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एससी-एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ आंदोलन की चेतावनी

एससी-एसटी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ आंदोलन की चेतावनी

अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के सरकारी नौकरियों में और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ देश भर में आवाज़ उठने लगी है।

अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के सरकारी नौकरियों में और प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आये सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ देश भर में आवाज़ उठने लगी है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर जोरदार हमला बोला है। राहुल ने कहा है कि बीजेपी और संघ की विचारधारा आरक्षण के ख़िलाफ़ है। राहुल ने कहा, ‘बीजेपी और संघ एससी और एसटी समुदाय को तरक्की करते देखना नहीं चाहते। वे हमारे संस्थानों के ढांचे को तोड़ रहे हैं। मैं एससी, एसटी, ओबीसी और दलित समुदाय को बताना चाहता हूं कि हम नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत के आरक्षण को ख़त्म करने के सपने को पूरा नहीं देने होंगे।’ 

बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी इस मुद्दे पर आंदोलन की चेतावनी दी है। यादव ने ट्वीट कर कहा, ‘हम केंद्र की एनडीए सरकार को चुनौती देते हैं कि तुरंत सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के ख़िलाफ़ पुनर्विचार याचिका दायर करे या फिर आरक्षण को मूल अधिकार बनाने के लिए मौजूदा संसद सत्र में संविधान में संशोधन करे।अगर ऐसा नहीं होगा तो सड़क से लेकर संसद तक संग्राम होगा।’

लोक जनशक्ति पार्टी ने भी सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से असहमति जताई है और कहा है कि यह फ़ैसला पूना पैक्ट समझौते के ख़िलाफ़ है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद चिराग पासवान ने केंद्र सरकार से माँग की है कि इस संबंध में तुरंत क़दम उठाकर आरक्षण/पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था जिस तरीक़े से चल रही है, उसे उसी तरीक़े से चलने दिया जाए। लोक जनशक्ति पार्टी केंद्र सरकार में एनडीए की सहयोगी है और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राम विलास पासवान केंद्र में मंत्री हैं। 

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एल. नागेश्वर राव और हेमंत गुप्ता की बेंच ने एक ताज़ा फ़ैसले में कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं है कि राज्य सरकार आरक्षण देने को बाध्य नहीं है। ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है, जिसके आधार पर कोई व्यक्ति प्रमोशन में आरक्षण का दावा कर सके। न्यायालय कोई परमादेश नहीं जारी कर सकता है, जिसमें राज्य को आरक्षण देने का निर्देश दिया गया हो।”

क्या था मामला?

मामला यह था कि उत्तराखंड सरकार ने 5 सितंबर, 2012 को सरकारी सेवाओं के सभी पद अनुसूचित जाति एवं जनजाति को आरक्षण दिए बगैर भरने का फ़ैसला किया था। मामला न्यायालय में जाने पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने सरकार की अधिसूचना को खारिज कर दिया और सरकार को निर्देश दिए कि वह इन सरकारी नौकरियों की रिक्तियों में वर्गीकृत श्रेणी के मुताबिक़ आरक्षण कोटे का प्रावधान करे। उच्च न्यायालय का फ़ैसला बिल्कुल साफ था कि राज्य में अगर सरकारी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान है तो संबंधित वर्गों को आरक्षण मिलना चाहिए। सरकार ने प्रावधानों के मुताबिक़ आरक्षण नहीं दिया था। यह मामला उच्चतम न्यायालय में आया तो शीर्ष न्यायालय ने यह फ़ैसला दिया कि अनुच्छेद 16 राज्य सरकार को बाध्य नहीं करता है कि वह आरक्षण मुहैया कराए। 

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