बीस मई को लोकसभा के पाँचवें चरण में बिहार में वैसे तो पांच सीटों पर मुकाबला होना है लेकिन इनमें से उन दो सीटों की काफी चर्चा है जहां से स्वर्गीय रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य मैदान में हैं।
पांचवें चरण में हाजीपुर, सारण, सीतामढ़ी, मधुबनी और मुजफ्फरपुर में एनडीए और इंडिया गठबंधन में सीधी लड़ाई नज़र आ रही है। लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष चिराग पासवान पहली बार हाजीपुर से चुनावी मैदान में हैं, हालाँकि इससे पहले वह जमुई से दो बार सांसद रह चुके हैं। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य पहली बार संसदीय चुनाव में हिस्सा ले रही हैं और सारण से उम्मीदवार बनी हैं।
हाजीपुर की सीट 1977 में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित की गई और उसके बाद से लगातार चार दशक तक यह सीट रामविलास पासवान के इर्द-गिर्द घूमती रही। इस सीट से रामविलास पासवान भारतीय लोकदल, जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और बाद में अपनी पार्टी लोजपा से कुल मिलाकर आठ बार सांसद बने। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर में 1984 में रामविलास पासवान कांग्रेस के राम रतन से हार गए लेकिन 5 साल बाद वापसी करते हुए उन्होंने पांच लाख से अधिक वोटों से जीत का रिकॉर्ड बनाया।
सन 2019 के लोकसभा चुनाव में रामविलास पासवान ने अपने भाई पशुपति कुमार पारस को हाजीपुर की विरासत सौंप दी लेकिन रामविलास पासवान के निधन के बाद उनकी पार्टी टूट गई और हाजीपुर पर उनके बेटे चिराग पासवान ने अपना दावा ठोक दिया। चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस में काफी लंबे समय तक इस बात पर जबानी जंग होती रही कि रामविलास पासवान की विरासत किसे मिलनी चाहिए और हाजीपुर की सीट से कौन लड़ेगा।
भारतीय जनता पार्टी ने जब चाचा-भतीजे में से भतीजे चिराग पासवान की पार्टी को गठबंधन के लिए चुन लिया तो पशुपति कुमार पारस ने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। उस समय ऐसा लग रहा था कि इस बार हाजीपुर से चाचा और भतीजे के बीच जबानी के साथ चुनावी जंग भी होगी लेकिन बाद में पशुपति कुमार पारस ने अपनी जिद छोड़ दी और अब वह कहीं से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, न ही उन्होंने अपनी पार्टी से कोई उम्मीदवार खड़ा किया है।
हाजीपुर सीट पर चिराग पासवान को अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत का स्पष्ट लाभ है तो उनके सामने खड़े राजद के शिवचंद्र राम अपने अनुभव का लाभ लेना चाहते हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में पशुपति कुमार पारस को 53% से अधिक मत मिले थे जबकि शिवचंद्र राम 33% वोट ला सके थे। एक बार फिर आरजेडी के टिकट पर शिवचंद्र राम हाजीपुर से चुनावी मैदान में हैं और इस बार उनके सामने ज्यादा मजबूत बताए जा रहे प्रतिद्वंद्वी चिराग पासवान हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाजीपुर में चिराग पासवान के समर्थन में चुनावी सभा की है।
दूसरी ओर अनुभव के साथ-साथ शिवचंद्र राम को तेजस्वी यादव के युवा नेतृत्व पर भरोसा है और पड़ोस की सीट वैशाली में बन रहे नए जातीय समीकरण से भी उम्मीद है। वैशाली में इस बार राजद ने मुन्ना शुक्ला को टिकट दिया है जो भूमिहार जाति से आते हैं। कागजी समीकरण में चिराग पासवान बहुत मजबूत नज़र आ रहे हैं लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि रामविलास पासवान जैसी कद्दावर शख्सियत को भी 2009 में पूर्व मुख्यमंत्री और जदयू के उम्मीदवार रामसुंदर दास ने हरा दिया था।
सारण लोकसभा संसदीय क्षेत्र को 2004 तक छपरा सीट के नाम से जाना जाता था। 2008 में परिसीमन के बाद इसका नाम बदल कर सारण हो गया। इस सीट पर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद, उनकी पत्नी राबड़ी देवी भी चुनाव लड़ चुकी हैं और अब उनकी बेटी रोहिणी आचार्य अपनी किस्मत आजमा रही हैं। इस सीट पर पहली बार 1977 में लालू प्रसाद जनता पार्टी के टिकट पर जीते थे और उन्होंने 1989 में जनता दल के टिकट पर अपनी जीत को दोहराया था।
रोहिणी का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के राजीव प्रताप रूडी से है जो उनके पिता लालू प्रसाद और उनकी मां राबड़ी देवी दोनों से चुनाव लड़ चुके हैं। 2009 के संसदीय चुनाव में राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने राजीव प्रताप रूडी को हराया था। हालांकि इसके बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में रूडी ने राबड़ी देवी को हरा दिया था। यही नहीं, 2019 में भी रूडी ने अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा और राजद के चंद्रिका राय को हराया। राजीव प्रताप रूडी ने तत्कालीन छपरा लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर 1996 में ही कामयाबी हासिल की थी। तीन साल बाद 1999 में राजीव प्रताप रूडी ने एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की।
सारण/छपरा सीट से चुनाव लड़ने का लंबा अनुभव रखने वाले राजीव प्रताप रूडी का इस बार लालू प्रसाद की बेटी रोहिणी आचार्य से मुकाबला है जो इस बात के लिए चर्चित रही हैं कि उन्होंने अपने पिता को किडनी डोनेट किया है। ऐसा माना जा रहा है कि रोहिणी आचार्य राजीव प्रताप रूडी को लालू-राबड़ी की बेटी के बतौर कड़ी चुनौती पेश कर रही हैं। हालाँकि हाल में उनका ज़्यादातर समय सिंगापुर में बीता है लेकिन चुनावी मैदान में कूदने के बाद वह पूरा जोर लगा रही हैं और महिलाओं में काफी लोकप्रिय बताई जाती हैं। रोहिणी का अपना चुनावी अनुभव भले ही ना हो लेकिन उनके पिता लालू प्रसाद छपरा में डेरा डाल रहे हैं और जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं कि इस बार 2014 की उन गलतियों से बचें जिनके कारण राबड़ी देवी महज़ चार प्रतिशत वोट के अंतर से हार गई थीं।
हाजीपुर और सारण के बाद पांचवें चरण में बिहार की तीसरी सबसे चर्चित सीट मुजफ्फरपुर को माना जा सकता है क्योंकि यहां भारतीय जनता पार्टी के निवर्तमान सांसद अजय निषाद को टिकट नहीं मिला तो उन्होंने बगावत करके कांग्रेस पार्टी से टिकट ले लिया है। रोचक बात यह है कि अजय निषाद का इस बार मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से टिकट लेकर चुनाव लड़ रहे राजभूषण निषाद से होगा जो पिछली बार सीधे मुकाबले में मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार थे।
मुकेश सहनी इंडिया गठबंधन के साथ हैं और अजय निषाद यह उम्मीद कर रहे हैं कि उनके साथ होने से सहनी या निषाद वोट का झुकाव उनकी तरफ होगा।
अजय निषाद जब भारतीय जनता पार्टी में थे तब उन्होंने तबलीगी जमात और मदरसों के बारे में विवादास्पद बयान दिया था जिसके कारण मुजफ्फरपुर में मुस्लिम समुदाय की ओर से उनका विरोध किया गया था। बाद में अजय निषाद ने उन बयानों के लिए माफी मांग ली थी और अब वह यह उम्मीद कर रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय का पूरा वोट उन्हें मिलेगा।
भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार राजभूषण निषाद सवर्ण मतदाताओं के साथ-साथ अति पिछड़ा वर्ग का वोट लेने की उम्मीद कर रहे हैं तो अजय निषाद कांग्रेस, राजद और वीआईपी के आधार वोट के सहारे चल रहे हैं। इसके अलावा उन्हें वामपंथी दलों का समर्थन भी लाभ पहुंचाएगा।
बिहार में पांचवें चरण में होने वाले चुनाव की चौथी महत्वपूर्ण सीट सीतामढ़ी है जहां से विधान परिषद के सभापति देवेश चंद्र ठाकुर जदयू के उम्मीदवार हैं। पिछली बार भी यहां से जदयू के उम्मीदवार सुनील कुमार पिंटू ही चुनाव लड़े और जीते थे लेकिन उनका संबंध वैचारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी से था। पिंटू ने साढ़े पांच लाख से अधिक वोट लाकर राजद के अर्जुन राय को हराया था। इस बार भी राजद की ओर से अर्जुन राय ही उम्मीदवार हैं लेकिन इस बार उनके सामने पिंटू के बजाय देवेश चंद्र ठाकुर हैं। अर्जुन राय 2009 में जदयू के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गए थे।
अर्जुन राय 2014 में जदयू और 2019 में राजद के उम्मीदवार के चुनाव में लड़ चुके हैं लेकिन दोनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। दूसरी ओर देवेश चंद्र ठाकुर पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में धार्मिक पर्यटन को विकसित करने के लिए काफी पूंजी निवेश कराया है। ऐसे में देवेश चंद्र ठाकुर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यों के दम पर अच्छा समर्थन मिल सकता है। दूसरी ओर अर्जुन राय इस सीट के काफी अनुभवी उम्मीदवार हैं और उन्हें इस बार पूरा भरोसा है कि राजद, कांग्रेस और वीआईपी के आधार वोट से उन्हें जीत मिल सकती है।
बिहार में पांचवें चरण की पांचवीं सीट मधुबनी है जहां से जदयू के निवर्तमान सांसद अशोक यादव एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार बने हैं। अशोक यादव पूर्व मंत्री हुकुमदेव नारायण यादव के पुत्र हैं और 2019 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के उम्मीदवार बद्री कुमार पूर्वे को हराया था। पिछली बार पूर्व मंत्री और कांग्रेस से अलग हटकर निर्दलीय चुनाव लड़े डॉक्टर शकील अहमद तीसरे स्थान पर रहे थे। अशोक यादव ने इस त्रिकोणीय मुकाबले में 61% से अधिक मत हासिल किए थे।
इस बार अशोक यादव का सीधा मुकाबला पूर्व मंत्री और दरभंगा से राजद के सांसद रहे मोहम्मद अली अशरफ फ़ातमी से है। वह चुनाव की घोषणा से पहले तक जनता दल यूनाइटेड में थे लेकिन वहां से टिकट न मिलने के कारण आरजेडी में शामिल हो गए और राजद ने उन्हें मधुबनी से उम्मीदवार बनाया है। अशोक यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम, भारतीय जनता पार्टी के आधार वोट और जातीय समीकरण से दूसरी बार जीत की उम्मीद लगाए हुए हैं। उधर फ़ातमी को राजद, कांग्रेस और वीआईपी के आधार वोट से बहुत उम्मीद है और उन्हें लगता है कि इस बार वह मधुबनी से लोकसभा पहुंच सकते हैं।