जाति जनगणना का मामला अब तेज़ पकड़ता जा रहा है। संसद में इस मुद्दे पर कई राजनीतिक दलों ने सरकार को तो घेरा ही, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इसे नई धार दी है और केंद्र सरकार व सत्तारूढ़ बीजेपी पर क़रारा तंज किया है।
उन्होंने अपनी चिर-परिचित हास्य- विनोद की शैली में चुटकी लेते हुए सरकार से पूछा है कि जानवरों की गणना के आँकड़े लेकर क्या अचार डालें?
कुछ समय तक राजनीति में हाशिए पर रहने और कुछ समय जेल में बिताने के बाद बाहर आए लालू प्रसाद के तेवर पहले की तरह ही तीखे हैं।
निशाने पर बीजेपी
पिछले हफ़्ते बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश में कुछ नेताओं से मिलने के बाद उन्होंने अब इस पार्टी को दूसरे मुद्दे पर निशाने पर लिया है।
राष्ट्रीय जनता दल के इस नेता ने बुधवार को ट्वीट किया और चेतावनी दी कि जाति जनगणना नहीं होने की स्थिति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ओबीसी और दलित जनगणना का बॉयकॉट करेंगे।
उन्होंने इसी ट्वीट में पूछा कि जानवरों की जनगणना वाले आकड़ों का क्या हम अचार डालेंगे।
लालू प्रसाद यादव के बेटे, बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने भी ट्वीट कर मोदी सरकार को पिछड़ा और अति पिछड़ा विरोधी क़रार दिया है।
नीतीश का समर्थन
तेजस्वी यादव ने इसके पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाक़ात कर जाति जनगणना की माँग की थी। नीतीश कुमार ने इसका समर्थन करते हुए कहा था कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस मुद्दे पर मिलेंगे। इस बीच बिहार सरकार की अहम सहयोगी पार्टियाँ 'हिंदुस्तान आवामी मोर्चा' के प्रमुख जीतनराम माँझी ने भी इस पर आवाज़ उठाई है।
क्या है जाति जनगणना?
बता दें कि जाति जनगणना में हर नाम के आगे उसकी जाति का कॉलम रहता है और उसमें स्पष्ट रूप से जाति का उल्लेख रहता है।
भारत में 1931 तक जातिगत जनगणना होती थी। इसके बाद यानी 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया था।
इसके बाद 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आँकड़े दिए गए, पर लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों के नहीं।
मंडल आयोग ने क्या कहा था?
साल 1990 में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, उसकी एक सिफ़ारिश को लागू किया था।
बता दें कि मंडल कमीशन की रिपोर्ट में जिन जातियों को ओबीसी आरक्षण दिए जाने की सिफ़ारिश की गई थी, 1931 की जनगणना के मुताबिक़ उनकी संख्या 52 प्रतिशत थी।
आयोग ने ये आँकड़े सटीक नहीं माने थे और जाति जनगणना कराकर सही आँकड़े हासिल करने की सिफ़ारिश की थी।
मंडल आयोग ने अनुमान लगाया था कि अगर 1931 से लेकर आयोग के गठन यानी 1978 तक सभी जातियों में बच्चे पैदा करने की दर एकसमान रही हो तो जिन जातियों को ओबीसी आरक्षण दिए जाने की सिफ़ारिश की जा रही है, उनकी संख्या 52 प्रतिशत होगी।
किसकी कितनी संख्या?
दूसरी ओर, यूनाइटेड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (यूडीआईएसई प्लस) के आँकड़ों के अनुसार, प्राइमरी स्कूलों में ओबीसी की संख्या तमिलनाडु में 71 प्रतिशत, केरल में 69 प्रतिशत, कर्नाटक में 62 प्रतिशत, बिहार में 61 प्रतिशत है।
इसके अलावा इनकी तादाद उत्तर प्रदेश में 54 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 52 प्रतिशत, तेलंगाना में 48 प्रतिशत, राजस्थान में 48 प्रतिशत, गुजरात में 47 प्रतिशत, झारखंड में 46 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 45 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 43 प्रतिशत, ओडिशा में 36 प्रतिशत है।
ऐसे में यह माँग लाज़िमी है कि किसकी कितनी संख्या है, यह पता लगा लिया जाए।