तीन तलाक़ के विधयक को लोकसभा ने दुबारा पास कर दिया है। यह एक गुनाह बेलज्ज़त है, क्योंकि इसे लोकसभा के आधे सदस्यों का भी समर्थन नहीं मिला। सिर्फ 246 सदस्यों ने इसके पक्ष में वोट दिया। ज्यादातर दलों ने इसका बहिष्कार किया। पिछले साल भी इस विधेयक को इसी तरह पास कर दिया गया था, लेकिन वह राज्यसभा में पिट गया था। हमारी सर्वज्ञ सरकार को कुछ अकल आई और उसने इसमें कई जरूरी संशोधन कर दिए। अब भी यह विधेयक तीन टांग की कुर्सी बना हुआ है।
हमारे सर्वज्ञजी की सरकार की क़ाबिलियत का हाल यह है कि वह जो भी शेरवानी बनाती है, वह तब तक पहनने लायक नहीं होती, जब तक कि उसमें दर्जनों थेगले न लग जाएं। तीन तलाक़ जैसा हाल नोटबंदी, जीएसटी और फ़र्जिकल स्ट्राइक का पहले ही हम देख चुके हैं।
सर्वज्ञ है सरकार
इस तीन तलाक़ क़ानून में यह प्रावधान अभी तक बना हुआ है कि जिस मियाँ ने अपनी बीवी को तीन तलाक़ बोला, वह तुरंत जेल की हवा खाएगा। लेकिन सर्वज्ञजी से पूछिए कि वह बीवी और वे बच्चे क्या खाएँगे उनके भरण-पोषण की इस क़ानून में क्या व्यवस्था है और तीन साल की जेल इसका क्या मतलब है मामला है, दीवानी और सज़ा है, फ़ौजदारी ! क्या खूब तीन तलाक़ ग़ैर-क़ानूनी है, इसीलिए मियां को बीवी का मियां ही बने रहना पड़ेगा। लेकिन बीवी घर में रहेगी और मियां जेल में ! यह क़ानून है या क़ानून का मज़ाक
इसका मतलब यह नहीं कि तीन तलाक़ की कुप्रथा ख़त्म नहीं होनी चाहिए। ज़रूर होनी चाहिए। मोदी सरकार को बधाई कि उसने यह पहल की। लेकिन असली सवाल यह है कि यह इतने पुण्य का काम है और इस पर संसद में दंगल हो रहा है क्यों हो रहा है सर्वसम्मति क्यों नहीं हो रही है
सरकार तीन टांग की कुर्सी पर बैठकर दो निशाने लगा रही है। एक तो वह मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति बटोरना चाहती है और दूसरा, अपने हिंदू वोटरों को वह यह बताना चाहती है कि देखो, हमने मुसलमानों को कैसे तान दिया है।
इसीलिए जब पहली बार यह विधेयक गिरा तो सरकार ने अध्यादेश जारी कर दिया था। उसने जानबूझ कर साल भर खो दिया। इस बीच यह विधेयक यदि संसद की प्रवर समिति के पास चला जाता तो यह सचमुच एक सार्थक कानून बन जाता और यह सर्वसम्मति से पारित हो जाता। सरकार की पगड़ी में एक नया मोरपंख लग जाता।
www.drvaidik.in से साभार