केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर लालू परिवार क्यों, जानें क्या-क्या लगे हैं आरोप
सीबीआई ने बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी से पटना स्थित उनके आवास पर उस मामले में पूछताछ की जिसमें भारतीय रेलवे में नौकरी के बदले जमीन लेने का आरोप है। वह लालू प्रसाद यादव और 14 अन्य लोगों के साथ मामले में आरोपी हैं। उनके परिवार के ख़िलाफ़ यह कोई पहला मामला नहीं है। लालू के परिवार पर चारा घोटाले से लेकर रेलवे के कथित आईआरसीटीसी घोटाले और बेनामी संपत्ति के मामले भी दर्ज हैं। इन मामलों में आरजेडी आरोप लगाता रहा है कि हर चुनाव से पहले दबाव बनाने के लिए एजेंसियों का इस्तेमाल करती है और अब 2024 के चुनाव से पहले फिर से एक मामले में सीबीआई कार्रवाई कर रही है।
तो सवाल है कि आख़िर कब से और क्यों लालू यादव या उनके परिवार के ख़िलाफ़ ऐसी कार्रवाइयाँ हो रही हैं? लालू यादव के ख़िलाफ़ सबसे पहले चारा घोटाला में आरोप लगा था।
बिहार के चारा घोटाले की शुरुआत पशुपालन विभाग के छोटे स्तर के कर्मचारियों ने की, जिन्होंने कुछ फर्जी फंड ट्रांसफर दिखाए। उस समय बिहार और झारखंड अलग नहीं थे। मामला 1985 में पहली बार सामने आया था जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक टीएन चतुर्वेदी ने पाया कि बिहार के कोषागार और विभिन्न विभागों से धन निकाला जा रहा है और इसके मासिक हिसाब किताब में देरी हो रही है। साथ ही व्यय की ग़लत रिपोर्टें भी पाई गईं। क़रीब 10 साल बीतने पर यह बड़ा रूप ले चुका था।
लालू प्रसाद के शासनकाल में 1996 में राज्य के वित्त सचिव वीएस दुबे ने सभी ज़िलों के ज़िलाधिकारियों और डिप्टी कमिश्नरों को आदेश दिया था कि अतिरिक्त निकासी की जाँच करें। उसी समय डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने चाईबासा के पशुपालन विभाग के कार्यालय पर छापा मारा था। इस छापेमारी में बड़ी मात्रा में दस्तावेज़ मिले, जिसमें अवैध निकासी और अधिकारियों व आपूर्तिकर्ताओं के बीच साठगाँठ का पता चला। कई जाँच कमेटियाँ बनीं। जब बीजेपी के नेता सुशील कुमार मोदी ने अदालत का रुख किया तो पटना उच्च न्यायालय ने इस मामले को सीबीआई को सौंप दिया।
जुलाई, 1997 में दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद एवं उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को भी आरोपी बनाया गया। अनुमानित रूप से चारा घोटाला मामला 900 करोड़ रुपये का माना जाता है। इसमें 64 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 53 याचिकाएँ रांची में दायर की गईं। सीबीआई ने 23 जून, 1997 को दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद और 55 अन्य लोगों को आरोपी बनाया और धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धाराओं में मुक़दमे दर्ज हुए।
कुल मिलाकर 900 करोड़ रुपये के कथित चारा घोटाला मामले में आयकर विभाग ने पाया था कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी ने इसमें से 46 लाख रुपये लिए। लेकिन उस मामले से भी उच्चतम न्यायालय ने लालू प्रसाद को बरी कर दिया था।
लेकिन सीबीआई और उसकी विशेष अदालत ने लालू प्रसाद को अच्छे से रगड़ा। चारा घोटाला मामले को एक यूनिट न मानकर अलग अलग मामलों में लालू प्रसाद को अलग अलग सजाएँ सुनाई गईं, जिसे लालू प्रसाद को अलग-अलग सज़ा भुगतने के आदेश दिए गए।
सीबीआई की विशेष अदालत ने सोमवार को चारा घोटाले के पाँचवें और आख़िरी डोरंडा कोषागार मामले में पाँच साल की क़ैद और 60 लाख रुपये के जुर्माने की सज़ा सुनाई।
चारा घोटाले में कार्रवाई किए जाने के बीच ही आईआरसीटीसी होटल मामले में जुलाई 2017 में लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव समेत 11 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। इसमें घोटाला किए जाने का आरोप है। कथित घोटाला 2004 में यूपीय सरकार में लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहने के दौरान का है। रेलवे बोर्ड ने उस वक्त रेलवे की कैटरिंग और रेलवे होटलों की सेवा को पूरी तरह आईआरसीटीसी को सौंप दिया था। इस दौरान झारखंड के रांची और ओडिशा के पुरी के बीएनआर होटल के रखरखाव, संचालन और विकास को लेकर जारी टेंडर में अनियमिताएं किए जाने की बातें सामने आई थीं। ये टेंडर 2006 में एक प्राइवेट होटल सुजाता होटल को मिला था। आरोप है कि सुजाता होटल्स के मालिकों ने इसके बदले लालू यादव परिवार को पटना में तीन एकड़ जमीन दी थी, जो बेनामी संपत्ति थी। इस मामले में भी लालू यादव, राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव समेत 11 लोग आरोपी हैं। लेकिन बीच में इसकी जाँच बंद कर दी गई थी।
पिछले साल सीबीआई ने आईआरसीटीसी घोटाले की जांच के लिए दोबारा फाइल खोली। सीबीआई ने इसकी जांच 2018 में ही शुरू की थी और मई 2021 में मामले को बंद कर दिया था। जब सीबीआई ने बंद कर चुके मामले की फिर से फाइल खोली तो तेजस्वी यादव ने अपनी नाराजगी जाहिर की थी। तब तेजस्वी यादव ने कहा था कि इससे पहले भी जांच की गई थी, लेकिन उस इन्वेस्टिगेशन का क्या हुआ? तेजस्वी ने पूछा कि सीबीआई वालों को उस इन्वेस्टिगेशन में कुछ मिला था क्या? जब उन्हें पहले की इन्वेस्टिगेशन में कुछ नहीं मिला तो अब उन्हें क्या मिल जाएगा।
'मेरे घर में दफ्तर खोल ले सीबीआई'
तब तेजस्वी यादव ने कहा था कि जितनी बार जांच करना है करें, कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने कहा था कि जहां तक बात सीबीआई जांच की है तो हमने पहले ही सीबीआई से अपील की थी कि अगर उनको दफ्तर बनाना है तो हमारे घर में बना लीजिए, उसके बाद जांच कीजिए।
बेनामी संपत्ति का मामला
लालू यादव और उनके परिवार पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने 2017 में शिकंजा कसा था। उनके बेटे-बेटी सहित कई रिश्तेदारों की बेनामी संपत्तियों को पटना से दिल्ली तक अटैच किया गया था। आईटी डिपार्टमेंट ने लालू की बेटी मीसा भारती, उनके पति शैलेश कुमार, उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और बहनें रागिनी और चंदा यादव के अटैच किए गए 12 प्लॉट का ब्योरा पेश किया था। बेनामी संपत्तियों में दिल्ली का एक फार्म हाउस और न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में बंगला भी शामिल था। तब भी आरजेडी ने इसे राजनीतिक प्रतिशोध बताते हुए कहा था कि हमने कुछ नहीं छुपाया है।
'जमीन के बदले नौकरी घोटाला'
सीबीआई ने आज जो कार्रवाई की है वह कथित ज़मीन के बदले नौकरी घोटाला का है। इस मामले में सीबीआई ने 23 सितंबर 2021 को प्राथमिक जाँच यानी पीई दर्ज की थी। आरोप लगाया गया कि लालू यादव के रेल मंत्री रहते इसके तहत रेलवे के ग्रुप डी के पदों पर लोगों को आवेदन के तीन दिन के अंदर नौकरी दी गई और बाद में उन्हें नियमित कर दिया गया था। इसके बदले नौकरी पाने वालों के परिवार ने राबड़ी देवी और मीसा भारती के नाम अपनी ज़मीन ट्रांसफर की। सीबीआई का कहना है कि लालू प्रसाद के परिवार ने पटना में नकद भुगतान कर 1.05 लाख वर्गफुट जमीन खरीदी। सीबीआई की ओर से दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि गिफ्ट डीडी के अलावा जमीन के जो सात टुकड़े यादव परिवार को दिए हैं वे मौजूदा सर्किल रेट से कम रेट पर खरीदी गई थीं।