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बीजेपी की बी टीम कौन- कांग्रेस या बीएसपी; मायावती-राहुल में जंग क्यों?

बीजेपी की बी टीम कौन- कांग्रेस या बीएसपी; मायावती-राहुल में जंग क्यों?

मायावती और राहुल गांधी के बीच तीखी बयानबाजी ने सवाल खड़ा कर दिया है—बीजेपी की 'बी टीम' कौन है, कांग्रेस या बीएसपी? जानिए, इस राजनीतिक विवाद की पूरी कहानी।

राहुल गांधी और मायावती के बीच क्या कोई मुक़ाबला है? तो फिर दोनों नेता एक-दूसरे के ख़िलाफ़ जुबानी जंग क्यों कर रहे हैं? राहुल गांधी ने मायावती की तारीफ़ करते हुए एक सवाल पूछ दिया 'बहनजी आजकल चुनाव ठीक से क्यों नहीं लड़ रहीं?' फिर क्या था, मायावती ने कांग्रेस पर ही बीजेपी की बी टीम होने का आरोप लगा दिया। मायावती के इस आरोप से पता चलता है कि राहुल गांधी ने भी घुमा फिराकर कुछ ऐसा ही आरोप लगाया था कि कहीं बीएसपी बीजेपी की बी टीम तो नहीं?

तो सवाल है कि राहुल गांधी और मायावती एक-दूसरे के ख़िलाफ़ जुबानी जंग क्यों लड़ रहे हैं? कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है। बीएसपी क़रीब-क़रीब यूपी तक ही सिमटी है। यूपी में बीजेपी सत्ता में है और दूसरी बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी है। तो फिर राहुल ने मायावती का नाम क्यों लिया और मायावती उनको जवाब क्यों दे रही हैं? क्या दलित वोटबैंक से इसका कुछ लेनादेना है? इस सवाल का जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर दोनों नेताओं ने एक दूसरे के ख़िलाफ़ क्या क्या बोला है।

इसकी शुरुआत राहुल गांधी के बयान से हुई। वह गुरुवार को अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली पहुँचे थे। राहुल गांधी ने दलित छात्रों के एक समूह से बातचीत में पहले तो मायावती की तारीफ़ की, फिर एक तीखा सवाल दाग दिया। उन्होंने कहा, 'ये तो कहना पड़ेगा कि कांशीराम जी ने नींव रखी और बहनजी ने काम किया, ये तो मैं भी मानता हूं। मगर एक सवाल है मेरा, बहनजी आजकल चुनाव ठीक से क्यों नहीं लड़ रहीं?' 

उन्होंने कहा, 'हम चाहते थे कि बहनजी बीजेपी के विरोध में हमारे साथ लड़ें मगर मायावती जी किसी ना किसी कारण से नहीं लड़ीं। हमें तो काफी दुख लगा क्योंकि अगर तीनों पार्टियाँ एक हो जातीं तो बीजेपी चुनवा कभी नहीं जीत पाती।' 

वैसे, कांग्रेस ने 2024 का लोकसभा चुनाव अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़ा। इसमें कांग्रेस ने छह और सपा ने 37 सीटें जीतीं। इससे बीजेपी की सीटें घट गईं। बसपा ने 79 सीटों पर चुनाव लड़ा और 9.4 प्रतिशत वोट मिले, लेकिन इसे एक भी सीट नहीं मिली।

राहुल गांधी के इस बयान के बाद मायावती ने उनपर और कांग्रेस पर हमला बोला। उन्होंने कहा, 'कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल गांधी को किसी भी मामले में दूसरों पर व ख़ासकर बीएसपी की प्रमुख पर उंगली उठाने से पहले अपने गिरेबां में भी ज़रूर झांक कर देखना चाहिए, यह बेहतर होगा।'

मायावती ने आरोप लगाया, 'कांग्रेस ने दिल्ली विधानसभा आमचुनाव में इस बार बीजेपी की बी टीम बनकर चुनाव लड़ा, यह आम चर्चा है, जिसके कारण यहाँ बीजेपी सत्ता में आ गई है। वरना इस चुनाव में कांग्रेस का इतना बुरा हाल नहीं होता कि यह पार्टी अपने ज़्यादातर उम्मीदवारों की जमानत भी न बचा पाए।'

यूपी की पूर्व सीएम ने कांग्रेस पर उनकी पार्टी बहुजन समाज पार्टी यानी बीएसपी के प्रति शत्रुता और जातिवादी रवैया रखने का आरोप लगाया। मायावती ने कहा, 'जिन राज्यों में कांग्रेस मज़बूत है या जहां उसकी सरकारें हैं, वहां बीएसपी और उसके समर्थकों के प्रति शत्रुता और जातिवादी रवैया है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां कांग्रेस कमजोर है, वहां बीएसपी के साथ गठबंधन की भ्रामक बातें हो रही हैं, अगर यह उस पार्टी का दोहरा मापदंड नहीं है तो और क्या है?' 

मायावती ने कहा कि जब भी बसपा ने उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा है, उनकी पार्टी का आधार वोट उन्हें स्थानांतरित हो गया है, लेकिन उन्हें इसका फायदा नहीं मिला है। मायावती ने कहा कि ऐसी स्थिति में बसपा को हमेशा नुक़सान ही उठाना पड़ा है। 

उनके बयानों से लगता है कि दोनों दलों के बीच यह लड़ाई दलित वोटबैंक को लेकर है। खुद राहुल गांधी के हाल के बयान भी यही बताते हैं। हाल ही में दलित इंफ्लुएंसरों और बुद्धिजीवियों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि कांग्रेस से दलितों और ओबीसी समुदायों के छिटकने की वजह से ही बीजेपी सत्ता में आई। 

राहुल ने कहा था, 'मैं कह सकता हूं कि कांग्रेस ने पिछले 10-15 सालों में वह नहीं किया जो उसे करना चाहिए था। अगर मैं यह नहीं कहता… तो मैं आपसे झूठ बोल रहा होता। और मुझे झूठ बोलना पसंद नहीं है। यही हकीकत है। अगर कांग्रेस पार्टी ने दलितों, पिछड़ों और अति पिछड़ों का विश्वास बनाए रखा होता तो आरएसएस कभी सत्ता में नहीं आता।'

तो राहुल गांधी अब दलित और ओबीसी हितों की बात करना चाहते हैं? इसी वजह से कांग्रेस ने फिर से दलितों और ओबीसी को अपने पक्ष में करने की कोशिशें शुरू की हैं। 

खासकर राहुल गांधी जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं। वह 'जितनी जिसकी भागीदारी उतनी उसकी हिस्सेदारी' की बात कह रहे हैं। हाल में कुछ दलितों और ओबीसी में इसके प्रति रुख भी बदलता दिख रहा है।

कांग्रेस दलितों को मुख्यधारा में लाने और उन्हें अन्य वर्गों के साथ जोड़ने पर जोर देती रही है। लेकिन राहुल गांधी ने अब 'जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी' की वकालत कर दलितों में पैठ बनाने की कोशिश की है। मायावती और बीएसपी दलितों की स्वतंत्र पहचान और उनके गौरव पर जोर देती हैं, साथ ही अन्य पिछड़े वर्गों को जोड़कर एक बड़ा सामाजिक समीकरण बनाने की कोशिश करती हैं। हालाँकि, अब राहुल गांधी की भी रणनीति भी कुछ इसी तरह की दिखने लगी है।

अब जाहिर है यदि कांग्रेस दलित वोटों को अपने पाले में करेगी तो दलित जनाधार वाली बीएसपी और इसकी प्रमुख मायावती को यह रास नहीं ही आएगा। वैसे, खुद बीएसपी के दलित वोटबैंक में बड़ी सेंध लगी है। यूपी में बीजेपी के सत्ता में आने की बड़ी वजहों में से एक दलितों का बीजेपी की ओर खिसकना भी है। 

तो दलितों को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस और बीएसपी दोनों के सामने चुनौतियाँ हैं। ऐसा इसलिए कि दलित वोट बैंक अब एकजुट नहीं है और इसे विभिन्न पार्टियाँ अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही हैं। बीजेपी ने भी दलितों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए कई कल्याणकारी योजनाएँ शुरू की हैं, जिससे बीएसपी और कांग्रेस को चुनौती मिल रही है।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)

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