पंजाब: भगवंत मान को चेहरा बनाने से आप को कितना फायदा होगा?
आम आदमी पार्टी ने पंजाब में भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया है। भगवंत मान पंजाब में आम आदमी पार्टी के प्रधान हैं और लगातार दो लोकसभा चुनाव पार्टी के टिकट पर जीत चुके हैं। लेकिन सवाल यह है कि भगवंत मान को चेहरा बनाने से आम आदमी पार्टी को क्या फायदा होगा। आइए, इस पर बात करते हैं।
लेकिन उससे पहले पंजाब को समझना होगा। पंजाब की राजनीति तीन हिस्सों में बंटी हुई है। ये तीन हिस्से हैं- मालवा, माझा और दोआबा। मालवा में 69 सीटें हैं, माझा में 25 सीटें हैं और दोआबा में 23 सीटें हैं।
इसके साथ ही पंजाब में किस समुदाय की कितनी आबादी है इस पर भी एक नजर डालनी होगी। पंजाब में 62 फीसद सिख समुदाय में जट सिखों की आबादी 22 से 25 फीसद है जबकि दलित सिखों की आबादी 32 फीसदी के आसपास है।
भगवंत मान मालवा इलाके से आते हैं। इस इलाके में जट सिखों की बड़ी आबादी है। जट सिख का सीधा मतलब है किसान, जिसका मुख्य पेशा खेती है।
क्योंकि पंजाब में खेती-किसानी आबाद है इसलिए वहां के किसान सियासत में भी और आर्थिक रूप से भी ताकतवर हैं। इसका नजारा हमने कृषि कानूनों के खिलाफ हुए आंदोलन में भी देखा है। आम आदमी पार्टी ने भी किसान आंदोलन का खुलकर समर्थन किया था और पार्टी को उम्मीद है कि भगवंत मान के सीएम का चेहरा बनने से किसानों का वोट उसे मिल सकता है।
2017 के विधानसभा चुनाव में मालवा इलाके में कांग्रेस को 40 सीटों पर जीत मिली थी, तब राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी थी। जबकि पहली बार चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी को 18 सीटें मिली थीं। 2012 में यहां अकाली दल को 33 सीटों पर जीत मिली थी और तब उसकी सरकार बनी थी। इसलिए इस इलाके पर आम आदमी पार्टी का ज्यादा फोकस है।
भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने के पीछे आम आदमी पार्टी की रणनीति यह है कि पंजाब की जट सिख आबादी के बड़े हिस्से को अपने पाले में कर लिया जाए।
आम आदमी पार्टी की एक रणनीति यह भी है कि क्योंकि कांग्रेस मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को आगे करती दिख रही है और चरणजीत सिंह चन्नी दलित समुदाय से आते हैं तो ऐसे में दलित समुदाय का बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ जा सकता है। ऐसी स्थिति में ज्यादा फोकस जट सिखों पर किया जाए।
दिग्गजों से ली टक्कर
2011 में राजनीति में आने वाले भगवंत मान ने अपने पहले ही विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्ठल के खिलाफ ताल ठोकी थी। हालांकि तब वह हार गए थे लेकिन 2014 में नई नवेली आम आदमी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीत गए।
इसके बाद 2017 में वह शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़े। मान भले ही हार गए लेकिन उन्होंने यह दिखाया कि वह दमखम वाले नेता हैं और पार्टी के आदेश पर किसी भी बड़े नेता के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं। इससे उनकी छवि मानसिक रूप से एक मजबूत नेता वाली बनी।
भगवंत मान 2019 में अच्छे-खासे अंतर से संगरूर सीट से फिर से चुनाव जीते। भगवंत मान अकाली दल के बड़े नेता सुखदेव सिंह ढींढसा को भी हरा चुके हैं।
कई नेता गए, मान टिके रहे
पंजाबी कॉमेडी शो के जरिए पंजाब के लोगों और दुनिया भर में रहने वाले पंजाबियों के बीच पहचाने जाने वाले भगवंत मान बीते कई सालों से लगातार आम आदमी पार्टी की जड़ें मजबूत करने में जुटे हैं। पिछले 7 साल में कई नेता पंजाब में आम आदमी पार्टी छोड़ कर चले गए लेकिन भगवंत मान टिके रहे।
भगवंत मान पंजाब के मुद्दों को सड़क से लेकर संसद तक उठाते रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी वह अच्छे खासे पॉपुलर हैं।
राज्य में मान के समर्थकों की एक बड़ी संख्या है और उनके नाम का एलान होने से ये समर्थक एक्टिव हो गए हैं। निश्चित रूप से इसका भी फायदा आम आदमी पार्टी को मिलेगा।