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एक थी लड़ाई ‘महाराज’ और ‘घोषणावीर’ की 

एक थी लड़ाई ‘महाराज’ और ‘घोषणावीर’ की 

मध्य प्रदेश में प्रचार ‘विकास बनाम विनाश’ से शुरू हुआ था। बाद में यह बदल गया। भाजपा ने 'महाराज’ से हमला किया तो कांग्रेस ने  भी ‘घोषणावीर’ से जवाब दिया।

मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार तो ‘विकास बनाम विनाश’ के मुद्दे से शुरू हुआ लेकिन अंतिम दौर में भाजपा और इससे जुड़े संगठनों के कर्ताधर्ता ‘मां, मंदिर और मुसलमान’ के केन्द्र बिन्दु पर ला खड़ा करने में सफल होते नज़र आए हैं। हालाँकि पूरे चुनाव में भाजपा ने अपने प्रचार को ‘शिवराज वर्सेस महाराज’ पर केन्द्रित रखा। कांग्रेस ने  भी ‘महाराज’ का जवाब ‘घोषणावीर’ से दिया।मध्यप्रदेश भाजपा के प्रत्येक विज्ञापन में ‘माफ़ करो महाराज, अपना नेता तो शिवराज’ पर केन्द्रित रहा। पार्टी प्रचार के लिए मध्यप्रदेश में डेरा डालने वाले राष्ट्रीय प्रवक्ता सम्बित पात्रा से पूछा गया ‘यह महाराज कौन हैं?’ उनका जवाब रहा, ‘वैसे तो महाराज आम बोलचाल का शब्द है, लेकिन हमारे चुनावी नारे में प्रयुक्त महाराज शब्द को कांग्रेस की सामंतवादी मानसिकता का प्रतीक माना जा सकता है।’ 

मध्यप्रदेश भाजपा के विज्ञापन में ‘माफ़ करो महाराज, अपना नेता तो शिवराज’ पर टिका रहा। कांग्रेस ने भी ‘महाराज’ का जवाब ‘घोषणावीर’ से दिया।

मध्यप्रदेश कांग्रेस मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को कांग्रेस घोषणावीर बताती आई है। हालाँकि, कांग्रेस ने पूरे प्रचार के दरमियान एक ही नारा सबसे ज्यादा उछाला और वह रहा, ‘कांग्रेस के साथ वक़्त है बदलाव का।’ 

‘30 साल पहले क्यों नहीं कहा, माफ़ करो राजमाता’

माफ़ करो ‘महाराज’ पर सिंधिया का जवाब रहा - ‘भाजपा ने उनकी दादी से 30 वर्ष पहले क्यों नहीं कहा, माफ़ करो राजमाता। उनकी बड़ी बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया से क्यों नहीं कहते - ‘माफ़ करो महाराज’, उनकी छोटी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया मंत्री पद से नवाजने की बजाय क्यों नहीं कहा जाता - ‘माफ़ करो श्रीमंत।’ सिंधिया ने जवाबी प्रहार में यह भी तंज कसा, ‘अन्नदाताओं को गोलियों से भून डालने और मध्यप्रदेश को गर्त में डालने पर शिवराज को जनता माफ़ नहीं करेगी। सबसे बड़े सामंत, प्रदेश में शिवराज ही हैं।’

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