बीबीसी इंडिया के दिल्ली और मुंबई दफ्तरों पर आयकर विभाग के सर्वे से दुनियाभर का मीडिया हैरान है। उसने आज मंगलवार को किए गए सर्वे को प्रमुखता से कवर करना शुरू कर दिया है। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन, न्यूज एजेंसी एएफपी, ब्लूमबर्ग, ड्यूश वैले, एमएसएन, रॉयटर्स समेत तमाम विदेशी मीडिया ने इस खबर को फ्लैश कर दिया है। इन सभी ने इसे छापा लिखा है।
भारतीय मीडिया ने हालांकि इसे आयकर विभाग का सर्वे बताया है। लेकिन विदेशी मीडिया ने इसे छापे के तौर पर ही दर्ज किया है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि बीबीसी ने भारतीय प्रधानमंत्री मोदी पर दो पार्ट में डॉक्यूमेंट्री बनाई, इसीलिए उस पर छापा मारा गया। न्यूज एजेंसी एएफपी ने अपने इंट्रो की शुरुआत में ही यह बात कही है कि गुजरात दंगों पर बीबीसी की डाक्यूमेंट्री के बाद ये छापे मारे गए हैं।
बता दें कि हाल ही में बीबीसी ने गुजरात दंगों और उसमें पीएम मोदी की कथित भूमिका को लेकर एक तथ्यपूर्ण डॉक्यूमेंट्री बनाई थी। यह दो हिस्सों में हैं। हालांकि बीबीसी ने इसका प्रसारण भारत में नहीं किया और न ही अपने यूट्यूब चैनल के जरिए भारत में दिखाया। लेकिन भारत में मोदी सरकार ने इसे देखे जाने पर रोक लगा दी। विपक्ष और नागरिक संगठनों ने इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। देशभर में जगह-जगह लोगों ने बीबीसी की उस डॉक्यूमेंट्री को स्वतंत्र माध्यमों से देखा। इसमें देशभर की यूनिवर्टियों में छात्रों ने कैंपस में शो आयोजित किए तो जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली में बीबीसी फिल्म दिखाने वाले छात्रों को हिरासत में ले लिया गया।
बीबीसी डॉक्यूमेंट्री ने निश्चित रूप से पीएम मोदी की छवि और साख को देश-विदेश में धूमिल कर दिया। लोगों ने गुजरात जनसंहार 2002 पर फिर से चर्चा शुरू कर दी। तमाम जगहों पर लेख लिखे गए। मेन स्ट्रीम मीडिया चुप रहा लेकिन यूट्यूब चैनलों पर बहसें हुईं। सरकारी एजेंसियां इस मामले को दबाने में जुटी रहीं। अभी यह मामला पूरी तरह थमा भी नहीं था कि आज मंगलवार को सरकार ने बीबीसी के भारत स्थित दफ्तरों पर आयकर छापे मारे।
बीबीसी पर ये छापे ऐसे समय मारे गए हैं जब कल सोमवार को ही न्यूयॉर्क टाइम्स संपादकीय बोर्ड ने भारत में प्रेस की आजादी को बड़ा खतरा बताया था। इसमें विवादों में चल रहे अडानी समूह द्वारा एनडीटीवी को खरीदने का भी जिक्र था। एनडीटीवी का रुख सरकार विरोधी रहा है।
न्यूज एजेंसी एएफपी ने मंगलवार को बीबीसी पर छापे के बाद नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं (सिविल सोसाइटीज) के हवाले से कहा कि मोदी के कार्यकाल में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में प्रेस की आजादी को नुकसान पहुंचा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स द्वारा संकलित वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 180 देशों में 10वें स्थान से गिरकर 150वें स्थान पर आ गया है। मोदी 2014 में पीएम का कार्यभार संभाला था और तब से प्रेस की आजादी बदतरीन हालात में पहुंच गई है।भारत के महत्वपूर्ण पत्रकारों, विशेष रूप से महिला पत्रकारों का कहना है कि उन्हें ऑनलाइन ट्रोल किया जाता है। अश्लील मैसेज भेजे जाते हैं। ये सारे संदेश कई बार एक जैसे होते हैं और एक जगह से आते हैं।
भारत के कई मीडिया आउटलेट्स, अंतर्राष्ट्रीय अधिकार समूह और विदेशी एनजीओ भी खुद को कड़ी भारतीय जांच का सामना कर रहे हैं।
कैथोलिक नन स्व. मदर टेरेसा की चैरिटी के विदेशी दान प्राप्त करने के लिए लाइसेंस (एफसीआरए) को पिछले साल भारतीय गृह मंत्रालय ने रद्द कर दिया था। एनजीओ को जबरदस्त आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा था।
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने बताया था कि सरकार द्वारा 2020 में उसके कार्यालयों पर छापे मारने के बाद उसके बैंक खातों को सील कर दिया गया था, जिसके बाद उसने भारत में अपना ऑपरेशन बंद कर दिया।
2021 में, भारतीय टैक्स अधिकारियों ने एक प्रमुख समाचार पत्र (दैनिक भास्कर) और एक टीवी चैनल पर छापा मारा, जो कोरोनो वायरस महामारी से निपटने के लिए सरकार की आलोचना कर रहा था, जिससे डराने-धमकाने के आरोप लगे।
क्या था बीबीसी डॉक्यूमेंट्री में
गुजरात में 2002 के दंगे एक ट्रेन में आग लगने से 59 हिंदू तीर्थयात्रियों के मारे जाने के बाद शुरू हुए थे। उस घटना में 31 मुसलमानों को आपराधिक साजिश और हत्या का दोषी ठहराया गया था।बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में अज्ञात स्रोतों के हवाले से ब्रिटिश विदेश मंत्रालय की एक क्लासीफाइड रिपोर्ट का हवाला दिया गया है जिसमें कहा गया है कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से मुलाकात की और दक्षिणपंथी हिंदू समूहों द्वारा मुस्लिम विरोधी हिंसा में कथित तौर पर "हस्तक्षेप न करने का आदेश दिया।"
ब्रिटिश विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंसा "राजनीतिक रूप से प्रेरित" थी और इसका उद्देश्य "मुसलमानों को हिंदू क्षेत्रों से बाहर करना था।"
बीबीसी की डॉक्युमेंट्री ने निष्कर्ष निकाला था कि हिंसा का व्यवस्थित अभियान चलाया गया और मुसलमानों का सफाया किए जाने के सभी संकेत हैं। यह राज्य सरकार की मदद के बिना असंभव था। ... नरेंद्र मोदी सीधे तौर पर इसके जिम्मेदार हैं। इस घटना के बाद मोदी की यूएस यात्रा पर रोक लग गई थी।
हिंसा में मोदी और अन्य की भूमिका की जांच के लिए भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने कहा कि 2012 में उसे तत्कालीन मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने के लिए कोई सबूत नहीं मिला।