पहले चरण में 71 सीटों पर मतदान के बाद बिहार की सियासत में बड़ा बदलाव हुआ है। नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को या यूं कहें कि जेडीयू ने बीजेपी को बड़ा भाई मान लिया है। पटना में नीतीश-मोदी की रैली में लोगों ने इसे देखा, सुना और समझा भी। नीतीश कुमार पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट मांगते दिखे। उन्होंने कहा, “एनडीए को मौका देंगे तो मोदी बिहार को विकसित राज्य बना देंगे।”
जिन लोगों ने भी नीतीश-मोदी और जेडीयू-बीजेपी की सियासत को देखा-समझा है, वे नीतीश के वोट मांगने के इस अंदाज को देखकर चकित हैं, मगर यही चौंकाने वाला फैक्टर बिहार की सियासत के बदले हुए मिजाज का सबूत भी है।
बीजेपी का ‘हृदय परिवर्तन’!
पहले चरण के चुनाव के तुरंत बाद एक और घटना घटी। इसे पटना रैली से पहले की घटना भी कहा जा सकता है या फिर इसे इस बात के सबूत के तौर पर भी देखा जा सकता है कि बीजेपी और जेडीयू के बीच बड़े-छोटे की भूमिका बदल चुकी है और नीतीश कुमार के समर्पण कर देने के बाद बीजेपी का ‘हृदय परिवर्तन’ हो गया है।
रैली से पहले पटना में मोदी-नीतीश की तसवीरों वाले पोस्टर-हॉर्डिंग्स छा गये। नीतीश-मोदी के साथ वाली तसवीरें पहले चरण के चुनाव के दिन तक गायब हो चुकी थीं। इसके लिए नीतीश के ख़िलाफ़ एंटी इन्कम्बेन्सी का फैक्टर महत्वपूर्ण समझा गया था। सवाल यह है कि क्या यह फैक्टर दूसरे चरण में नहीं होगा या फिर तीसरे चरण में ख़त्म हो जाएगा
सच्चाई यह है कि एंटी इन्कम्बेन्सी का फैक्टर ख़त्म नहीं होगा, बल्कि इसके मुकाबले ‘मोदी फैक्टर’ को खड़ा करने की रणनीति बनी है। नीतीश कुमार खुद ‘मोदी फैक्टर’ को खड़ा करने में जुट गये हैं।
अब ‘मोदी फैक्टर’ का सहारा
अब आप नीतीश कुमार को अपने किए हुए कामकाज के आधार पर वोट मांगते नहीं देखेंगे, बल्कि नरेंद्र मोदी ने जो बिहार के लिए कथित रूप से काम किया है उसका उल्लेख करते हुए पाएंगे। इसके साथ ही यह कहते हुए भी सुनेंगे कि बिहार का उद्धार अगर कोई कर सकता है तो वो नरेंद्र मोदी हैं।
अब यह बात किसी के लिए कहने, सुनने या साबित करने की नहीं रह गयी है कि पहले चरण की 71 सीटों में महागठबंधन का दबदबा रहा। जेडीयू की हालत पतली रही और पूरे एनडीए का प्रदर्शन महागठबंधन के मुकाबले बहुत फीका रहा। लिहाजा, नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के सामने समर्पण कर दिया। अब तक बीजेपी नीतीश कुमार के सामने समर्पण करती आयी थी। इसके उदाहरण ये हैं-
- साल 2000 में कम सीट होकर भी नीतीश कुमार को बीजेपी ने मुख्यमंत्री स्वीकार किया, हालांकि सरकार 7 दिन में गिर गयी थी।
- 2005-2010 के दौरान नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार नहीं करने दिया, बीजेपी शर्त मान गयी।
- 2010 में मोदी-नीतीश की साझा तसवीर वाले विज्ञापन छपने के बाद नीतीश ने बीजेपी नेताओं को दिया गया भोज रद्द कर दिया, फिर भी बीजेपी नीतीश की सरकार को समर्थन देती रही
- 2013 में नरेंद्र मोदी को पीएम उम्मीदवार बनाने के बाद नीतीश ने एनडीए से नाता तोड़ लिया। नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफ़ा दे दिया। फिर भी 2017 में नीतीश को बीजेपी ने एक बार फिर मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार किया।
- 2019 के आम चुनाव में बीजेपी ने अपनी 5 जीती हुई लोकसभा सीट भी जेडीयू के लिए छोड़ दीं और मिलकर चुनाव लड़ा। राजनीतिक रूप से यह फ़ैसला सही था क्योंकि एनडीए ने 40 में से 39 सीटें जीती थीं, मगर नीतीश के सामने झुककर समझौता करने का यह भी एक उदाहरण है।
- 2020 में भी नीतीश को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ रही है बीजेपी।
नरेंद्र मोदी ने बिहार में हुई किसी भी चुनावी सभा में ‘वंदे मातरम’ का नारा बुलंद नहीं किया तो इसकी वजह नीतीश के साथ उनकी निश्चित चंद सभाएं थीं जहां नीतीश यह नारा नहीं सुनना चाहते थे। यानी नीतीश की इस शर्त को खुद नरेंद्र मोदी ने भी मान लिया था!
जैसे-जैसे 2020 का चुनाव प्रचार बढ़ा, नीतीश कुमार के लिए जबरदस्त नाराज़गी उजागर होती चली गयी। पूर्वानुमानों में भी यह नाराज़गी सामने आयी। हालांकि अंदरखाने की सियासत में नीतीश को पटखनी देने की तैयारी भी कर ली गयी थी।
चिराग के पीछे कौन
चिराग पासवान ने जेडीयू को हर सीट पर चुनौती देने का जो फ़ैसला किया, उसके पीछे भी बीजेपी के ही थिंक टैंक का हाथ माना जा रहा है। फिर भी घोषित गठबंधन तो बीजेपी-जेडीयू और दो अन्य दलों का ही था। महागठबंधन, एलजेपी और मीडिया भी नीतीश को अलोकप्रिय होने पर जब लगातार निशाने पर ले रहा था, तो बीजेपी भी उसमें शुमार हो गयी।
देखिए, बिहार चुनाव पर चर्चा-
मोदी ने दिखाया आईना
नीतीश कुमार अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरोधी थे। दोनों सदनों में जेडीयू सांसदों ने इस मुद्दे पर मतदान से खुद को दूर रखा था। हालांकि कानून बन जाने के बाद उनका रुख बदला भी। मगर, बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सासाराम की रैली में नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार की मौजूदगी में जो शब्द कहे, वह खुद नीतीश कुमार पर सवाल खड़े कर रहे थे।
मोदी ने कहा था, “एनडीए सरकार ने आर्टिकल 370 को हटा दिया। ये लोग कहते हैं कि अगर ये वापस सत्ता में आए तो इसे दोबारा ले आएंगे। ऐसे बयान देने के बाद ये लोग बिहार में वोट मांगने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं क्या यह बिहार का अपमान नहीं है ऐसा राज्य जो अपने बेटे-बेटियों को सीमा पर सुरक्षा के लिए भेजता है।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 अक्टूबर को भी नीतीश कुमार को घेरा। दरभंगा में मंच पर नीतीश की मौजूदगी में नरेंद्र मोदी ने कहा, “आखिरकार अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। राजनीति में जो लोग हमसे तारीख पूछा करते थे, वे आज ताली बजाने को मजबूर हैं।”
जब मोदी बोल रहे थे तब नीतीश बगलें झांक रहे थे क्योंकि 2015 में नीतीश कुमार ने कहा था, “बीजेपी और आरएसएस के लोग कहते रहे हैं- राम लला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे, पर तारीख नहीं बताएंगे।”
सासाराम से दरभंगा तक जब नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार को निशाने पर रखा, तमाम पोस्टरों-होर्डिंग्स में मोदी के साथ वाली नीतीश की तसवीरें हटा दी गयीं तो पटना आते-आते नीतीश कुमार ने हथियार डाल दिए।
अब नीतीश कुमार के नेता हैं नरेंद्र मोदी। उनके ही नेतृत्व में हो सकता है बिहार का विकास। वही बिहार को बना सकते हैं विकसित राज्य। अपने नेतृत्व का समर्पण करने के बावजूद भी क्या एनडीए को एंटी इन्कम्बेन्सी से बचा पाएंगे नीतीश कुमार, यह बड़ा सवाल है।