छठ पूजा: चुनावी रैलियों में कोरोना को क्यों भूल जाती है बीजेपी?
बिहार विधानसभा चुनाव और देशभर में हुए उपचुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 अक्टूबर को राष्ट्र के नाम संबोधन में बताया था कि देश ‘संभली हुई स्थिति’ में है। 20 नवंबर आते-आते स्थिति बदल चुकी है। दिल्ली में दोबारा लॉकडाउन पर विचार हो रहा है। नदी घाटों पर छठ पर्व मनाने से रोकते हुए दिल्ली हाई कोर्ट कह रहा है कि जिन्दगी रहेगी तो छठ बाद में भी मना लेंगे।
बीते एक महीने में बिहार विधानसभा चुनाव और देशभर में उपचुनाव हुए हैं। हां, ‘संभली हुई स्थिति’ के बीच कोरोना से किसी डर या खौफ के बगैर ये चुनाव हुए हैं। चुनाव खत्म होने, विजय उत्सव मना लेने और बिहार में सरकार बन जाने व मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार के बच जाने के बाद अब कोरोना का खौफ देश को महसूस कराया जा रहा है।
ताज़ा हालात में गृह मंत्रालय दिल्ली सरकार को ‘सहयोग’ कर रहा है और दिल्ली सरकार ‘भीगी बिल्ली’ बनी दिख रही है। ‘संभली हुई स्थिति’ कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी चुप हैं।
कोरोना ‘वर्चुअल’, रैली रियल
नवंबर में हुए चुनावों से पहले वर्चुअल रैलियां हो रही थीं क्योंकि कोरोना का संक्रमण वास्तविक और खौफनाक था। अचानक वास्तविक रैलियां होने लगीं और कोरोना का संक्रमण वर्चुअल मान लिया गया और वह भी जबरिया बगैर किसी तर्क के।
बातों से पलटते मोदी जी
सोशल डिस्टेंसिंग की ऐसी-तैसी हर रैली में हुई- क्या विपक्ष, क्या सत्ता पक्ष। मगर, उल्लेखनीय तो प्रधानमंत्री की रैली रहेगी क्योंकि कोरोना रोकने या फैलाने दोनों के लिए अंतिम रूप से जिम्मेदार प्रधानमंत्री ही हैं। प्रधानमंत्री आदर्श भी हैं और आदर्शों को सामने लेकर आते रहे हैं।
मोदी ने कहा है कि ‘जान है तो जहान है’ तो कभी यह कहकर पलट भी गये हैं कि ‘जान भी जहान भी’। कभी वे ‘दो गज दूरी मास्क है जरूरी’ का नारा बुलंद करते हैं तो चुनावी रैली करते वक्त इसे भूल भी जाते हैं। उमड़ी भीड़ एक-दूसरे पर गिरती-पड़ती उन्हें सुनती रहती है। मगर, वे इसकी अनदेखी कर देते हैं।
हरामखोर!, क्या मतलब है तिवारी जी
दिल्ली में नदी घाटों पर छठ पूजा पर रोक पर मनोज तिवारी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को ‘हरामखोर’ बता रहे हैं। उनका कहना है कि वे केंद्र से अनुमति का ‘ड्रामा’ कर रहे हैं जबकि शराब की दुकानें वे बगैर केंद्र की अनुमति के खोल चुके हैं। हालांकि मनोज तिवारी की बात तथ्यात्मक रूप से ग़लत है क्योंकि शराब की दुकानें खोलने की गाइडलाइन केंद्र सरकार ने जारी की थी जिसके आलोक में प्रदेश सरकार ने निर्णय लिया था, फिर भी मनोज तिवारी से पूछा जा सकता है कि तिवारी जी 11 नवंबर की विजयोत्सव रैली में तो आप भी थे जो बीजेपी मुख्यालय में हुई थी।
प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्री समेत बीजेपी के तमाम बड़े नेता मौजूद थे। बराती-सराती, आयोजक-मेहमान सब आप ही लोग थे। मगर, तब कहां चली गयी थी सोशल डिस्टेंसिंग कहां छूट गया था वो ‘दो गज की दूरी मास्क है ज़रूरी’ वाला ज्ञान ‘हरामखोर’ की परिभाषा मनोज तिवारी जी को बतानी पड़ेगी।
संक्रमण की चपेट में नेता
बीजेपी के बिहार प्रभारी देवेंद्र फडणवीस, सुशील मोदी, शाहनवाज हुसैन, राजीव प्रताप रूडी, बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे, सांसद अजय निषाद, बीजेपी महासचिव सौदान सिंह, सांसद विजय मांझी समेत बीजेपी नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जो बताती है कि बिहार में चुनाव के दौरान बड़ी संख्या में बीजेपी नेता कोरोना संक्रमित हुए।
कांग्रेस की ओर से भी बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल, प्रेमचंद्र मिश्रा, कैप्टन अजय सिंह यादव समेत बड़ी संख्या में नेता कोरोना संक्रमित हुए। जेडीयू, आरजेडी, लेफ्ट और दूसरे दलों के भी विधायक, सांसद और पदाधिकारी इससे बच नहीं सके।
तेजस्वी यादव नहीं चाहते थे कि कोरोना के दौरान चुनाव हो, मगर वे इस बात पर जोर नहीं दे सके क्योंकि उन्हें ‘चुनाव से डरने वाला नेता’ करार दिया जाने लगा था। एक के बाद एक नेता कोरोना संक्रमित होते रहे मगर उनके लिए ‘निर्भीक’ दिखना ज़रूरी था।
बीजेपी की विजयोत्सव रैली
चुनाव के दौरान नेताओं को निर्भीक देखकर कार्यकर्ता भी निर्भीक हो गए। दिल्ली में बीजेपी मुख्यालय में हुई विजयोत्सव रैली का नजारा उसी का उदाहरण है। मगर, हालात अब वास्तव में देश को डरा रहे हैं। इस बीच छठ पर्व पर कोरोना का संक्रमण बेकाबू न हो जाए, इसके लिए महाराष्ट्र, बिहार, झारखण्ड और दिल्ली की सरकारों ने प्रतिबंधात्मक दिशा-निर्देश जारी कर दिए।
मगर, बीजेपी सभी गैर बीजेपी सरकारों के फैसले के विरोध में उतर आयी। झारखण्ड और महाराष्ट्र की सरकारों को गाइडलाइन वापस लेने पड़े। जबकि, बिहार में 60 साल से ऊपर के बुजुर्ग और 10 साल से नीचे के बच्चों को नदी घाट पर नहीं जाने के निर्देश के साथ ही घर पर ही छठ मनाने की हिदायत जारी कर दी गयी।
फिर दोहरे मापदंड
मनोज तिवारी जैसे नेताओं को होली की याद नहीं आयी जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में होली त्योहार से दूर रहने की बात कहते हुए चिकित्सीय परामर्श साझा किया था। तब बीजेपी नेता घूम-घूम कर होली मिलन से दूर रहने की जरूरत बता रहे थे। यह बात तब की है जब 10 मार्च तक देश में 50 से ज्यादा कोरोना के मरीज नहीं थे।
उसी दिन ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने साथी विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ रहे थे। लिहाजा कोरोना से बचाव के लिए लॉकडाउन की जरूरत से प्रधानमंत्री आंखें मूंदे रहे। देश 23 मार्च की रात्रि 12 बजे से लॉकडाउन में तब गया जब शिवराज सिंह ने उसी दिन मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली।
अमरनाथ यात्रा, चार धाम यात्रा समेत देशभर के मंदिरों में कपाट तक बंद रहे। वैसे, अमरनाथ यात्रा तो कश्मीर में धारा 370 हटाने जैसे राजनीतिक कारणों से भी बंद कर दी जाती है तब भी मनोज तिवारी और दूसरे हिन्दूवादी नेता भी चूं तक आवाज़ नहीं निकालते। ‘मंदिर बंद मदिरा चालू’ का नारा वहीं बुलंद होता है जहां बीजेपी की सरकार नहीं हो वरना शराब की दुकानें खोलने की गाइलाइन तो केंद्र सरकार ने तय की थी। यूपी में मदिरा की दुकानें मंदिर से पहले खुली थीं।
योगी आदित्यनाथ इस स्थिति का बेजा फायदा भी उठाते देखे गये जब उन्होंने उत्तर प्रदेश में शुक्रवार को ईद की नमाज रोक दी, मगर शनिवार-रविवार को राखी के त्योहार के लिए कोरोना के दौरान नियमित साप्ताहिक बंदी के एलान को भी ढीला कर दिया।
मोदी जी से सवाल
कोई नियम नहीं होना ही कोरोना काल का नियम बन चुका है। छठ त्योहार पर कोरोना की गाइडलाइन की जरूरत महसूस हुई लेकिन चुनाव कराते वक्त पहले से तय गाइडलाइन को मानना भी जरूरी नहीं समझा गया। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंखों के सामने ‘दो गज दूरी मास्क है जरूरी’ की धज्जियां उड़ेंगी तो किस मुंह से वे दूसरे को नसीहत दे सकते हैं!
जब एक मौके पर कोरोना के लिए नियम नहीं हैं तो किसी और मौके पर इसे बाध्यकारी बनाने की नैतिकता कैसे पैदा हो सकती है। मनोज तिवारी जी। कोरोना बढ़ने के लिए दिल्ली की लूली-लंगड़ी सरकार जिम्मेदार नहीं है। जिम्मेदार है ‘मजबूत’ सरकार। और, हां दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भी- जो कोरोना संक्रमण और इस कारण सवा लाख लोगों की मौत को भूलकर विजय का उत्सव मनाती है।