केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने का भारतीय जनसंघ से लेकर बीजेपी तक की राजनीतिक यात्रा का देश की जनता से वादा रहा है। उन्होंने टाइम्स नाउ की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि बीजेपी यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने के लिए अडिग है लेकिन ऐसा वह तय प्रक्रियाओं का पालन करके और लोकतांत्रिक चर्चा के जरिये ही करेगी।
शाह ने कहा कि संविधान सभा ने भी देशभर के विधान मंडलों और संसद को यह सलाह दी थी कि जब भी सही समय आए देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड आना चाहिए। शाह ने कहा कि किसी भी पंथनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए धर्म के आधार पर कानून नहीं होना चाहिए।
बताना होगा कि गुजरात चुनाव का एलान होने से ठीक पहले पिछले महीने राज्य की बीजेपी सरकार ने समान नागरिक संहिता को लेकर कमेटी बनाए जाने का एलान किया था। गुजरात से पहले उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने का एलान किया था।
जबकि गोवा इस संबंध में कानून बना चुका है। गोवा में इससे पहले 19वीं सदी का पुर्तगाली नागरिक संहिता का क़ानून था जिसे 1961 में गोवा के भारत में शामिल होने के बाद भी समाप्त नहीं किया गया था।
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह अगर सत्ता में आई तो समान नागरिक संहिता को लागू करेगी। बीजेपी के एजेंडे में राम मंदिर, धारा 370 के साथ ही समान नागरिक संहिता भी प्रमुख मुद्दा रहा है। राम मंदिर और धारा 370 पर सरकार तेजी से आगे बढ़ चुकी है लेकिन समान नागरिक संहिता पर वह सुस्त दिखाई देती है।
अमित शाह ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों ने संविधान सभा की सलाह को भुला दिया और बीजेपी के अलावा कोई भी राजनीतिक दल यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष में नहीं है।
एक सवाल के जवाब में शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने और यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने की तुलना नहीं की जा सकती है। उन्होंने कहा कि 2024 तक यह संभव है कि कुछ राज्य स्वयं यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करें। लेकिन अगर तब तक ऐसा नहीं हुआ तो 2024 में जब हम सत्ता में वापस आएंगे, फिर हम इसे लागू करेंगे।
संविधान का अनुच्छेद 44
समान नागरिक संहिता की बात भारत के संविधान में कही गई है। संविधान का अनुच्छेद 44 समान नागरिक संहिता को अनिवार्य करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्य भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करेगा। यहां राज्य से मतलब भारत की सरकार, भारत की संसद और सभी राज्यों की सरकारों से है। इसका मतलब यह है कि राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही समान नागरिक संहिता का क़ानून ला सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2019 में केंद्र सरकार की यह कहकर आलोचना की थी कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के लागू होने के 63 साल बीत जाने के बाद भी संविधान के अनुच्छेद 44 की अनदेखी की गई है और समान नागरिक संहिता लागू करने की कोशिश नहीं की गई है।
क्या है समान नागरिक संहिता?
समान नागरिक संहिता से मतलब है कि शादी, तलाक़, गोद लेने, विरासत और उत्तराधिकार से जुड़े मामलों में देश के सभी लोगों के लिए एक समान क़ानून होंगे चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हों। ताज़ा सूरत-ए-हाल यह है कि इन सभी मामलों के लिए अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग क़ानून हैं और समान नागरिक संहिता के बन जाने से ये सभी अलग-अलग पर्सनल लॉ ख़त्म हो जाएंगे।
इन पर्सनल लॉ में हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, भारतीय तलाक़ अधिनियम, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम शामिल हैं। मुसलिम पर्सनल लॉ को संहिताबद्ध नहीं किया गया है और यह उनकी धार्मिक पुस्तकों पर आधारित है।
समान नागरिक संहिता का समर्थन करने वाले नेताओं का कहना है कि इसके लागू हो जाने के बाद देश में सभी लोगों पर उनके धर्म, लिंग से हटकर एक समान कानून लागू होगा। लेकिन ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने समान नागरिक संहिता को असंवैधानिक और अल्पसंख्यकों के खिलाफ बताया है।
जमीयत ने किया था खारिज
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी समान नागरिक संहिता को खारिज कर दिया था। मई में जमीयत-उलेमा-ए हिंद की एक बड़ी बैठक में कहा गया था कि यूनिफॉर्म सिविल कोड मुसलमानों की शरीयत में दखलंदाजी है और मुसलमान इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे।
जबकि शिया बोर्ड ने कहा था कि समान नागरिक संहिता का पूरा ड्राफ्ट सार्वजनिक किया जाए, ताकि मुसलमान भी इस पर चर्चा कर सकें और अपनी राय दे सकें।
उत्तराखंड की स्थिति
विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की घोषणा की गई थी। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक समिति बनाई और इससे छह महीने के भीतर रिपोर्ट मांगी। इस समिति ने 8 सितंबर को एक वेबसाइट लॉन्च कर जनता से इस पर सुझाव मांगे। समिति को साढ़े तीन लाख से ज्यादा सुझाव मिल चुके हैं। समिति ने कई धार्मिक संगठनों से संपर्क साधा है। कमेटी अभी चार महीने तक सुझाव लेगी।
इस साल अप्रैल में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी समान नागरिक संहिता लाने की बात कही थी। लेकिन अभी तक इस संबंध में कोई ठोस पहले सरकार की ओर से नहीं हुई है। समझा जाता है कि यूपी को उत्तराखंड वाली कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार है।