कहना है कि बाहर के लोगों के राज्य में आने से जनसंख्या संतुलन तो बिगड़ा ही है, उनकी संस्कृति और रोज़गार को भी भारी नुक़सान हुआ है। 

अब हाल ही में आई एनआरसी को लेकर बात करते हैं। असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों को बाहर निकालने का दंभ भरने वाली बीजेपी के लिए एनआरसी का मुद्दा गले की फांस बन चुका है। क्योंकि एनआरसी की फ़ाइनल सूची आने के बाद जो 19 लाख लोग इससे बाहर रह गए हैं, उनमें से अधिकांश हिंदू हैं और अब संघ परिवार का दबाव केंद्र सरकार पर है कि वह हिंदुओं को भारत में रहने देने के लिए जल्द नागरिकता विधेयक लेकर आए। संघ की कोशिश है कि नागरिकता विधेयक के जरिये एनआरसी से बाहर रह गए लोगों को राहत दी जा सकती है। लेकिन ऐसा करना आसान नहीं होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले की मॉनीटरिंग कर रहा है। 

अब आते हैं सबसे अहम सवाल पर। यह मान लीजिए कि बीजेपी, संघ परिवार के आनुषांगिक संगठन अगर सारे देश में एनआरसी को लागू कर देते हैं तो जो लोग इसमें शामिल होने से रह जाएंगे, उनका क्या होगा। इस बारे में सरकार के पास क्या विकल्प हैं। क्या एनआरसी से बाहर रह गए लोगों की हालत रोहिंग्या मुसलमानों की तरह हो जाएगी और वे दूसरे देश में दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होंगे। 

डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने के बाद से ही अमेरिका में आने वाले प्रवासियों को लेकर बेहद सख़्त हैं। ट्रंप ने चुनाव के दौरान अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए मैक्सिको से लगने वाली सीमा पर दीवार बनाने का वादा किया था। मैक्सिको और अमेरिका के बीच एक समझौता हुआ था, जिसमें ग़ैर क़ानूनी रूप से अमेरिका में घुसपैठ करने वाले आप्रवासियों के आने पर लगाम लगाने की बात कही गई थी। 

संघ, बीजेपी का जिस तरह का रवैया कथित रूप से बाहरी लोगों को लेकर है, उसे देखकर यह नहीं लगता कि वे इस मसले पर कोई नरम रुख अपनाएंगे। बावजूद इसके कि पूर्वोत्तर के लगभग सभी दल उसे नागरिकता विधेयक को लेकर चेता चुके हैं। सवाल यह है कि क्या एनआरसी से असम में घुसपैठियों की पहचान का लक्ष्य पूरा हो गया जवाब होगा नहीं क्योंकि जिन घुसपैठियों को बाहर करने की बात कही जा रही थी उनमें तो हज़ारों लोग ऐसे हैं जो बरसों से देश में रह रहे हैं और सेना में भी नौकरी कर चुके हैं। 

अब सवाल यह है कि क्या गृह मंत्री अमित शाह भी अमेरिका और म्यांमार की सरकारों जैसा क़दम उठाने के लिए भारत सरकार से कहेंगे। क्या वह इन्हें बांग्लादेश की सीमा पर छोड़ आएंगे और जबरन उनके देश में भेजेंगे, जबकि बांग्लादेश की सरकार ने स्पष्ट कहा है कि 1971 के बाद से उनके देश से कोई भी व्यक्ति भारत नहीं गया है। ऐसे में गृह मंत्री अमित शाह को यह तो बताना ही होगा कि आख़िर वह जिन्हें घुसपैठिये कहते हैं, उन्हें कहां भेजने वाले हैं। 

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