दो साल पहले महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण जब 50 फ़ीसदी से ज़्यादा हुआ तो सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण वर्गों के लिए 10 फीसदी आरक्षण के लिए संसद में क़ानून बनाना पड़ा। तमिलनाडु में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण संविधान में एक संशोधन के तहत दिया गया है। तो सवाल है कि बिहार में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण क्या संभव है? क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय नियमों के तहत बिहार में 65 फीसदी जातिगत सर्वेक्षण मान्य हो पाएगा?
इस सवाल का जवाब जानने से पहले यह जान लें कि नीतीश कुमार ने क्या कहा है। बिहार के मुख्यमंत्री ने बिहार जाति सर्वेक्षण रिपोर्ट को विधानसभा और परिषद में पेश करने के बाद कहा कि वह कोटा बढ़ाने के पक्ष में हैं। और उसके कुछ देर बाद ही राज्य कैबिनेट ने कोटा को 65 प्रतिशत तक बढ़ाने का फ़ैसला कर लिया। 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा जोड़ने पर यह 75 प्रतिशत हो जाएगा। अब रिपोर्ट है कि मौजूदा विधानसभा सत्र में आरक्षण विधेयक लाए जाने की पूरी संभावना है।
फिलहाल, राज्य में 50 प्रतिशत कोटा का प्रावधान है- एससी को 14 प्रतिशत, एसटी को 10 प्रतिशत, ईबीसी को 12 प्रतिशत, ओबीसी को आठ प्रतिशत और महिलाओं और गरीबों को तीन-तीन प्रतिशत। यदि इसमें 10 फीसदी ईडब्ल्यूएस कोटा जोड़ दिया जाए तो मौजूदा कोटा 60 फीसदी हो जाता है। प्रस्तावित विधेयक में मौजूदा 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा के अलावा ओबीसी को 18 प्रतिशत, ईबीसी को 25 प्रतिशत, एससी को 20 प्रतिशत और एसटी को दो प्रतिशत कोटा का प्रावधान किए जाने की संभावना है।
लेकिन सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सीमा के उल्लंघन के लिए इसे रद्द तो नहीं किया जाएगा, क्योंकि मराठा आरक्षण के समय ऐसा हो चुका है?
मराठा आरक्षण रद्द
दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के उस मराठा आरक्षण को रद्द कर दिया था जिसको बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा समुदाय को 12-13 फ़ीसदी आरक्षण देने को हरी झंडी दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं बनी है।
मराठा आरक्षण की मांग 1980 के दशक से चल रही है। 2018 में इस आंदोलन ने जोर पकड़ा। इस आंदोलन में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई। 400 से ज़्यादा लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की गई थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने आनन-फानन में बैठक बुलाकर 16% मराठा आरक्षण देने का क़ानून मंजूर करने की घोषणा कर दी थी।
मराठा आरक्षण को अदालत में चुनौती दी गई और फिर अदालत ने 50 फ़ीसदी सीमा का हवाला देते हुए उस आरक्षण को रद्द कर दिया था। इस आरक्षण के लिए अभी भी आंदोलन चल रहा है।
तमिलनाडु में आरक्षण
तमिलनाडु में पहले से ही आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से ज्यादा है। राज्य में रिजर्वेशन से जुड़ी क़ानून की धारा-4 के तहत 30 फ़ीसदी रिजर्वेशन पिछड़ा वर्ग, 20 फ़ीसदी अति पिछड़ा वर्ग, 18 फ़ीसदी एससी और एक फ़ीसदी एसटी के लिए आरक्षित किया गया है। इस तरह से तमिलनाडु में कुल 69 फीसदी रिजर्वेशन दिया जा रहा है।
तमिलनाडु को खास प्रावधान के तहत इसकी छूट मिली हुई है। 1992 में 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने सिर्फ़ कुछ अपवादों को छोड़ उसने आरक्षण की 50 फीसदी सीमा तय करने का फैसला सुनाया था। बाद में 1994 में 76वां संशोधन हुआ था। इसके तहत तमिलनाडु में रिजर्वेशन की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा कर दी गई थी। यह संशोधन संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल किया गया है।
ईडब्ल्यूएस आरक्षण
1992 में 9 जजों की संवैधानिक पीठ के फ़ैसले की वजह से ही ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए सरकार को एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा। 50 फीसदी की आरक्षण सीमा की वजह से ही साल 2019 में मोदी सरकार ने सामान्य वर्ग को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन का विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित करवाया।
संसद से क़ानून बनने के बाद से आरक्षण की अधिकतम 50 फीसदी सीमा के बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाने का रास्ता साफ़ हो गया।
केंद्र में इस संशोधन के बाद कई राज्य सरकारें 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को पार करना चाहती हैं। मराठा आरक्षण के मामले में भी यही मांग की जा रही है। अब बिहार सरकार ने भी जातिगत आरक्षण 65 फीसदी और ईडब्ल्यूएस सहित 75 फीसदी करने की तैयारी की है। लेकिन सवाल वही है कि अब क्या सुप्रीम कोर्ट पहले की तरह इसको आसानी से खारिज कर देगा या फिर इस पर फिर से विचार करेगा?