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रामनवमी हिंसा: नीतीश कुमार के पास डैमेज कंट्रोल का बहुत कम समय

रामनवमी हिंसा: नीतीश कुमार के पास डैमेज कंट्रोल का बहुत कम समय

रामनवमी पर बिहार में हुई हिंसा कई मायने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीति को प्रभावित करेगी। अगर वो इसे संभाल नहीं पाए तो इसका नुकसान उन्हें जरूर होगा। यह चिन्ताजनक है कि बिहार में जहां-जहां दंगे हुए, वहां पुलिस ने कार्रवाई करने में निष्क्रियता बरती।

बिहार में गुरुवार को रामनवमी छिटपुट घटनाओं को छोड़कर शांतिपूर्ण तरीके से मना ली गई थी लेकिन अगले दिन से दो बड़े शहरों से दंगों की खबर आनी शुरू हो गई। पहले सासाराम और फिर बिहारशरीफ से रामनवमी के जुलूस से संबंधित तोड़फोड़, मारपीट और आगजनी की खबरें तेजी से फैलीं। दोनों शहर संवेदनशील माने जाते हैं और यहां पहले भी बड़े दंगे हो चुके हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बयान दिया है कि यह किसी की जान बूझकर की गई हरकत है।

नीतीश कुमार ने यह बयान तो दे दिया लेकिन शायद उन्हें इस बात का अंदाजा होगा कि यह सिर्फ पीड़ितों के नुकसान की बात नहीं बल्कि उनकी अपनी छवि का भी मामला है। उनके लिए दंगों को कंट्रोल करने के साथ-साथ डैमेज कंट्रोल करने के लिए भी बहुत कम समय बचा है। नीतीश की छवि सुशासन के लिए थी लेकिन इस बार इस छवि को गहरा धक्का लगा है। जिस दिन उन्होंने दंगों को रोकने के बारे में बयान दिया उस किसान दोबारा बिहार शरीफ में दंगे हुए।

भारतीय जनता पार्टी जबसे नीतीश कुमार के साथ सत्ता की साझेदारी से अलग हुई है तब से बिहार में सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की बात कही जा रही है। अभी की हिंसा के विरोध में भारतीय जनता पार्टी ने राज्यपाल से मुलाकात कर उन्हें ज्ञापन भी सौंपा है लेकिन दंगा प्रभावित जिले के पदाधिकारियों के तबादले की मांग उन्होंने नहीं की है।

अभी की हिंसा उस समय भड़की है जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के दौरे पर आने वाले थे और हिंसा के कारण उनका सासाराम का दौरा रद्द किया गया। हालांकि नवादा के हिसुआ में रविवार को निर्धारित उनका कार्यक्रम होगा जो बिहारशरीफ से सटा हुआ ज़िले का हिस्सा है।

इससे पहले सन 2000 में बिहारशरीफ में एक मूर्ति को स्थापित करने व हटाए जाने को लेकर तनाव हुआ था लेकिन तब तत्कालीन राजद सरकार ने इस पर जल्द ही काबू पा लिया था। उस समय का मामला प्रशासन और मूर्ति स्थापित करने वालों के बीच का था। उसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में अल्पसंख्यक समुदाय की दुकानों को जला दिया गया था लेकिन यह मामला बहुत आगे नहीं बढ़ा था। प्रशासन की मुस्तैदी का आलम यह था कि उस समय सेना की सेवा भी ली गई थी।

इस बार नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया तो सामने आई है हालांकि उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस पर अब तक कोई बयान जारी नहीं किया है। नीतीश कुमार के बयान में यह बात तो झलक रही थी कि कुछ ऐसे लोग हैं जो जानबूझकर इस तरह का काम कर रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई के लिए जिस कठोर अंदाज़ की उनसे उम्मीद थी वह देखने को नहीं मिली।

दोनों जगह पर दंगों का कारण वही पुराना माना जा रहा है। सासाराम के दिनारा बाजार में भड़काऊ नारे लगाने की वीडियोग्राफी की गई और इस संबंध में पुलिस की कार्रवाई से पहले ही अगले दिन सासाराम शहर में विरोध प्रदर्शन किया जाने लगा। पुलिस ने यहां कुछ हद तक जल्दी स्थिति पर काबू पा लिया लेकिन बिहारशरीफ में शनिवार को भी भी दंगा जारी रहा। बिहारशरीफ में भारतीय जनता पार्टी से संबंध रखने वाले हैदर आज़म की इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान जला दी गई और वहां से सामान लूट लिए गए जिसमें उन्हें लाखों का नुकसान हुआ है। इसके अलावा ऐतिहासिक अजीजिया मदरसा को भी नुकसान पहुंचाने की खबर है। पीड़ित यह आरोप लगा रहे हैं कि बार-बार पुलिस को कॉल करने के बावजूद पुलिस ने या तो कॉल रिसीव नहीं की या समय पर पुलिस बल नहीं भेजा।

बिहारशरीफ में धार्मिक स्थलों को भी जलाने और गोलीबारी की शिकायत मिली है। शुक्रवार की घटनाओं के बाद शनिवार अपेक्षा शांतिपूर्ण रहा लेकिन शनिवार की शाम से फिर दंगे भड़कने शुरू हो गए। स्थानीय लोगों का कहना है कि बिहारशरीफ में पुलिस की मुस्तैदी में कमी के कारण ही दंगे समय पर नियंत्रित नहीं हो पाए।

सन 2000 को गुजरे 23 साल हो गए लेकिन बिहार शरीफ की संवेदनशीलता कम नहीं हुई। वहां सन 1981 में भयंकर सांप्रदायिक दंगे में सैकड़ों लोग मारे गए थे। उसके बाद भागलपुर के दंगों 1000 से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई थी। हालांकि भागलपुर की सांप्रदायिक हिंसा का संबंध रामनवमी से नहीं था लेकिन अविभाजित बिहार के 2 बड़े शहरों- जमशेदपुर और हजारीबाग में रामनवमी के अवसर पर ही बड़े दंगे हुए थे।

कई विश्लेषक यह मानते हैं कि हाल के दिनों में रामनवमी को एक राजनीतिक अस्त्र के रूप में इस्तेमाल करने का चलन बढ़ा है।

भारतीय जनता पार्टी अब यह आरोप लगा रही है कि नीतीश कुमार राज्य में कानून व्यवस्था को कायम रखने में नाकाम हो रहे हैं। आमतौर पर यह माना जाता है कि जब तक नीतीश कुमार के साथ भारतीय जनता पार्टी सरकार में रहे तो बिहार में सांप्रदायिक दंगों की घटनाएं कम ही हुईं।

इससे पहले 2018 में एक बड़ी घटना बिहार के दक्षिणी जिले औरंगाबाद में हुई थी लेकिन उसके बाद ऐसी हिंसा की शिकायत नहीं मिली थी। उस समय उस हिंसा को इसलिए भी नियोजित मांगा गया था कि वहां ऑनलाइन तलवारें मंगाई गई थी। उस साल भी बड़े पैमाने पर आगजनी की घटना में लाखों का नुकसान हुआ था।

बिहार में सांप्रदायिक दंगों को रोकने के मामले में लालू प्रसाद को चैंपियन माना जाता है। 2005 से पहले भी लालू राबड़ी के काल में छिटपुट सांप्रदायिक दंगे हुए लेकिन उसकी खास बात यह मानी जाती है कि उन्हें समय रहते नियंत्रित कर लिया गया था। 2005 से लेकर 2013 तक भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार के साथ सरकार में थी और उस दौरान भी सांप्रदायिक दंगों की घटनाएं कम ही हुई थीं। 2017 से 2022 तक एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी नीतीश कुमार के साथ सरकार में शामिल हुई और सांप्रदायिक घटनाओं की संख्या कम ही रही।

इस बार का सांप्रदायिक तनाव नीतीश कुमार के लिए इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है कि अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और यह बात सबको पता है कि ऐसे में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश की जाएगी। एक तरफ होने भारतीय जनता पार्टी से चुनौती मिलेगी तो दूसरी तरफ सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी भी पूरा जोर लगा रहे हैं। यह मामला सिर्फ नीतीश कुमार का नहीं बल्कि पूरे महागठबंधन का होगा। अगर समय रहते इन दंगों पर काबू न पाया गया तो यह नीतीश कुमार के साथ महागठबंधन के लिए राजनीतिक नुकसान का कारण बनेगा।

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