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कौन हैं बिलकिस बानो, जो हिम्मत नहीं हारीं, कोर्ट दर कोर्ट लड़ती रहीं

कौन हैं बिलकिस बानो, जो हिम्मत नहीं हारीं, कोर्ट दर कोर्ट लड़ती रहीं

गुजरात में 2002 के दंगों में वैसे तो हजारों परिवार बर्बाद हुए थे। लेकिन कुछ मामले अदालत तक भी पहुंचे। बिलकिस बानों का मामला भी ऐसा ही था। 11 दोषियों को सजा हुई, लेकिन 14 साल के बाद दोषियों को संस्कारी ब्राह्मण बताकर रिहा कर दिया गया। बिलकिस बानो हिम्मत नहीं हारी। कोर्ट दर कोर्ट लड़ती रही। आखिर कौन है यह महिला जिसने राजनीतिक रसूख वाले 11 दोषियों को फिर से जेल भिजवा दिया। 

बिलकीस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले में 11 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 8 जनवरी को फिर से जेल भेजने का आदेश दिया। गुजरात सरकार के एक पैनल ने दोषियों की सजा में छूट के लिए किए गए आवेदन को मंजूरी दी थी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ही पूर्व जज और गुजरात सरकार की काफी खिंचाई की।  

जिन 11 लोगों को फिर जेल जाना होगा, उनके नाम हैं- जसवंत नाई, गोविंद नाई, शैलेश भट्ट, राधेश्याम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोरढिया, बाकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चांदना हैं। 

यहां यह जानना जरूरी है कि बिलकीस बानो कौन हैं और उनके साथ क्या हुआ था।

2002 में गोधरा कांड के बाद गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा फैल गई थी और हजारों मुसलिम परिवार सुरक्षित स्थानों की तलाश में अपना घर छोड़कर जा रहे थे। इसमें से ही एक बानो का परिवार भी था। लेकिन तभी बिलकीस बानो के परिवार पर भीड़ के द्वारा हमला कर दिया गया था। 

बिलकीस बानो के साथ 3 मार्च, 2002 को भीड़ द्वारा सामूहिक दुष्कर्म किया गया था। दुष्कर्म की यह घटना दाहोद जिले के लिमखेड़ा तालुका में हुई थी। उस समय बिलकीस बानो गर्भवती थीं। बिलकीस की उम्र उस समय सिर्फ़ 21 साल थी। 

बिलकीस, क़ातिलों और दरिंदों से बचने के लिए परिवार के साथ यहां से वहां भागती रहीं। इस कारण बिलकीस के परिजनों को दो साल में 20 बार अपना घर बदलना पड़ा।


धमकियों से परेशान होकर बिलकीस ने सुप्रीम कोर्ट से अपने मामले को गुजरात से बाहर किसी दूसरे राज्य में भेजने की गुहार लगाई। सुप्रीम कोर्ट ने केस को अगस्त 2004 में मुंबई ट्रांसफ़र कर दिया। बिलकीस अपने हक़ के लिए तमाम अदालतों से लेकर मानवाधिकार आयोग तक के चक्कर लगाती रहीं।

सीबीआई कोर्ट का फैसलाः 21 जनवरी, 2008 को सीबीआई की विशेष अदालत ने 13 अभियुक्तों को दोषी पाया था और इनमें से 11 को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। सीबीआई की अदालत में जसवंत नाई, गोविंद नाई और नरेश कुमार मोरढिया को बिलकीस बानो के साथ बलात्कार करने जबकि शैलेश भट्ट को बिलकीस की बेटी सालेहा की हत्या करने का दोषी पाया गया था। बाकी अभियुक्तों को बलात्कार और हत्या के जुर्म में शामिल होने का दोषी ठहराया गया था। मई 2017 में मुंबई हाई कोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा था।

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलकीस बानो के लिए 50 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश गुजरात सरकार को दिया था।

बेटी की भी हुई थी मौत 

बिलकीस बानो की ओर से अदालत में कहा गया था कि उन्मादी भीड़ ने तलवारों, लाठी-डंडों से बानो के परिवार पर हमला बोल दिया था जिसमें उनके परिवार के 8 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 6 लोगों का कुछ पता नहीं चला था। इस हमले में बिलकीस बानो किसी तरह बच गई थीं। हमले में बानो की 3 साल की बेटी सालेहा की भी मौत हो गई थी। 

बिलकीस बानो को एक आदिवासी महिला ने अपने कपड़े दिए थे और इसके बाद एक होमगार्ड की मदद से वह लिमखेड़ा पुलिस थाने में अपनी शिकायत दर्ज कराने पहुंच सकी थीं। इस मामले में सोमाभाई गोरी नाम के पुलिस विभाग के सिपाही को हमलावरों को बचाने के आरोप में 3 साल की कैद की सजा सुनाई गई थी।

इंडियन एक्सप्रेस की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक 3 मार्च 2002 को पुलिस अफसर आरएस भगोरा बिलकीस बानो को सिपाही सोमाभाई गोरी के पास लेकर आए थे और उसका बयान दर्ज कराया था। लेकिन सभी 12 अभियुक्तों के नामों को जानबूझकर हटा दिया गया था। 

6 मार्च को तत्कालीन डीएम जयंती रवि ने फिर से बिलकीस बानो का बयान दर्ज किया था और सारे अभियुक्तों के नामों को इसमें डाला गया था। इसके बाद उन्होंने इस फाइल को दाहोद के एसपी को भेजा था और वहां से यह फाइल आरएस भगोरा के पास आई थी। लेकिन भगोरा ने इस मामले में कुछ नहीं किया और यह कहते हुए कि घटना सही है लेकिन अभियुक्तों का पता नहीं चल पा रहा है, क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी। मुंबई हाई कोर्ट ने इस मामले में अपने फैसले में पुलिस अधिकारियों की भूमिका को निर्दयी बताया था।

इस लड़ाई में बिलकीस बानो को कई अच्छे लोग भी मिले जिन्होंने अहमदाबाद, बड़ौदा, मुंबई, लखनऊ, दिल्ली में बिलकीस के परिवार को रहने के लिए ठिकाना दिया। ये वे लोग थे, जिन्होंने बिलकीस के इंसाफ के लिए लड़ने के उसके हौसले को ज़िंदा रखा। बिलकीस बानो को इस लड़ाई में उनके शौहर याक़ूब ने भी उसका साथ दिया। बिलकीस बानो की एक बच्ची भी है।

आरएस भगोरा को बाद में डिमोट किया गया था। भगोरा पर सुबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगाया गया था। इसके अलावा तीन पुलिसकर्मियों की पेंशन में कटौती की गई थी। 

2019 में सुप्रीम कोर्ट की ओर से 50 लाख रुपये मुआवजा, सरकारी नौकरी और आवास मुहैया कराने के निर्देश के बाद बिलकीस बानो ने कहा था कि वह यह पूरी रक़म अपने लिए नहीं रखेंगी और मुआवज़े का एक हिस्सा यौन हिंसा की शिकार महिलाओं और उनके बच्चों के लिए दान करना चाहती हैं।

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