
दिल्ली सीएम रेखा गुप्ताः जुमलेबाजी और ध्रुवीकरण से दूर हो पायेंगी?
दिल्ली में विधानसभा चुनाव जीतने के तेरहवें दिन बीजेपी की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने पद एवं गोपनीयता की शपथ लेकर अपने सिर पर कांटों का ताज धारण किया है। बीजेपी ने शपथ ग्रहण कार्यक्रम को चुनाव हार चुके पूर्व मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर रामलीला मैदान में जोरशोर से आयोजित करके इस आशंका की पुष्टि भी की है।
शपथ ग्रहण के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी एवं एनडीए शासित आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों के मुख्यमंत्रियों आदि को मंच पर नमूदार करके बीजेपी अपने तईं भले ही इसे शक्ति प्रदर्शन समझ रही हो मगर इससे उसकी घबराहट अधिक झलक रही थी। समूचे कार्यक्रम के दौरान बीजेपी नेतृत्व कांग्रेस एवं केजरीवाल से भयाक्रांत दिखा। कार्यक्रम में गिग वर्करों अर्थात डिलीवरी आदि करने वाले लोगों को विशेष तवज्जो देकर बीजेपी ने कांग्रेस से इनके कल्याणकारी कार्यक्रम की पहल छीनने की मंशा जताई।
गौरतलब है कि गिग वर्करों की सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा देश में सबसे पहले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उठाया है। उन्होंने तो एक डिलीवरी बाॅय की बाइक पर बैठ कर और गिग वर्करों के समूह से बात करके उन्हें रोजमर्रा पेश आने वाली दिक्कतों एवं सामाजिक असुरक्षा की ओर पूरे देष का ध्यान खींचा। साथ ही तेलंगाना में कांग्रेस की रेवंत रेड्डी सरकार द्वारा गिग वर्करों की सामाजिक सुरक्षा के उपाय भी देश में सबसे पहले लागू करवाए। इसलिए साल 2025-26 के आम बजट में गिग वर्करों के रजिस्ट्रेशन एवं उनके लिए स्वास्थ्य बीमा योजना की घोषणा एवं दिल्ली की मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण के दौरान उन्हें तवज्जो देना बीजेपी द्वारा कांग्रेस की नकल की कोशिश कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा।
इसी तरह शपथ ग्रहण के दौरान दिल्ली के तिपहिया चालकों को भी तवज्जो देने का प्रचार बीजेपी ने जोरशोर से किया ताकि उनके वोट बैंक पर केजरीवाल की पकड़ को ढीला किया जा सके। क्योंकि केजरीवाल ने अपने घोषणापत्र में तिपहिया चालकों के परिवार के लिए विषेश सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का पिटारा खोल दिया था जिसमें उनकी बेटियों की शादी में सरकार द्वारा नकद सहायता भी शामिल थी।
हालांकि केजरीवाल की इस घोषणा का रेहड़ी-पटरी एवं फेरीवालों ने खुद से भेदभाव बता कर विरोध भी किया था। मध्यवर्ग में भी इस घोषणा के प्रति असंतोष था क्योंकि अपने 11 साला शासनकाल में तिपहियों का किराया चार बार बढ़ाने के बावजूद केजरीवाल ने कभी भी उनकी मीटर डाउन करने के बजाय सवारी से किराये की सौदेबाजी करने की ढिठाई पर लगाम लगाने की कोशिश नहीं की। उस पर तुर्रा ये कि केजरीवाल मध्यवर्ग को राहत दिलाने के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखने का ढोंग करने से बाज नहीं आए। तो क्या तिपहिया में सवारी करने वाले लोग दिल्ली के मध्यवर्ग के बजाय कहीं और के होते हैं?
बहरहाल अब तिपहिया चालकों को दिल्ली की मुख्यमंत्री के शपथग्रहण में तवज्जो देकर बीजेपी ने उन्हें अनुशासित करने की चुनौती भी ओढ़ ली है। देखना यही है कि बीजेपी की सदारत वाले महायुति गठबंधन शासित मुंबई की तर्ज पर दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता दिल्ली के तिपहिया चालकों को सवारी के बैठते ही किराये की सौदेबाजी के बजाए मीटर डाउन करने के लिए अनुशासित कर पाएंगी अथवा केजरीवाल की तरह मध्यवर्ग को परेशान हाल ही छोड़ देंगी।
रेखा गुप्ता की असली परीक्षा बीजेपी के भीतर से मिलने वाली चुनौतियों से निपटने में होगी। इन अंदरूनी चुनौतियां के अंदेशे की पुष्टि करने को यही तथ्य काफी है कि बीजेपी का तमाम आलाकमान राजधानी दिल्ली में ही होने के बावजूद पार्टी को मुख्यमंत्री का चेहरा छांटने में करीब दो हफ्ते लग गए।
बीजेपी ने हालांकि अपने सबसे अनुभवी स्थानीय नेताओं में शुमार विजेंद्र गुप्ता को विधानसभा स्पीकर बनाकर छत्तीसगढ़ वाला प्रयोग दोहराने की कोशिश की है जहां तीन बार के मुख्यमंत्री रमन सिंह को स्पीकर बना कर राजनीतिक गतिविधियों से जबरिया विमुख कर दिया गया। इसके बावजूद दिल्ली में अपने दर्जन भर से ज्यादा वरिष्ठ नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को अगले पांच साल साध कर रेखा गुप्ता के लिए आरएसएस के समर्थन के बावजूद प्रशासन चलाना टेढ़ी खीर होगा।
पहली बार विधायक निर्वाचित हुईं रेखा के लिए नौकरशाही की लक्ष्मणरेखा से पार पाना भी दुश्कर होगा। उन्हें केजरीवाल अथवा शीला दीक्षित की तरह व्यापक प्रशासनिक अनुभव भी नहीं है जिससे वो दिल्ली जैसे पेचीदा महानगर, राजधानी, अर्धराज्य एवं स्थानीय तथा अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से भरपूर क्षेत्र को प्रशासनिक एवं राजनीतिक नेतृत्व दे पाएं।
साफ हवा और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध करवाने की जद्दोजहद के साथ ही अधिकतर बेतरतीब बसी और आगे भी वैसे ही बसती जा रही दिल्ली को गड्ढामुक्त सड़कें, रोजाना सफाई और स्वास्थ्य तथा षिक्षा सुविधाओं का लगातार विस्तार सबसे बड़ा सरदर्द साबित होगा। महिला मुख्यमंत्री से महिलाओं को अपनी सुरक्षा की बेहतर व्यवस्था और अपने लिए रोजगार के मौके बढ़ाने के ठोस उपायों की भी दरकार होगी।
बीजेपी महिलाओं और अन्य वर्गों की इन उम्मीदों से केजरीवाल की तरह केंद्र सरकार के असहयोग की दुहाई देकर भी पल्ला नहीं झाड़ सकती क्योंकि केंद्र और दिल्ली से लगते तीनों राज्यों में भी बीजेपी की ही सरकार हैं। इसलिए रेखा गुप्ता न तो कानून-व्यवस्था में कोताही की तोहमत से बच पाएंगी और न ही राश्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से दिल्ली को मिलने वाले सहयोग में उतार-चढ़ाव से पेश आने वाली दिक्कतों से मुंह चुरा पाएंगी। पीने के साफ पानी के लिए दिल्ली मूलतः हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के सहयोग पर निर्भर है। हरियाणा से यमुना के जरिए और उत्तर प्रदेश से गंगा नदी के जरिए दिल्ली को पीने का पानी मिलता है। बाकी कसर दिल्ली के रैनी कुएं पूरी करते हैं। इसलिए दिल्ली में स्वच्छ जल की किल्लत से पार पाने के लिए बीजेपी को अपने तीनों मुख्यमंत्रियों के बीच समन्वय बैठाना होगा।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के तीसरे राज्य राजस्थान में भी बीजेपी की ही सरकार है इसलिए भवन एवं बुनियादी ढांचा निर्माण के लिए रेत, बजरी-गिट्टी आदि कच्चे माल की निर्बाध सप्लाई का वहां से ठोस इंतजाम करना भी उसकी जिम्मेदारी होगा। राजस्थान से दूध,सब्जी, तिलहन एवं मसालों की भरपूर सप्लाई का जुगाड़ करके दिल्ली वालों के लिए घर एवं व्यापार दोनों ही चलाने में बीजेपी खासी मददगार हो सकती है।
लंबे अरसे के बाद राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की सत्ता हासिल करने वाली बीजेपी के लिए विभिन्न जातीय एवं आंचलिक समूहों को संतुष्ट करना भी बड़ा काम होगा। इसकी प्रमुख वजह चुनाव के छह महीने पहले से आरएसएस कार्यकर्ताओं की ओर से इन समूहों से व्यापक संपर्क अभियान के दौरान किए गए वायदे हैं। बीजेपी इस बार अपने पंजाबी एवं बनिया वोट बैंक का समर्थन वापस पाने में कामयाब रही है। इसीलिए दो पंजाबी नेताओं को मंत्री बनाने के साथ ही मुख्यमंत्री तथा विधानसभा अध्यक्ष का पद बनिया जाति के नेताओं को देकर संतुलन साधने की कोशिश की गई है। इनके अलावा पूर्वांचली तथा उत्तराखंड मूल के नेताओं को भी सरकार में महत्वपूर्ण पद दिए गए हैं।
सवाल ये है कि क्या आंचलिक समूहों को संतुष्ट करने के लिए क्या इतने उपाय काफी होंगे। दिल्ली के जाटों एवं गूजरों के अलावा झुग्गी-झोंपड़ी तथा पुनर्वास बस्तियों के लोगों से किए गए वायदे पूरे करने में भी बीजेपी के दांतों में पसीना आने वाला है। युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना सबसे बड़ी चुनौती होगी। देखना यही है कि हरेक नैतिक-अनैतिक उपाय अपना कर दिल्ली की सत्ता पाने में कामयाब बीजेपी दुनिया के सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश भारत की राजधानी के इतिहास में अगले पांच साल में कुछ यादगार पन्ने जोड़ पाएंगी अथवा ध्रुवीकरण और जुमलेबाजी में ही वक्त गंवाएगी।