बंगाल में प्रतीकों की राजनीति तेज़, अब बीजेपी कहेगी ‘जय माँ काली’
‘बाहरी लोगों’ और ‘ग़ैर-बंगालियों’ की पार्टी होने के आरोपों की काट निकालने के लिए भारतीय जनता पार्टी की पश्चिम बंगाल ईकाई ने अब ‘जय श्री राम’ के साथ ‘जय माँ काली’ का नारा भी अपना लिया है। प्रतीकों की राजनीति के खेल में पश्चिम बंगाल में अब यह होड़ लग गई है कि कौन अधिक बंगाली है और कौन बंग संस्कृति को लेकर अधिक सजग है। बीजेपी ने मुसलिम तुष्टीकरण के आरोपों को लेकर जिस तरह ममता बनर्जी की घेराबंदी की और उन्होंने उसके जवाब में ‘बंगालीपन’ का कार्ड खेला, उससे तिलमिलाई बीजेपी अब ‘जय श्री राम’ को थोड़ा पीछे खिसका कर ‘जय मां काली’ को सामने ला रही है।
'जय श्री राम!'
ऐसे दो मौके आए जब बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री को चिढ़ाने के लिए उनके बगल से गुजरते हुए ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए। इस पर वह गुस्से में गाड़ी से बाहर निकलीं और उन्होंने उन लड़कों को डाँट लगाई। इसके पीछे ममता बनर्जी का स्वभाव है, जिसमें तुनकमिजाजी और बग़ैर सोचे समझे कुछ भी बोलने की आदत है, पर बीजेपी ने इसे हिन्दुत्व से जोड़ दिया। उसने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप मढ़ा। राज्य बीजेपी इस तरह की दो घटनाओं के वीडियो बनवा कर सोशल मीडिया पर वायरल करा रही है।#WATCH North 24 Parganas: West Bengal CM Mamata Banerjee gets off her car and confronts people chanting 'Jai Shri Ram' slogans, Banerjee says'These are all outsiders and BJP people, they are criminals and were abusing me. They are not from Bengal.' pic.twitter.com/haGjQmQYlv
— ANI (@ANI) May 30, 2019
तृणमूल कांग्रेस ने इस हिन्दुत्व की काट में बंग-संस्कृति का कार्ड खेला और विद्यासागर की प्रतिमा तोड़े जाने को मुद्दा बनाया। इसके साथ ही राज्य के सत्तारूढ़ दल ने बीजेपी पर ग़ैर बंगाली और बाहरी लोगों की पार्टी होने का आरोप लगाया। भगवा पार्टी के साथ दिक्क़त यह है कि इसका जय श्री राम का नारा पश्चिम बंगाल में ठीक से चल नहीं रहा है, क्योंकि वहाँ की संस्कृति में राम रचे-बचे नहीं हैं, बंगाली ख़ुद को राम के साथ आइडेंटिफ़ाई नहीं करते। यही हाल रथ का है, जिस वजह से पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने भले ही रथ यात्रा पर बवाल काटा हो, अंत में उसने उसका नाम बदल कर ‘लोकतंत्र बचाओ यात्रा’ कर दिया। यह बात और है कि वह भी ज़्यादा नहीं चल पाया।
गैर बंगालियों की पार्टी
गैर बंगालियों की पार्टी होने के आरोप से बचने के लिए राज्य बीजेपी ने काली का सहारा लिया है। उसने अब ‘जय माँ काली’ का नारा देने का मन बनाया है। इसे इससे समझा जा सकता है कि बीजेपी के पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल महाकाली की भूमि है। हमें माँ काली का आशीर्वाद चाहिए।’
इसके दो फ़ायदे हैं। एक तो बंगाली ख़ुद को काली के साथ जोड़ कर देखते हैं, दूसरे यह हिन्दू प्रतीक है। टीएमसी इसका विरोध करेगी तो बीजेपी उस पर हिन्दू विरोधी होने का आरोप लगा सकेगी। यदि टीएमसी ने इसे अपनाने की कोशिश की तो उस पर भी हिन्दुत्व की राजनीति को कबूल करने का आरोप लग सकेगा। यानी बीजेपी को हर हाल में फ़ायदा है।
लगता है कि टीएमसी को जय माँ काली के नारे पर वाकई दिक्क़त हो रही है और बीजेपी अपनी चाल में कामयाब हो रही है। सत्तारूढ़ दल सॉफ़्ट हिन्दुत्व अपनाना नहीं चाहती, लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली कामयाबी से परेशान भी है और इसका विरोध भी नहीं कर पा रही है। इसे ममता बनर्जी के भतीजे और तृणमूल सांसद अभिषेक बनर्जी के बयान से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘लगता है कि बीजेपी के जय श्री राम नारे की टीआरपी गिर गई है, इसलिए वे अब जय माँ काली का नारा लगा रहे हैं।’
धर्मनिरपेक्षता पर टिकी रहेंगी ममता
ममता बनर्जी ने बीजेपी के सॉफ्ट हिन्दुत्व को रोकने और अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को और चमकदार बनाने के लिए ईद के मौके का इस्तेमाल किया। उन्होंने अपनी पुरानी धर्मनिरपेक्ष छवि को मजबूत करने के लिए ईद के समारोह में भाग लिया, लेकिन इस मौके पर सभी धर्मों का नाम लिया और सबको भारतीयता और बंग-संस्कृति से जोड़ दिया। कोलकाता के रेड रोड पर ईद की पारंपरिक नमाज़ होती है। ममता बनर्जी इस मौके पर मौजूद रहीं।कोलकाता के रेड रोड पर तकरीबन पाँच लाख लोग एक साथ नमाज़ पढ़ सकते हैं। हर साल ईद पर यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है। ममता बनर्जी ने पिछले साल दुर्गापूजा के समय कई पूजा पंडालों की प्रतिमाओं के विसर्जन का समारोह आयोजित करवाया था। इसे 'दुर्गा कार्निवल' का नाम दिया गया था। यह सरकारी आयोजन था। बुधवार को मुख्यमंत्री ने इसी जगह ईद समारोह में भाग लिया।
Today, like previous years, I attended #Eid prayers at Red Road and exchanged greetings with all.
— Mamata Banerjee (@MamataOfficial) June 5, 2019
Some pictures of the occasion are uploaded here for all of you. #EidMubarak once again pic.twitter.com/I9gsNAZZuO
लेकिन उन्होंने सिर्फ़ मुसलमानों का नाम नहीं लिया, बल्कि बड़ी होशियारी से सभी धर्मों को जोड़ दिया। वह यह संकेत देना चाहती हैं कि उनकी सरकार और पार्टी सभी धर्मों को लेकर चलना चाहती है। इसके साथ ही उन्होंने बीजेपी को चेतावनी भी दे डाली।
“
त्याग का नाम है हिन्दू, ईमान का नाम मुसलमान, प्यार का नाम है ईसाई और सिखों का नाम बलिदान। ये है हमारा प्यारा हिन्दुस्तान, इसकी रक्षा हम लोग करेंगे। जो हम से टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा। यह हमारा स्लोगन है।
ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिम बंगाल
मुख्यमंत्री ने अपने काडर का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि जब सूर्य निकलता है तो उसमें गर्मी ज़्यादा होती है, पर बाद में वह निस्तेज हो जाता है। इसलिए डरने की ज़रूरत नहीं है। बीजेपी ने तेज़ी से ईवीएम पर कब्जा जमा लिया, पर वह उसी तेजी से गायब भी हो जाएगी।
ममता बनर्जी ने अपने काडर का मनोबल बनाए रखने के लिए भले ही कहा हो कि डरने की ज़रूरत नहीं है, सच यह है कि उनके लिए डरने की बात है। उनके हाथ से चीजें तेजी से खिसकती जा रही हैं, राज्य पर से उनका नियंत्रण भी घटता जा रहा है।
टीएमसी को ख़तरा
इसे भाटपाड़ा नगर निगम के टीएमसी के हाथ से निकलने से समझा जा सकता है। उत्तर चौबीस परगना ज़िले में स्थित इस म्युनिसपैलिटी पर तृणमूल का कब्जा था। इसके प्रमुख अर्जुन सिंह थे। बाद में उन्होंने पार्टी छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए। उसके बाद टीएमसी ने उनके ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया, जिसे 21-11 से पारित कर दिया गया। सिंह को पद से हटना पड़ा। बाद में उन्होंने पास के ही बैरकपुर से संसदीय चुनाव लड़ा और जीत गए। इसके बाद उन्होंने भाटपाड़ टीएमसी को तोड़ा, उसके कई पार्षद बीजेपी में आ गए। इसके बाद 34 पार्षदों की नगरपालिका में बीजेपी के साथ 26 पार्षद आ गए और भाटपाड़ा पर भगवा रंग छा गया। यह पहली बार हुआ है कि पश्चिम बंगाल में बीजेपी किसी स्थानीय निकाय पर काबिज है।टीएमसी को डर है कि इस तरह टूट-फूट जारी रही तो उसके अगले विधानसभा चुनाव में सत्ता उसके हाथ से निकल सकती है। यह डर बेबुनियाद नहीं है। संसदीय चुनाव में कम से कम 128 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी आगे रही और लगभग 50 पर दूसरे नंबर पर रही, कई जगह उसे तृणमूल से थोड़े ही कम वोट मिले। ऐसे में बंगाल की दीदी का डरना स्वाभाविक है।
पश्चिम बंगाल में भी नारे उछाले गए हैं और कई बार वे कामयाब भी हुए हैं। वहाँ भी प्रतीकों की राजनीति हुई है। लेकिन इस बार डर यह है कि वहाँ उग्र हिन्दुत्व, सॉफ़्ट हिन्दुत्व, राष्ट्रवाद और बंगाली राष्ट्रवाद का अजीब कॉकटेल बन कर तैयार हो रहा है। इसमें मुख्य मुद्दे खोते जा रहे हैं। अब ममता बनर्जी भी 'मां-माटी-मानुष' का नारा नहीं उछाल रही हैं, वह भी औद्योगिक विकास की बात नहीं कर रही हैं, राज्य के साथ सौतेले व्यवहार की शिकायत कोई नहीं कर रहा है। ऐसे में प्रतीक ही काम आएँगे। यह नया पश्चिम बंगाल है।