+
प्रयागराज में दरगाह पर भगवा झंडा, 'जय श्री राम' के नारे लगाए, हंगामा

प्रयागराज में दरगाह पर भगवा झंडा, 'जय श्री राम' के नारे लगाए, हंगामा

प्रयागराज की एक दरगाह पर भगवा झंडा लहराने और 'जय श्री राम' के नारे लगाने से माहौल तनावपूर्ण हो गया। जानिए, पुलिस ने क्या किया।

रामनवमी की शोभायात्रा पर प्रयागराज में रविवार को तब हंगामा हो गया जब रामनवमी के मौके पर कुछ लोगों ने सालार मसूद गाजी की दरगाह की छत पर भगवा झंडा लहराया और 'जय श्री राम' के नारे लगाए। यह घटना शहर से कुछ दूर बहादुरगंज इलाके में हुई। इस घटना के बाद इलाक़े में तनाव फैल गया और पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए तुरंत कार्रवाई की। यह घटना धार्मिक संवेदनशीलता, सामाजिक सौहार्द और कानून व्यवस्था के सवालों को एक बार फिर से सामने ला दिया है। 

प्रयागराज की इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है। वीडियो में देखा जा सकता है कि दरगाह की मजार की छत पर कई लोग भगवा झंडा लिए चढ़े हुए हैं और वे 'जय श्री राम' के नारे लगाते हुए झंडे को लहरा रहे हैं। वीडियो में दरगाह के पास बड़ी संख्या में भीड़ भी देखी जा सकती है।

'दैनिक जागरण' की रिपोर्ट के अनुसार 'बहरिया थाना क्षेत्र के सिकंदरा स्थित गाजी मियां की दरगाह पर महाराज सुहेल देव सम्मान सुरक्षा मंच के कार्यकर्ता चढ़ गए। हाथ में भगवा ध्वज लेकर कई कार्यकर्ता दरगाह के ऊपर खड़े होकर लहराते हुए जय श्रीराम का उद्घोष करने लगे। उन्होंने गाजी मियां की दरगाह को हटाने की मांग की।' एनबीटी की रिपोर्ट के अनुसार रविवार शाम करीब 4 बजे मनेंद्र प्रताप सिंह के नेतृत्व में 20 से अधिक लोग दरगाह पर पहुंचे। इन लोगों ने दरगाह की छत पर चढ़कर भगवा झंडे लहराए और 'जय श्री राम' के साथ-साथ अन्य नारे लगाए। कुछ लोगों ने दावा किया कि यह स्थान ऐतिहासिक रूप से कोई दरगाह नहीं, बल्कि एक मंदिर का हिस्सा है। इस दौरान वहां मौजूद लोगों ने इसका विरोध किया, जिसके बाद हंगामा शुरू हो गया। 

सालार मसूद गाजी की दरगाह एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसे 11वीं सदी के सूफी संत और योद्धा सालार मसूद से जोड़ा जाता है। यह स्थान मुस्लिम समुदाय के लिए आस्था का केंद्र है, लेकिन कुछ हिंदू संगठन इसे लेकर विवादित दावे करते रहे हैं। जिस महाराज सुहेल देव सम्मान सुरक्षा मंच के कार्यकर्ताओं ने हंगामा किया, उसका नाम उन महाराजा सुहेल देव से जुड़ा है जो एक ऐतिहासिक शासक थे, जिन्हें सालार मसूद के खिलाफ लड़ाई से जोड़ा जाता है। इस घटना को इस ऐतिहासिक कथा से प्रेरित माना जा रहा है, जिसे कुछ संगठन अपने एजेंडे के लिए इस्तेमाल करते हैं।

एनबीटी की रिपोर्ट के अनुसार महाराजा सुहेल देव सम्मान सुरक्षा मंच का एक ख़त भी सामने आया है, जो कि जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर को सौंपा गया है। इस ख़त में बताया गया है कि सिकंदरा में स्थित गाजी मियां की मजार अवैध तरीके से बनाई गई है। गाजी सिकंदरा कभी नहीं आया। वक्फ बोर्ड ने जमीन कब्जाने के इरादे से मजार बनवा दी है। इसमें दावा किया गया है कि यहां पर पहले शिवकंद्रा वाले महादेव, सती बड़े पुरुख का मंदिर था। जागरण ने रिपोर्ट दी है कि गाजी मियां की दरगाह के अध्यक्ष सफदर जावेद के अनुसार दरगाह लगभग तीन सौ वर्ष पुरानी है। महमूद गजनवी के भांजे सैयद सालार मसूद गाजी की यह दरगाह है। इसकी मजार बहराइच में भी है। दरगाह पर बैशाख माह की पूर्णिमा और जेष्ठ माह के प्रथम रविवार को तीन दिवसीय बड़ा मेला लगता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार 'प्रयागराज प्रशासन ने 24 मार्च को इस दरगाह के गेट पर ताला लगा दिया था। साथ ही मई में लगने वाला सालाना मेला भी रोक दिया गया था। जब विवाद बढ़ा तो पुलिस ने कहा था कि उसने कोई ताला नहीं लगाया है। अंदर काम चलने के कारण इसमें सुबह ताला लगाया गया था।'

बहरहाल, यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब देश में ईद और रामनवमी जैसे त्योहार एक साथ मनाए गए। इस तरह की घटनाएं धार्मिक सौहार्द को प्रभावित कर सकती हैं और सामाजिक तनाव को बढ़ावा दे सकती हैं।

प्रयागराज एक धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण शहर है। यहां कुंभ मेला जैसे आयोजन भी होते हैं, जो विभिन्न समुदायों के बीच एकता का प्रतीक हैं। लेकिन इस तरह की घटनाएं इस छवि को धूमिल कर सकती हैं।

पुलिस ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई करते हुए स्थिति को नियंत्रित किया। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन को पहले से इस तरह की घटना की आशंका नहीं थी? रामनवमी जैसे संवेदनशील मौके पर धार्मिक स्थलों की सुरक्षा बढ़ाना प्रशासन की जिम्मेदारी थी। इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा किया है कि क्या कानून व्यवस्था केवल प्रतिक्रिया देने वाली है, पहले से चुस्त-दुरुस्त रहने वाली नहीं?

इस घटना से सबसे बड़ी चुनौती सामुदायिक सौहार्द को बनाए रखना है। धार्मिक स्थलों पर इस तरह के कृत्य न केवल कानून का उल्लंघन हैं, बल्कि समाज में विभाजन की रेखा को गहरा करते हैं। यह भी देखना होगा कि क्या यह घटना एक सुनियोजित कदम थी या अचानक भावनाओं में बहकर उठाया गया कदम। भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रशासन को सख्त निगरानी, खुफिया जानकारी और समुदायों के बीच संवाद बढ़ाने की जरूरत है।

प्रयागराज की यह घटना एक चेतावनी है कि धार्मिक भावनाओं का दुरुपयोग कितना खतरनाक हो सकता है। भक्ति और आस्था का प्रतीक 'जय श्री राम' के नारे को नफरत या उन्माद के लिए इस्तेमाल करना न केवल भगवान राम के संदेश के खिलाफ है, बल्कि देश की एकता को भी कमजोर करता है। 

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें