सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 2002 के गुजरात दंगों पर बीबीसी की विवादास्पद डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सोमवार छह फरवरी को सुनवाई करने पर को सहमति जताई।
सीनियर एडवोकेट एमएल शर्मा ने याचिका दायर कर 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' पर सरकार द्वारा लगाए गये प्रतिबंध को दुर्भावनापूर्ण, मनमाना और असंवैधानिक बताया है। बीबीसी की विवादित डॉक्यूमेंट्री के लिंक शेयर करने वाले ट्वीट को हटाने के खिलाफ दायर वरिष्ठ पत्रकार एन राम और वकील प्रशांत भूषण वाली याचिका पर भी सोमवार को अलग से सुनवाई करेगा।
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने सीनियर ए़वोकेट एमएल शर्मा और सीयू सिंह की उन दलीलों पर गौर किया जिसमें उन्होंने मुद्दे पर उनकी अलग-अलग जनहित याचिकाओं को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था।
केंद्र सरकार ने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था। विदेश मंत्रालय ने इस डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिक्रिया देत हुए इसे 'प्रोपेगैंडा फिल्म' कहा था, जिसमें निष्पक्षता की कमी है और औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाती है।
कार्यवाही की शुरुआत में, वकील शर्मा ने जनहित याचिका दायर करते हुए कहा कि डॉक्यूमेंट्री देखने और पर लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है। सीजेआई ने उनकी दलीलों को सुनने के बाद इसे सोमवार के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
वरिष्ठ अधिवक्ता सीयू सिंह, एन. राम और प्रशांत भूषण द्वारा दायर इस मुद्दे पर एक अलग याचिका दायर की गई है। उन्होंने अपनी याचिका में उल्लेख किया कि उनके ट्वीट को कथित तौर पर आपातकालीन शक्तियों का उपयोग करके हटा दिया गया था। अपनी याचिका में उन्होंने यह भी कहा कि अजमेर में छात्रों को बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री देखने पर उन्हें कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था।
जनहित याचिका में शीर्ष अदालत से बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के पहले और दूसरे भाग को देखने, उसकी जांच करने का भी अनुरोध किया गया। गुजरात दंगों के लिए परोक्ष और अपरोक्ष रूप से जिम्मेदार और संलिप्त लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की गई है।
यह प्रतिबंध अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है याचिका में गुजरात दंगों के लिए जिम्मेदार लोगों की जांच की भी मांग की गई है।