कोरोना संक्रमण से बचने के लिए विभिन्न राज्यों से बिहार लौटे प्रवासी मज़दूरों को बिहार पुलिस ने ख़तरा माना है। मुख्यालय की ओर से अपर पुलिस महानिदेशक स्तर के अधिकारी ने 29 मई को एक चिट्ठी लिख कर कहा कि लॉकडाउन की वजह से बिहार में बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का आगमन हुआ है। इतनी बड़ी संख्या में आये लोगों को राज्य में रोज़गार मुहैया कराना संभव नहीं है।
इस चिट्ठी में कहा गया है कि ऐसी परिस्थिति में प्रवासी मज़दूर क़ानून- व्यवस्था के लिए संकट खड़ी कर सकते हैं। वे अनैतिक और ग़ैर- क़ानूनी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।
ख़तरा?
इस पत्र को राज्य के सभी ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस सुपरिटेंडेंट को भेजा जा चुका है। प्रवासी मज़दूरों पर इस प्रकार की सरकारी टिप्पणी से प्रदेश के आम लोग सकते में हैं। विपक्ष ने पुलिस मुख्यालय के पत्र को आधार बनाकर बड़ा मुद्दा खड़ा कर दिया है।हालाँकि इन तमाम घटनाक्रमों के बीच कुछ दिनों पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाहर से आये श्रमिकों- मजदूरों के लिए सम्मानजनक शब्दों का इस्तेमाल कर चुके हैं और प्रवासी शब्द के प्रयोग पर भी आपत्ति जता चुके हैं। उन्होंने कहा कि सबलोग अपने हैं और सब लोगों को यहीं रोज़गार देने की व्यवस्था कर रहे हैं।
विपक्ष का हमला
उधर राज्य के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर कड़ी आपत्ति जताते हुए श्रमिकों, दिहाड़ी मजदूरों और बेरोजगारों के मुद्दों पर सरकार को दिशाहीन बताया और प्रश्न किया कि राज्य सरकार मजदूरों को क्यों भ्रमित कर रही है।स्थानीय मीडिया में यह ख़बर आने के बाद पुलिस मुख्यालय बैकफ़ुट पर आ गया है, उसने संबंधित आदेश को आनन- फानन में चार जून को वापस ले लिया।
क्या कहना है पुलिस प्रमुख का?
बिहार पुलिस के मुखिया गुप्तेश्वर पाण्डेय ने इस पर सफ़ाई देते हुए कहा कि मुख्यालय को विभिन्न स्रोतों से जानकारियाँ मिलती रहती हैं। पत्र में प्रवासी मजदूरों के बारे में की गयी टिपण्णी उसी जानकारी के आधार पर की गयी थी। इसमें ऐसी और कोई बात नहीं थी।
उन्होंने यह भी कहा कि जब ग़लती का एहसास हुआ तब उस पत्र को वापस ले लिया गया। इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं है।