बेंगलुरू में एक फ़ेसबुक पोस्ट के बाद हुई हिंसा में स्थानीय कांग्रेस विधायक के घर को भी दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था। हिंसा के बाद विधायक अखंड श्रीनिवास मूर्ति सामने आए हैं। विधायक ने कहा है कि वह इस घटना से बुरी तरह आहत हैं। यह घटना मंगलवार रात को हुई थी।
उग्र भीड़ ने विधायक के घर के अलावा दो पुलिस थानों और कई गाड़ियों में आग लगा दी थी। घटना में तीन लोगों की मौत के साथ ही कई लोग घायल हुए हैं। घायलों में पुलिसकर्मी भी शामिल हैं।
विधायक ने एनडीटीवी से बातचीत के दौरान कहा, ‘उन्होंने मेरे घर पर हमला क्यों किया मैंने क्या किया था कोई ग़लती अगर मैंने कोई ग़लती की थी तो आप पुलिस या मीडिया के पास जा सकते थे। मैंने कुछ नहीं किया, इसलिए यह हमला मुझे बहुत दुखी करने वाला है।’ यह हिंसा विधायक के भतीजे द्वारा की गई फ़ेसबुक पोस्ट के बाद हुई थी।
मूर्ति ने कहा, ‘मेरा भतीजा, जो भी हो, जिसने भी ऐसा किया है, पुलिस उसे सजा देगी। लेकिन उन्होंने मेरे घर को क्यों सजा दी। मैंने उनके साथ क्या किया था। मेरे घर का आगे का हिस्सा पूरी तरह जला दिया गया है।’
विधायक ने कहा कि घटना के दौरान उनका परिवार घर पर मौजूद नहीं था। पुलाकेशी नगर से विधायक मूर्ति ने कहा, ‘मैं अपने क्षेत्र में एक भाई की तरह जाता हूं। उन्होंने मेरे घर को निशाना क्यों बनाया। कुछ ऐसी बात थी, मेरे पास आते।’
‘हिंसा सुनियोजित थी’
कर्नाटक सरकार ने कहा है कि यह हिंसा सुनियोजित थी। राज्य सरकार के मंत्री सी. टी. रवि ने कहा है कि हिंसा में संपत्ति का जो नुक़सान हुआ है, उसकी कीमत दंगाइयों से वसूली जाएगी। विधायक मूर्ति ने कहा कि वे कई नेताओं की इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं कि यह सुनियोजित हिंसा थी। आरक्षित विधानसभा क्षेत्र से आने वाले मूर्ति ने कहा, ‘यह 100 फ़ीसदी सुनियोजित था। जिसने भी यह किया है, पुलिस को उनके बारे में जांच करने दीजिए।’
पुलिस ने फ़ेसबुक पर विवादित पोस्ट डालने वाले विधायक के भतीजे नवीन को हिरासत में ले लिया है, लेकिन इलाक़े में तनाव बरक़रार है। नवीन का कहना है कि किसी ने उसका फ़ेसबुक अकाउंट हैक कर लिया है और यह विवादित पोस्ट उसने नहीं डाली है।
मूर्ति को इस मामले में राज्य के अन्य राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिला है। कांग्रेस नेता और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एस. सिद्धारमैया, प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डी.के.शिवकुमार, वरिष्ठ नेता बी.के.हरिप्रसाद, बीजेपी सांसद शोभा करंदलाजे, उप मुख्यमंत्री अश्वथ नारायण ने उन्हें समर्थन दिया है।
विधायक ने कहा, ‘अगर मेरी बहन के बेटे ने भी यह किया है, पुलिस के पास जाइए, उसके घर जाइए, वे यहां क्यों आए। मेरे गांव में भी उन्होंने तोड़फोड़ की है। उन्होंने ऐसा क्यों किया।’
शांत रहने की अपील
मूर्ति ने कहा कि वह लोगों से कहना चाहते हैं कि किसी को भी हिंसा नहीं करनी चाहिए। उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से कहा है कि वे शांत रहें और लड़ाई न करें। दंगाइयों ने बेंगलुरू के पूर्वी इलाक़े डी. जी. हल्ली और के. जी. हल्ली के दो पुलिस थानों के बेसमेंट में रखी 200 मोटरसाइकिलों को आग के हवाले कर दिया था।
कांग्रेस के लिए मुसीबत
बेंगलुरू हिंसा ने कांग्रेस को परेशानी में डाल दिया है। बाग़ी विधायकों की वजह से कर्नाटक में सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस अब अपने ही एक विधायक के रिश्तेदार की वजह से बड़े राजनीतिक संकट में घिर गयी है। कांग्रेस के सामने एक तरफ जहां अपने अल्पसंख्यक मुसलिम वोट बैंक को बचाने का संकट है तो दूसरी तरफ बहुसंख्यक हिंदुओं की नाराज़गी से बचने की बड़ी चुनौती।
सूत्रों का कहना है कि विधायक के घर और पुलिस थाने पर जो हमला हुआ, उसमें सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के कट्टरपंथी कार्यकर्ता शामिल थे।
चूंकि मामला एक दलित विधायक का है और मुसलमानों से भी जुड़ा है, इसलिए प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए।
मामला काफी संवेदनशील है, इस वजह से कांगेसी नेताओं को चुप रहने में ही अपनी भलाई नज़र आ रही है। लेकिन इस चुप्पी के पीछे एक बड़ी राजनीतिक वजह है।
इधर कुआं और उधर खाई
वजह यह है कि अगर कांग्रेस ने हिंसा का पुरज़ोर विरोध किया तो इसका सीधा फायदा एसडीपीआई को होगा, जो राज्य के पूरे मुसलिम वोट बैंक पर अपना एकाधिकार जमाने की कोशिश में है। लेकिन अगर कांग्रेस ने हिंसा के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोला और किया तो, बहुसंख्यक हिंदुओं के उससे बहुत दूर चले जाने का डर है। ऐसे में कांग्रेस के सामने इधर कुआं और उधर खाई वाली स्थिति है।
16 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज
बेंगलुरू पुलिस ने हिंसा को लेकर गुरूवार रात को एसडीपीआई के 16 लोगों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज की है। लेकिन एसडीपीआई की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष इलियास मुहम्मद तुंबे ने कहा कि उनके कार्यकर्ताओं पर लगाए गए आरोप ग़लत हैं। तुंबे ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘हमेशा की तरह इस बार भी ईशनिंदा को रोकने में ख़ुफ़िया एजेंसियों और पुलिस की नाकामियों को ढकने के लिए एसडीपीआई को इस मामले में घसीटा जा रहा है।’