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टीपू सुल्तान की प्रतिमा लगाने के ख़िलाफ़ आंध्र में बीजेपी का प्रदर्शन

टीपू सुल्तान की प्रतिमा लगाने के ख़िलाफ़ आंध्र में बीजेपी का प्रदर्शन

मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान को लेकर कर्नाटक से शुरू हुआ विवाद अब आंध्र प्रदेश पहुंच गया है।

मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान को लेकर कर्नाटक से शुरू हुआ विवाद अब आंध्र प्रदेश पहुंच गया है। बीजेपी ने आंध्र प्रदेश में टीपू सुल्तान की प्रतिमा को लगाने का विरोध किया है। पार्टी के कार्यकर्ताओं ने मंगलवार को प्रदेश अध्यक्ष सोमू वीरराजू के नेतृत्व में प्रदातुर कस्बे में धरना दिया। 

आंध्र प्रदेश में सरकार चला रही वाईएसआर कांग्रेस के विधायक आर. शिवप्रसाद रेड्डी ने पिछले महीने एलान किया था कि वे प्रदातुर कस्बे में टीपू सुल्तान की प्रतिमा लगाएंगे। तभी से बीजेपी इसका विरोध करने पर आमादा थी। प्रदातुर कस्बा कडापा जिले में पड़ता है जो मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी का गृह जिला है। 

प्रदर्शन के दौरान बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने उस जगह पर जाने की कोशिश की जहां पर टीपू सुल्तान की प्रतिमा लगाई जानी है लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां पहुंचने से रोक दिया। 

बीजेपी के नेताओं ने प्रदातुर के विधायक आर. शिवप्रसाद रेड्डी के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी की और यहां के नगर निगम से मांग की कि वह टीप सुल्तान की प्रतिमा लगाने के प्रस्ताव को वापस ले। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सोमू वीरराजू ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि वाईएसआर सरकार का यह क़दम हिंदुओं के ख़िलाफ़ है। राज्य के बीजेपी प्रभारी सुनील देवधर ने मुख्यमंत्री पर तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया। 

देखिए, टीपू सुल्तान पर वीडियो- 

कर्नाटक में हो चुका है विवाद

जुलाई, 2019 में कर्नाटक की सत्ता में आने के तुरंत बाद येदियुरप्पा सरकार ने टीपू सुल्तान के जयंती समारोह को ख़त्म कर दिया था। यह एक वार्षिक सरकारी कार्यक्रम था जिसको सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किया गया था। लेकिन बीजेपी इसका विरोध कर रही थी।

येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री रहते हुए कहा था कि उनकी सरकार माध्यमिक स्कूलों के इतिहास की किताब से टीपू सुल्तान के पाठ को हटाएगी। 

श्रंगेरी मठ का पुनर्निर्माण

इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जो ये साबित करते हैं कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं की मदद की। उनके मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। उसके दरबार में लगभग सारे उच्च अधिकारी हिंदू ब्राह्मण थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है श्रंगेरी के मठ का पुनर्निर्माण।

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श्रंगेरी के मठ की हिंदू धर्म में बड़ी मान्यता है। आदि शंकराचार्य ने 800 वीं शताब्दी में जिन चार हिंदू पीठों की स्थापना की थी, श्रंगेरी का मठ उसमें से एक था। 1790 के आसपास मराठा सेना ने इस मठ को तहस-नहस कर दिया था। मूर्ति को तोड़ दिया था और सारा चढ़ावा लूट लिया था। 

मठ के स्वामी को भागकर उडूपी में शरण लेनी पड़ी थी। स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय ने तब मैसूर के राजा टीपू सुल्तान से मदद की गुहार लगायी थी। दोनों के बीच तक़रीबन तीस चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। ये पत्र आज भी श्रंगेरी मठ के संग्रहालय में पड़े हैं।

टीपू ने एक चिट्ठी में स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय को लिखकर जवाब भेजा था कि जिन लोगों ने इस पवित्र स्थान के साथ पाप किया है उन्हें जल्दी ही उनके कुकर्मों की सजा मिलेगी। गुरुओं के साथ विश्वासघात का नतीजा यह होगा कि उनका पूरा परिवार बर्बाद हो जायेगा।

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प्रदर्शन करते बीजेपी कार्यकर्ता।

येदियुरप्पा ने पहनी थी टीपू पगड़ी

इतिहास से इतर अगर देखें तो भी साफ़ दिखता है कि बीजेपी के नेताओं का कुछ साल पहले तक टीपू को देखने का नज़रिया अलग था। निवर्तमान मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने जब बीजेपी छोड़ी थी तो वह टीपू के स्मारक पर श्रद्धा सुमन चढ़ाने गये थे। टीपू एक ख़ास तरीक़े की पगड़ी पहनता था और तलवार रखता था। येदिरप्पा ने ऐसी ही पगड़ी पहनी थी और तलवार भी रखी थी। 

शेट्टार ने भी की थी तारीफ़

इतना ही नहीं, बीजेपी के एक और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार की भी ऐसी तसवीरें हैं जिनमें वह टीपू की पगड़ी पहने नज़र आते हैं। शेट्टार ने तो टीपू की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की थी। 

‘क्रूसेडर फ़ॉर चेंज’ नाम की एक पत्रिका में शेट्टार ने लिखा था- “आधुनिक राज्य के उनके विचार, राजकाज चलाने का उनका तरीक़ा, उनकी सैनिक दक्षता, सुधार को लेकर उनका उत्साह, उन्हें एक ऐसे नायक के तौर पर स्थापित करता है जो अपने समय से बहुत आगे था...और इतिहास में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।’’

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2017 में कर्नाटक विधानसभा के संयुक्त सत्र में टीपू की जी भरकर तारीफ़ की थी। उन्होंने कहा था, “अंग्रेज़ों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। वह विकास कार्यों में भी अग्रणी थे। साथ ही युद्ध में मैसूर राकेट के इस्तेमाल में भी उनका कोई सानी नहीं था।” 

बीजेपी के नेताओं ने कोविंद के भाषण पर लीपोपोती करने की कोशिश की थी। बीजेपी की तरफ़ से कहा गया था कि वह कांग्रेस सरकार का लिखा हुआ भाषण पढ़ रहे थे। जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या ने इसके जवाब में कहा था कि कोविंद ने अपना लिखा भाषण पढ़ा था।

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