बिहार की राजनीतिक फिजाओं में अनिश्चितताओं के बादल अब छँट गए हैं और ये साफ़ हो गया है कि जेडीयू नेता और केन्द्रीय मंत्री आरसीपी सिंह राज्यसभा नहीं भेजे जा रहे हैं। राज्यसभा चुनाव को लेकर बिहार में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड यानी जेडीयू ने सबको चौंकाते हुए पूर्व विधायक खीरू महतो को प्रत्याशी बनाया है। इसके साथ ही रामचंद्र प्रसाद सिंह उर्फ आरसीपी सिंह से केंद्रीय मंत्री का पद छिनना तय हो गया है। जेडीयू ने फ़ैसला किया है कि आरसीपी सिंह को तीसरी बार राज्यसभा नहीं भेजा जाएगा।
कहा तो यहां तक जा रहा है कि जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पुराने राजनेता राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के दांव के सामने पूर्व आईएएस आरसीपी की एक ना चली है।
कभी नीतीश के भरोसेमंद थे आरसीपी
बहुत दिनों की बात नहीं है जब जेडीयू ही नहीं बल्कि बिहार की सियासत की समझ रखने वाला हर शख्स जानता था कि आरसीपी सिंह होने का मतलब क्या होता है। विधानसभा में विपक्षी पार्टियाँ नारा लगाती थीं कि बिहार तो आरसीपी टैक्स के सहारे चलता है। प्रशासन में बैठे लोग जानते थे कि सीएम की क़ुर्सी पर भले ही नीतीश कुमार बैठे हों, असली पावर तो पटना के स्ट्रैंड रोड के उस बंगले से आती थी जिसमें आरसीपी सिंह रहते थे। ये सभी लोग जानते हैं कि कैसे आरसीपी नीतीश के रेलमंत्री रहते हुए उनके क़रीब आए। बिहार की राजनीति में आरसीपी सिंह की पैराशूट लैंडिंग किस प्रकार से हुई थी। जेडीयू में आते ही आरसीपी सिंह का क़द तेजी से बढ़ने लगा था। नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को न केवल दो बार राज्यसभा भेजा, बल्कि उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष तक बनाया। इसके बाद जब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार में मंत्री बनाने का सवाल आया तो आरसीपी सिंह को ही यह मौक़ा दिया गया। वहीं आज आरसीपी सिंह जिस बेदर्दी से जेडीयू से आउट किये गये हैं इसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की होगी।
आरसीपी को बीजेपी प्रेम पड़ा भारी?
जिस प्रकार से आरसीपी सिंह का कुछ समय से बीजेपी के साथ संबंध था उसी वजह से बिहार की राजनीतिक गलियारों में हमेशा यह कहा जाता था कि वह भले ही तकनीकी रूप से जनता दल यूनाइटेड के कोटे से केंद्र में मंत्री है मगर हैं वह बीजेपी के आदमी।
नीतीश कुमार ये भलीभांति जानते हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी जो दुर्गति हुई है उसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी ज़िम्मेदार है। नीतीश कुमार भले ही सरकार बनाने के लिए बीजेपी के साथ बने हुए हैं लेकिन बीजेपी को डैमेज करने का कोई भी मौक़ा उन्होंने गँवाया नहीं।
ख़ासकर केंद्र में मंत्री बनने के बाद आरसीपी सिंह हर फ्रंट पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी का गुणगान कर रहे थे। आरसीपी का बीजेपी के लिए प्रेम नीतीश को कहीं न कहीं खटक रहा था।
मंत्रिमंडल में शामिल होना पड़ा मंहगा
विगत है कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जेडीयू और बीजेपी के बीच संबंध उतने अच्छे नहीं रह गए थे। 2021 में केंद्र में नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया। ये वो दौर था जब 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद जेडीयू और बीजेपी के रिश्ते तल्ख हो गये थे। नीतीश कुमार की बीजेपी के किसी वरीय नेता से बात नहीं हो रही थी, लेकिन तय ये हुआ कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में जेडीयू शामिल होगी। नीतीश कुमार ने जेडीयू की ओर से बातचीत करने के लिए आरसीपी सिंह को अधिकृत कर दिया।
जेडीयू और बिहार सरकार के सुपर पावर आरसीपी सिंह के रूतबे का टर्निंग प्वाइंट तब आया जब पार्टी की तरफ़ से अधिकृत किए गए आरसीपी पार्टी के बदले खुद मंत्री बनने का जुगाड़ कर आये। राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा आम है कि उस वक्त नीतीश कुमार की ओर से ललन सिंह को भी मंत्री बनाने का प्रस्ताव दिया गया था। लेकिन आरसीपी सिंह ने बीजेपी के साथ ऐसी सेटिंग की थी कि बीजेपी आरसीपी के अलावा जेडीयू के किसी और सांसद को मंत्री बनाने को राजी नहीं थी। मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा और उनके नीतीश के सामने राजनीतिक चालबाजी ने आरसीपी सिंह का जेडीयू में चैप्टर क्लोज कर दिया।
यूपी चुनाव में आरसीपी की असफल भूमिका
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जेडीयू बीजेपी के साथ मिलकर कम से कम 50 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी और इसके लिए पार्टी ने आरसीपी सिंह को अधिकृत किया था। पर आरसीपी सिंह जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी का गठबंधन कराने में असफल रहे जिससे नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह के रिश्ते और ज़्यादा ख़राब हो गए।
जनता दल यूनाइटेड के शीर्ष नेताओं ने कई बार कहा कि वह चाहते थे कि यूपी चुनाव में जनता दल यूनाइटेड बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े और बीजेपी के साथ बात करने के लिए एक बार फिर से नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को अधिकृत किया, मगर आख़िरकार बीजेपी ने जनता दल यूनाइटेड को भाव नहीं दिया और पार्टी को अकेले ही 51 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करना पड़ा।
जेडीयू में दो पावर सेंटर नहीं चाहते नीतीश
आरसीपी सिंह का जिस प्रकार बिहार से लेकर दिल्ली तक सियासी क़द बढ़ रहा था वह कहीं न कहीं नीतीश कुमार को खटक रहा था। आरसीपी सिंह भले ही जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष न हों लेकिन, उनकी हनक राष्ट्रीय अध्यक्ष से कम नहीं थी। केंद्र में मंत्री बन जाने के बाद पार्टी के कुछ नेताओं को लेकर आरसीपी सिंह पार्टी के लिए अलग कार्यक्रम भी करने लगे थे। आप सभी जानते हैं कि नीतीश अपनी पार्टी के खुद सर्वेसर्वा रहे हैं। नीतीश कभी भी पटना और दिल्ली में पार्टी का पावर सेंटर नहीं चाहते हैं।
अब संगठन में भी कोई जगह नहीं
आरसीपी सिंह को जेडीयू ने संसदीय राजनीति से विदा कर दिया है। लगभग मंत्री की कुर्सी जानी भी तय है। और खास बात ये है कि पार्टी में भी अब आरसीपी के लिए कोई जगह नहीं है। आरसीपी सिंह जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं और फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी पर ललन सिंह बने हुए हैं। उन्हें हटाने का कोई सवाल ही नहीं उठता। पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुका नेता नीचे के किसी पद पर बिठाया नहीं जा सकता। यानी आरसीपी सिंह को अब संगठन में भी कोई ज़िम्मेवारी नहीं मिलेगी, ये भी तय है।