त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने आतंक विरोधी क़ानूनों के तहत पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी के लोगों पर थोपे गए मामलों की समीक्षा करने का आदेश दिया है।
त्रिपुरा पुलिस ने 102 लोगों पर यूएपीए (अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट) के तहत मुकदमे दर्ज किए थे और उन पर फर्जी वीडियो चला कर क़ानून व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगाया गया था।
मुख्यमंत्री के आदेश के बाद अब पुलिस इन मामलों पर पुनर्विचार करेगी और समझा जाता है कि ये मामले वापस ले लिए जाएंगे।
समीक्षा का आदेश
त्रिपुरा पुलिस के महानिदेशक वी. एस. यादव ने अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को सभी मामलों की समीक्षा करने का आदेश दिया है।
याद दिला दें कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 17 नवंबर को तीन लोगों को राहत दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अंसार इंदौरी, पीयूसीएल (पीपल्स यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टीज़) के मुकेश उन तीन लोगों की टीम में थे, जिसे त्रिपुरा जाकर ज़मीनी सच्चाई का पता लगाने को कहा गया था।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
इसके अलावा पत्रकार श्याम मीरा सिंह पर भी आरोप लगाए गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने इसके बाद त्रिपुरा सरकार को आदेश दिया था कि किसी के ख़िलाफ़ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।
क्या है मामला?
याद दिला दें कि त्रिपुरा पुलिस की ओर से दर्ज एफ़आईआर में आरोप लगाया गया था कि श्याम मीरा सिंह और अन्य लोगों ने फ़ेक न्यूज़ फैलाई और आपत्तिजनक कंटेंट को शेयर किया जबकि राज्य सरकार ने किसी भी मसजिद में तोड़फोड़ के आरोपों और स्थानीय मुसलिम समुदाय पर हमले के आरोपों को खारिज कर दिया था।
श्याम मीरा सिंह का कहना है कि उन्होंने इस मामले में वही कहा है जिसे त्रिपुरा हाई कोर्ट ने भी कहा है।
त्रिपुरा पुलिस ने इस मामले में फ़ेसबुक, ट्विटर और यू ट्यूब से संपर्क किया था और उनसे 100 से ज़्यादा सोशल मीडिया अकाउंट्स की जानकारी मांगी थी। पुलिस ने कहा था कि इन अकाउंट्स का इस्तेमाल फ़ेक और भड़काऊ पोस्ट करने के लिए किया गया।
हिंसा
बता दें कि त्रिपुरा के पानीसागर और कुछ अन्य इलाक़ों में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं को लेकर सोशल मीडिया पर ख़ासी बहस हुई थी। हिंसा की ये घटनाएं पानीसागर के साथ ही ऊनाकोटी और सिपाहीजाला जिलों में भी हुई थीं।
हिंसा की ये घटनाएं विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की रैली के बाद हुई थीं। विहिप ने यह रैली बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों और दुर्गा पूजा के पंडालों पर हुए हमलों के विरोध में 26 अक्टूबर को निकाली थी।
राज्य के सूचना मंत्री सुशांत चौधरी ने कहा था कि पुलिस की जांच में पता चला है कि पानीसागर में किसी भी मसजिद में आग नहीं लगाई गई है। राज्य सरकार ने कहा था कि कुछ बाहरी लोगों ने अपने फ़ायदे के लिए सोशल मीडिया पर मसजिद जलाने के फर्जी फ़ोटो अपलोड किए।