अमेरिका के मेरीलेंड नामक प्रांत की विधानसभा में एक ऐसा विधेयक लाया गया है, जो भारतीय लोगों के लिए बड़ी मुसीबत पैदा कर सकता है। वह विधेयक यदि क़ानून बन गया तो बाइडन और मोदी प्रशासनों के बीच भी तनाव बढ़ सकता है। भारत और अमेरिका के रिश्तों पर अमेरिका के सातवें बेड़े ने पहले ही छींटे उछाल रखे हैं और मेरीलैंड विधानसभा ने यदि इस विधेयक को क़ानून बना दिया तो भारत की इस तथाकथित राष्ट्रवादी सरकार को अपनी चुप्पी तोड़नी ही पड़ेगी। क्या है, यह विधेयक? इस विधेयक में ‘स्वास्तिक’ को घृणास्पद चिन्ह बताया गया है और इसे कपड़ों, घरों, बर्तनों, बाज़ारों या कहीं भी इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है। इस स्वास्तिक का आजकल अमेरिका के नए नाज़ी या वंशवादी गोरे लोग जमकर दिखावा करते हैं।
माना जाता है कि हिटलर ने अपनी नाजी पार्टी का प्रतीक-चिन्ह इसी ‘स्वास्तिक’ को बनाया था और इसे दिखाकर ही लाखों यहूदियों को मारा और जर्मनी से भगाया था। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। हिटलर ने अपनी कुख्यात पुस्तक ‘मीन केम्फ’ में ‘स्वास्तिक’ शब्द का प्रयोग कहीं नहीं किया है। इस नाजी प्रतीक चिन्ह के लिए उसने जर्मन शब्द ‘हेकन क्रूज़’ इस्तेमाल किया है। हिटलर को न संस्कृत आती थी और न ही हिंदी! उसे क्या पता था कि ‘स्वास्तिक’ का अर्थ क्या होता है?
हेकन क्रूज का अर्थ है— मुड़ा हुआ क्राॅस। लेकिन अंग्रेज पादरी जेम्स मर्फी ने जब ‘मीन केम्फ’ का अंग्रेजी अनुवाद किया तो उसने 'हेकन क्रूज़' को ‘स्वास्तिक’ कह दिया ताकि यूरोप के ईसाई हिटलर के विरुद्ध हो जाएँ, क्योंकि क्राॅस तो ईसाइयत का प्रतीक है लेकिन लोगों को यह अंदाज़ नहीं है कि यहूदियों को ईसा का हत्यारा घोषित करके पिछली कई सदियों से ईसाई शासक और पोप उन पर घोर अत्याचार करते रहे हैं। हिटलर ने इसी अत्याचार को घोर वीभत्स रूप दे दिया। उसका ‘स्वास्तिक’ शब्द से कुछ लेना-देना नहीं है।
हिटलर का स्वास्तिक टेढ़ा है, भारत का स्वास्तिक सीधा है। यूनान, यूरोप और अरब देशों में जिस ‘क्राॅस’ का इस्तेमाल होता है, वह प्रायः टेढ़ा और कभी-कभी उल्टा भी होता है।
भारत का स्वास्तिक कुशल-क्षेम का प्रतीक है जबकि हिटलर का ‘स्वास्तिक’ घृणा और द्वेष का प्रतीक है। भारत के स्वास्तिक से किसी भी अमेरिकी यहूदी या ईसाई या मुसलमान को कोई आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन अंग्रेज़ी भाषा की मेहरबानी के कारण हमारे भारतीय स्वास्तिक को हिटलर का ‘हेकन क्रूज़’ समझने की ग़लतफहमी हो रही है। आशा है, इस मामले में हमारा राजदूतावास चुप नहीं बैठेगा, वरना अमेरिका में भारतीयों का रहना मुश्किल हो जाएगा।