हाल ही में कानून मंत्री ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने जजों के चयन के लिए निर्णय लेने वाली समिति में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल करने का सुझाव दिया था। विपक्ष ने इसे सरकार पर न्यायपालिका पर "कब्जा" करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस ने कहा कि सरकार स्वतंत्र संवैधानिक संस्थानों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस का कहना है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को रद्द करने और केशवानंद भारती मामले के संदर्भ में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ की सुप्रीम कोर्ट की आलोचना तथा कानून मंत्री रिजिजू का न्यायपालिका पर लगातार हमले का उद्देश्य न्यायपालिका को डराना है। कांग्रेस संचार प्रमुख जयराम रमेश ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कॉलिजियम में सुधार की जरूरत है लेकिन सरकार न्यायपालिका को अपने अधीन करना चाहती है। अगर ऐसा होता है तो यह स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए जहर की गोली के समान है।
कांग्रेस के साथ कई और विपक्षी दलों ने इस मसले पर सरकार की आलोचना की है। रिजिजू के सुझाव को राष्ट्रीय जनता दल (राजद) चौंकाने वाला बताया है। राजद नेता और राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा ने कहा कि "यह बिल्कुल चौंकाने वाला है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विचार को व्यापक रूप से कमजोर करने वाला है और संविधान द्वारा स्थापित शक्ति संतुलन को अस्थिर कर देगा। क्या सरकार 'प्रतिबद्ध न्यायपालिका' के प्रलोभन का विरोध करने में असमर्थ है।”
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इसे खतरनाक कदम बताया। उन्होंने कहा - यह बेहद खतरनाक है। न्यायिक नियुक्तियों में बिल्कुल भी सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
कॉलिजियम प्रणाली 1993 और 1998 में क्रमशः दूसरे और तीसरे जजेस केस के बाद अस्तित्व में आई थी। उसके बाद भी NJAC कानून लाकर इसे निष्प्रभावी करने की कोशिश की, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया था।