ललन सिंह बने जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष 

05:50 pm Jul 31, 2021 | सत्य ब्यूरो

सांसद राजीव रंजन उर्फ़ ललन सिंह को जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है। शनिवार को दिल्ली में बुलाई गई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यह फ़ैसला लिया गया। बैठक में भाग लेने के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी दिल्ली पहुंचे। अभी तक आरसीपी सिंह पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे थे लेकिन मोदी कैबिनेट में शामिल होने के बाद उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा है क्योंकि पार्टी में एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत को लागू किया गया है। 

कौन हैं ललन सिंह?

ललन सिंह को नीतीश कुमार का बेहद भरोसेमंद माना जाता है। ललन सिंह लंबे वक़्त से पार्टी से जुड़े हैं और पार्टी को खड़ा करने में उनका बड़ा योगदान माना जाता है। हाल ही में एलजेपी में जो बड़ी टूट हुई थी, उसके पीछे ललन सिंह की ही भूमिका होने की बात सामने आई थी। कहा गया था कि नीतीश ने उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी थी और ललन सिंह इसमें सफल भी रहे। 

ललन सिंह कई सालों से पार्टी के सामने आए संकटों को संभालते रहे हैं। नीतीश भी कई अहम मामलों में उनकी राय लेते रहे हैं। 

नीतीश की सियासत 

2020 के विधानसभा चुनाव में अपनी सहयोगी बीजेपी से बुरी तरह पिछड़ जाने के बाद से ही राजनीतिक दबाव का सामना कर रहे नीतीश कुमार पुराने सहयोगियों को जोड़ने और पार्टी को चुस्त-दुरुस्त करने के काम में जुटे हैं। 

इस क्रम में वे पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जेडीयू में विलय करा चुके हैं और कुशवाहा को भी बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाकर संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष भी बना चुके हैं। राजनीति में हाशिए पर चल रहे कुशवाहा को भी इससे राजनीतिक संजीवनी मिली है।  

पिछले साल मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद नीतीश ने संगठन की कमान अपने क़रीबी आरसीपी सिंह को सौंप दी थी। 

नीतीश इस बात को जानते हैं कि बीजेपी से मुक़ाबला करने के लिए अपने सियासी क़िले को मज़बूत करना ही होगा, वरना राज्य में राजनीति करना मुश्किल हो जाएगा। 2020 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 74 जबकि जेडीयू को 43 ही सीटें मिली थीं।

जातीय समीकरण साधने की कोशिश?

नीतीश के साथ कुर्मी-कोईरी मतदाताओं के बड़े वर्ग का साथ हमेशा से रहा है। कुछ हद तक मुसलमान भी उनके साथ हैं। लेकिन नीतीश चाहते हैं कि बाक़ी जातियों के बीच भी पार्टी का विस्तार हो। इसलिए उपेंद्र कुशवाहा के आने से उन्होंने कुर्मी-कोईरी-कुशवाहा समीकरण को मज़बूत बनाने की कोशिश की है। 

जबकि ललन सिंह भूमिहार बिरादरी से आते हैं। उनका क़द बढ़ाकर नीतीश समाज की ऊंची जातियों को जेडीयू से जोड़ने की कोशिश कर सकते हैं। क्योंकि आरजेडी ने भी बिहार में सवर्ण जातियों के कुछ नेताओं को अहमियत दी है। 

खासे सतर्क हैं नीतीश 

अरुणाचल में जेडीयू के छह विधायकों के बीजेपी में चले जाने के बाद से ही नीतीश खासे सतर्क हो गए हैं। बिहार के राजनीतिक गलियारों में समय-समय पर चर्चा उठती रहती है कि जेडीयू-कांग्रेस में टूट हो सकती है और इनके विधायक बीजेपी के साथ जा सकते हैं। हालांकि ये अभी सिर्फ़ सियासी चर्चाएं ही हैं। लेकिन नीतीश इसे लेकर खासे सतर्क हैं।