बिहार विधानसभा का चुनाव 29 नवंबर तक करा लेने की आधिकारिक घोषणा के बाद सभी प्रमुख दलों और गठबंधनों की सक्रियता बढ़ गयी है। सात और आठ सितंबर को पटना और दिल्ली में महत्वपूर्ण रैली और बैठकें होने जा रही हैं। सोमवार यानी आज बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष पटना आ रहे हैं तो उसके ठीक अगले दिन मंगलवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और बिहार के चुनाव प्रभारी देवेंद्र फडणवीस भी बिहार आ रहे हैं।
बीजेपी के जानकार बताते हैं कि नड्डा और फडणवीस के दौरे में पार्टी प्रत्याशियों की स्क्रूटनी संबंधी औपचारिकता पूरी की जायेगी। बीजेपी ने अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मुद्दे पर मतदाताओं की सहानुभूति लेने के लिए ही महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को बिहार का चुनाव प्रभारी बनाया है। यह जिम्मेदारी मिलने के बाद फडणवीस पहली बार बिहार आ रहे हैं।
जेडीयू और कांग्रेस की वर्चुअल रैली
सोमवार को ही जेडीयू और कांग्रेस की अपनी- अपनी वर्चुअल रैली होनी है तो उधर लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के संसदीय दल की बैठक भी हो रही है। दरअसल, जीतनराम मांझी के एनडीए के बिना किसी शीर्ष नेतृत्व की उपस्थिति और बिना शर्त जेडीयू के साथ हो जाने और एलजेपी नेतृत्व पर हमलावर तेवर अपनाने के बाद चिराग पासवान की प्रतिक्रिया का सबको बेसब्री से इंतेजार है।
एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान फिलहाल मौन हैं, लेकिन संकेतों में नये निर्णय का एहसास करा रहे हैं। देखना होगा कि संसदीय दल की बैठक में एलजेपी एनडीए में रहने या उससे बाहर आने को लेकर कोई फैसला करती है या नहीं।
जेडीयू-एलजेपी की लड़ाई
उल्लेखनीय है कि चिराग पासवान कोरोना संक्रमण रोकने में बिहार सरकार की कथित विफलता को लेकर लगातार सवाल उठा रहे थे। समझा जाता है कि चिराग के बयानों से नाराज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने न तो उनके किसी पत्र का जवाब दिया और न ही मुलाकात का समय। जेडीयू ने एलजेपी से पल्ला झाड़ते हुए कहा है कि चिराग की पार्टी का गठबंधन बीजेपी से है और वे बीजेपी के मित्र दल के नाते एनडीए में हैं और जेडीयू से एलजेपी का कोई लेना- देना नहीं है।
इस पूरे प्रकरण पर बीजेपी का मौन और जीतनराम मांझी के जेडीयू के साथ जाने और जेडीयू के एलजेपी से दूरी बनाने की परिस्थिति में दिल्ली में होने वाली एलजेपी संसदीय बोर्ड की बैठक बहुत महत्वपूर्ण हो गयी है।
इस बीच जिस कांग्रेस ने दो महीने पहले सात जुलाई को हुई गृह मंत्री अमित शाह की वर्चुअल रैली का विरोध किया था, वही अब चुनाव को देखकर वर्चुअल रैली के जरिये बिहार में अपने कार्यकर्ताओं-समर्थकों से संपर्क की शुरुआत करने जा रही है। सात- आठ और नौ सितंबर को पार्टी के वरिष्ठ नेता 19 जिलों में वर्चुअल रैली करेंगे। अगले चरणों में अन्य जिलों से संपर्क किया जाना है।
मांझी की एनडीए में वापसी के पीछे नीतीश का ही हाथ है।
कांग्रेस आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में दूसरी बड़ी पार्टी है। पिछले विधानसभा चुनाव में जब महागठबंधन ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था तब आरजेडी को 81 और कांग्रेस को 27 सीटें मिली थीं।
नीतीश सरकार के दावे
सोमवार को ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जेडीयू की वर्चुअल रैली को संबोधित करेंगे और अपने कार्यकर्ताओं से अपील करेंगे कि वे मतदाताओं के बीच जाकर बताएं कि राज्य सरकार ने बाढ़ और कोरोना जैसी आपदा के समय लोगों की सहायता के लिए क्या- क्या काम किये। सरकार का दावा है कि कोरोना से निपटने में उसने इतना अच्छा काम किया कि जांच की दर लगातार बढ़ते हुए एक लाख सैंपल से ज्यादा हो गयी और रिकवरी रेट 86 प्रतिशत तक पहुँच गया। हालाँकि विपक्ष सरकार के दावे को हास्यास्पद बताता रहा है।
प्रदेश में सतारूढ़ एनडीए गठबंधन जहाँ आतंरिक तनातनी के बीच बिहार में 15 साल के अपने विकास कार्यों के आधार पर जनता का आशीर्वाद चाहता है वहीं विपक्ष सरकार को नकारा साबित कर बिहार को नया विकल्प देने की बात कहता है।
बैठक से पहले चिराग फिर हमलावर
एक ओर, बिहार विधानसभा के चुनाव में एनडीए ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ने का निर्णय किया है और गठबंधन के नेता लगातार अपनी एकजुटता का दावा कर रहे हैं। दूसरी तरफ चिराग पासवान ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ आक्रामक तेवर जारी रखे हैं। चिराग के पिता रामविलास पासवान ने लेकिन चिराग के बयानों पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
एलजेपी संसदीय दल की बैठक से ठीक पहले चिराग ने किसी दलित की हत्या होने पर उस परिवार के सदस्य को नौकरी देने के नीतीश कुमार के ताजा फैसले पर सवाल उठाया है। चिराग ने नीतीश कुमार को पत्र लिखकर सवाल पूछा है कि यह फैसला चुनावी घोषणा नहीं है और पिछले 15 साल में जितने भी दलितों की हत्या हुई है सरकार उनके परिजनों को भी नौकरी दे।