बीजेपी की जीत में सोशल मीडिया का ज़्यादा रोल नहीं, रिपोर्ट में दावा
लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस पर बीजेपी की जीत में सोशल मीडिया की ज़्यादा भूमिका नहीं रही है। सेंटर फ़ॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसायटीज (सीएसडीएस) के सर्वे में यह बात सामने आई है। जबकि लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत मिलने के बाद यह माना जा रहा था कि बीजेपी की जीत में सोशल मीडिया ने अहम रोल निभाया है। सीएसडीएस की रिपोर्ट यह बताती है कि 2014 के बाद से कांग्रेस पर बीजेपी के वोट शेयर की बढ़त सोशल मीडिया यूज़र्स के बीच कम हुई है जबकि सोशल मीडिया का इस्तेमाल न करने वाले यूज़र्स के बीच यह बढ़ी है।
मंगलवार को इस स्टडी की रिपोर्ट को जारी करते हुए सीएसडीएस के निदेशक संजय कुमार ने कहा, ‘इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद कई लोग चौंक जाएँगे क्योंकि यह शहरी मतदाताओं के बारे में नहीं है। यह राष्ट्रीय स्तर पर लिए गए नमूने हैं।’ उन्होंने बताया कि देश भर के 211 लोकसभा क्षेत्रों में 24,236 वोटरों से राय ली गई और फिर इस रिपोर्ट को तैयार किया गया।
रिपोर्ट के मुताबिक़, 2014 के मुक़ाबले, बीजेपी की ऐसे लोगों में लोकप्रियता बढ़ी है, जो लोग फ़ेसबुक का इस्तेमाल नहीं करते। 2014 में यह आंकड़ा 30 फ़ीसदी था जो 2019 में बढ़कर 36 फ़ीसदी हो गया और जो लोग हर दिन फ़ेसबुक यूज़ करते हैं, ऐसे लोगों के बीच बीजेपी की लोकप्रियता घटी है। इसके उलट, हर दिन फ़ेसबुक यूज़ करने वालों के बीच कांग्रेस की लोकप्रियता 2014 के मुक़ाबले बढ़ी है। रिपोर्ट के मुताबिक़, 2014 में यह 16 फ़ीसदी थी जबकि 2019 में बढ़कर 20 फ़ीसदी हो गई और दूसरी तरफ़ फ़ेसबुक यूज नहीं करने वालों के बीच कांग्रेस की लोकप्रियता घटी है।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि जिन जगहों पर बीजेपी की सोशल मीडिया पर कम घुसपैठ थी, वहाँ उसे आश्चर्यजनक रूप से बढ़त मिली है, ऐसे राज्यों में पूर्व के राज्य शामिल हैं। इसके उलट, ऐसी जगहों पर जहाँ बीजेपी की सोशल मीडिया पर ज़्यादा घुसपैठ थी वहाँ उसे अभी बड़ी सफ़लता मिलना बाक़ी है, इन राज्यों में दक्षिण के राज्य शामिल हैं।
दूसरी तरफ़ देखें तो, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को मिली सफलता का सोशल मीडिया पर मौजूद तीन समूहों पर प्रभाव साफ दिखाई देता है। इसमें पहला समूह है, सवर्ण वोटर्स, जिनमें सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने वालों में से 65 फ़ीसदी वोटर्स ने एनडीए को वोट दिया और इसका कम इस्तेमाल करने वालों में से 57 फ़ीसदी लोगों ने। इसी तरह मुसलमानों में सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने वाले 15 फ़ीसदी लोगों ने एनडीए को वोट दिया जबकि इस्तेमाल नहीं करने वाले 9 फ़ीसदी लोगों ने और अनूसचित जनजाति में ऐसे लोगों को आंकड़ा 57 फ़ीसदी और 44 फ़ीसदी रहा। इसी तरह सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने वाले मुसलमानों में से 39 फ़ीसदी ने यूपीए को वोट दिया जबकि इस्तेमाल न करने वालों में से 45 फ़ीसदी ने। अनूसचित जनजाति में यह आंकड़ा 26 से 38 फ़ीसदी रहा। कॉलेज जाने वालों में से सोशल मीडिया पर एनडीए से ज़्यादा यूपीए का समर्थन किया।
रिपोर्ट यह भी बताती है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों में मुसलमान सवर्ण हिंदुओं के बाद दूसरे नंबर पर हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग से आगे हैं।
सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने वालों के बीच बीजेपी का वोट शेयर 43 फ़ीसदी रहा। रिपोर्ट के मुताबिक़, इससे यह संकेत मिलता है कि अगर चुनाव में सोशल मीडिया नहीं भी होता तो भी बीजेपी चुनाव जीत सकती थी। बीजेपी को चुनाव में 37.4 फ़ीसदी वोट मिले थे।
कांग्रेस ने सोशल मीडिया यूज़र्स के बीच बेहतर प्रदर्शन किया और उसे इस प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करने वाले 21 फ़ीसदी लोगों का साथ मिला और इस्तेमाल नहीं करने वालों का 19 फ़ीसदी। पार्टी को लोकसभा चुनाव में 19 फ़ीसदी वोट मिले थे।सीएसडीएस की रिपोर्ट यह भी बताती है कि बीजेपी अख़बार पढ़ने वाले लोगों में से सबसे ज़्यादा 41 फ़ीसदी लोगों की पसंद है जबकि कांग्रेस का प्रदर्शन ऐसे लोगों के बीच ख़राब रहा है।
रिपोर्ट कहती है कि सोशल मीडिया यूज़र्स के बीच ऐसे लोग जो अपने राजनीतिक विचारों को हर दिन व्यक्त करते हैं, उनमें से आधे लोगों ने एनडीए को वोट दिया है और एक-चौथाई लोगों ने यूपीए को।
सीएसडीएस की रिपोर्ट यह भी बताती है कि कांग्रेस की ओर से दिया गया नारा ‘चौकीदार चोर है’ बीजेपी के नारे ‘मैं भी चौकीदार’ से थोड़ा ज़्यादा असरदार रहा। लेकिन कांग्रेस की ओर से प्रचारित की गई ‘न्याय योजना’ सोशल मीडिया का इस्तेमाल न करने वाले लोगों में से सिर्फ़ आधे लोगों तक ही पहुँच पायी और सोशल मीडिया का ज़्यादा इस्तेमाल करने वालों में तीन-चौथाई से थोड़े ज़्यादा लोगों तक।
सोशल मीडिया यूज़र्स में से तीन-चौथाई लोग इस बात का विश्वास करते हैं कि भारत में सभी धर्म समान हैं, लेकिन एक छठा हिस्सा यह मानता है कि भारत केवल हिंदुओं का देश है। इस रिपोर्ट में एक और बात यह देखने को मिली कि राजनीतिक ख़बरों के लिए लोग अभी भी सोशल मीडिया से ज़्यादा टेलीविजन और न्यूज़ पेपर्स पर भरोसा करते हैं।