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किताब: बटला हाउस मुठभेड़ का सच जानती थी मनमोहन सरकार; तो विवाद क्यों होता रहा?

किताब: बटला हाउस मुठभेड़ का सच जानती थी मनमोहन सरकार; तो विवाद क्यों होता रहा?

दिल्ली का बटला हाउस एनकाउंटर विवाद क्या वोट बैंक की राजनीति, टेलीविज़न चैनलों में टीआरपी की लड़ाई और षड्यंत्र का सिद्धांत गढ़ने वालों का नतीजा था? 

दिल्ली का बटला हाउस मुठभेड़ विवाद क्या वोट बैंक की राजनीति, टेलीविज़न चैनलों में टीआरपी की लड़ाई और षड्यंत्र का सिद्धांत गढ़ने वालों का नतीजा था इस एनकाउंटर ऑपरेशन का नेतृत्व करने वाले और तब दिल्ली पुलिस के संयुक्त पुलिस आयुक्त रहे करनाल सिंह का ऐसा ही मानना है। 19 सितंबर, 2008 में हुई उस मुठभेड़ और उससे जुड़े पूरे मामले पर उन्होंने एक किताब लिखी है। उस मुठभेड़ पर इतना विवाद हुआ कि इसकी गूँज पिछले लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान तक में सुनाई दी। हालाँकि तब यह मामला बीजेपी द्वारा उठाया गया था, लेकिन अब तक इसका विवाद जितना कांग्रेस के ही नेताओं में आपसी मतभेद के कारण रहा उतना दूसरे दलों के आरोप-प्रत्यारोप को लेकर नहीं रहा है। आख़िर कांग्रेस के नेता ही आपस में क्यों इस मुद्दे पर उलझते रहे हैं और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह इस पर क्या मानते थे

करनाल सिंह की इस किताब में रहस्योद्घाटन से पहले यह जान लें कि कांग्रेस के नेताओं में ही इस मुद्दे पर कैसे आपसी खींचतान होती रही। 

इस मामले में जिन्होंने सबसे ज़्यादा मुखर होकर आवाज़ उठाई वह थे कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह। वह इस पूरे मामले में दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाते रहे थे। उन्होंने तो साफ़-साफ़ यह तक कह दिया था कि वह मुठभेड़ फ़र्जी थी। वह भी तब जब कांग्रेस सरकार का आधिकारिक बयान मुठभेड़ के सही होने का इशारा करता रहा था। 

दिग्विजय सिंह ने फ़रवरी 2010 में कहा था, 'एनकाउंटर में मारे गए बच्चों को गुनहगार या निर्दोष साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है। मेरी माँग है कि इस मामले की जल्द सुनवाई हो।' एनकाउंटर की तसवीरों को दिखाकर उन्होंने दावा किया था कि एक बच्चे के सिर पर पाँच गोलियाँ लगी थीं। अगर यह एनकाउंटर था तो सिर पर पाँच गोलियाँ कैसे मारी गईं'। उनके इस बयान को तत्कालीन गृह मंत्री और कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने खारिज कर दिया था। इसके बावजूद दिग्विजय सिंह अपने बयान पर कायम रहे। उन्होंने जनवरी 2012 में कहा था, 'घटना के दो-तीन दिन बाद जिस तरह के तथ्य सामने आए उसे लेकर जो धारणा बनी, मैं अपने उस स्टैंड पर आज भी कायम हूँ।'

 - Satya Hindi

2012 में जब यह विवाद छिड़ा था और राजनीतिक बहस के केंद्र में था तब तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने इस मामले मेें फिर से जाँच शुरू करने की संभावना को नकार दिया था।

तब चिदंबरम ने यह भी कहा था कि दिग्विजय सिंह का शुरू से ही यह विचार था कि एनकाउंटर ठीक नहीं है, हम उनकी राय का आदर करते हैं, लेकिन गृह मंत्री के रूप में मैंने जाँच एजेंसियों की राय के आधार पर पाया कि मुठभेड़ पूरी तरह ठीक थी। उन्होंने कहा था कि इस मामले से जुड़ी सभी एजेंसियों की यही राय थी। 

हालाँकि इस दौरान ही कांग्रेस नेता राहुल गाँधी को बटला हाउस मुठभेड़ को लेकर विरोध का सामना करना पड़ा था। तब वह कांग्रेस महासचिव थे और यूपी के आजमगढ़ के दौरे पर गए थे। सभा हो रही थी। तब उस सभा में दिग्विजय सिंह ने यह कहकर हलचल मचा दी थी कि 'एनकाउंटर फर्जी है'। यह अलग बात है कि दिग्विजय के इस बयान से उनकी पार्टी कांग्रेस ने भी यह कहकर पीछा छुड़ा लिया था कि वह उनका अपना बयान है। उस समय पूर्व केंद्रीय मंत्री शिवराज पाटिल ने कहा था कि बटला हाउस एनकाउंटर फर्जी नहीं था। इसके बाद ही चिदंबरम का बयान आया था। 

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वैसे, आजमगढ़ की उस सभा में ही तत्‍कालीन क़ानून मंत्री सलमान खुर्शीद का बयान भी सुर्खियों में रहा था। तब मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया था कि ‘खुर्शीद ने सभा में दिल्ली के बटला हाउस एनकाउंटर का ज़िक्र करते हुए कहा था कि जब उन्होंने इसकी तसवीरें सोनिया गाँधी को दिखाईं तब उनकी आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने पीएम से बात करने की सलाह दी थी।' हालाँकि मीडिया की इन रिपोर्टों को वह खारिज करते रहे हैं कि उन्होंने ऐसा कुछ कहा था। इस पर उन्होंने तब भी सफ़ाई दी थी जब खुर्शीद के सोनिया वाले इस कथित बयान को लेकर 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले अमित शाह ने हमला किया था। एक इंटरव्यू में खुर्शीद ने कहा था कि उन्होंने सोनिया के रोने की बात नहीं कही थी। उन्होंने कहा था, "मैंने सोनिया जी को रोते हुए नहीं देखा। मैंने कहा था अगर कोई भावुक होकर कहता है, 'मुझे ये मत दिखाओ, सरकार और पुलिस को काम करने दो' तो क्या वह इसे 'आँसू बहाना' कहेंगे"

तो इस मुठभेड़ पर कांग्रेस पार्टी के ही कुछ नेता दो खेमे में बँटते दिखे थे। करनाल सिंह की पुस्तक में राजनीति के इस पहलू को भी छूने की कोशिश की गई है।

उनकी किताब का नाम है- 'बटला हाउस: एन एनकाउंटर दैट शूक द नेशन' यानी 'बटला हाउस: एनकाउंटर जिसने देश को हिलाकर रख दिया'। 

इस किताब में करनाल सिंह ने लिखा है कि अक्टूबर 2018 में बटला हाउस मुठभेड़ में तब एक नया मोड़ आ गया था जब कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने यह तय किया कि वे इस मामले को उठाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल को भेजेंगे। उन्होंने लिखा है कि वे नेता यह शिकायत करना चाह रहे थे कि 'मुसलिमों के साथ अन्याय किया गया है और उस मुठभेड़ में न्यायिक जाँच का आदेश दिया जाए'।

कपिल सिब्बल

किताब में उन्होंने आगे लिखा है, 'दूसरे नेताओं के साथ केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री कपिल सिब्बल ने सोनिया गाँधी और डॉ. सिंह से मिलने से पहले बटला हाउस क्षेत्र का दौरा किया। उसी दिन समाजवादी पार्टी के संस्थापक संरक्षक मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह ने न्यायिक जाँच के लिए डॉ. सिंह से मुलाक़ात की। सभी तरफ़ से राजनीतिक दबाव बढ़ रहा था।' करनाल सिंह ने लिखा है कि जब उन्होंने दिल्ली के तत्कालीन लेफ़्टिनेंट गवर्नर तेजिंदर खन्ना के आवास पर सिब्बल को सबूत दिखाए तब सरकार आश्वस्त हुई कि वह फर्जी मुठभेड़ नहीं थी। 

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उन्होंने किताब में लिखा है, 'आख़िरकार, सिब्बल ने स्वीकार किया कि उन्हें मुठभेड़ के सही होने और अभियुक्तों के आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होने का यक़ीन हो गया। वह डॉ. सिंह (डॉ. मनमोनह सिंह) को भी यह बताने के लिए तैयार हो गये। उन्होंने मेरा नंबर लिया और अपनी बातों पर ख़रा उतरते हुए उन्होंने शाम को मुझे यह बताने के लिए कॉल किया कि उन्होंने पीएम से चर्चा के दौरान उन्हें वह बात बता दी है।'

उन्होंने किताब में लिखा है कि 22 फ़रवरी, 2009 के दौरान दिल्ली पुलिस के समारोह में डॉ. मनमोहन सिंह ने उनकी सराहना की थी। मनमोहन सिंह ने करनाल सिंह को कहा था कि आपने अच्छा काम किया है। 

बता दें कि बटला हाउस एनकाउंटर 19 सितंबर, 2008 को हुआ था। दरअसल, पुलिस जुनैद नाम के युवक की तलाश में थी। साल 2008 के सितंबर में दिल्ली के पहाड़गंज, कनॉट प्लेस, ग्रेटर कैलाश और बाराखम्बा में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इन धमाकों में कम से कम 26 लोग मारे गए थे। दिल्ली पुलिस को इसी सिलसिले में जुनैद की तलाश थी। पुलिस का कहना था कि बटला हाउस एनकाउंटर के समय जुनैद वहाँ मौजूद था, लेकिन वो उनकी गिरफ़्त से भागने में कामयाब रहा था। 

दिल्ली सीरियल ब्लास्ट के कुछ ही दिनों बाद 19 सितंबर, 2008 को दिल्ली के बटला हाउस इलाक़े में मुठभेड़ हुई थी। इसमें दो लोग मारे गए थे और दो को गिरफ्तार किया गया था। कार्रवाई के दौरान पुलिस टीम की अगुवाई करने वाले इंस्पेक्टर मोहन चंद्र शर्मा शहीद हो गए थे। मोहम्मद आतिफ और मोहम्मद साजिद उर्फ पंकज मारे गए थे। आरिज खान और शहजाद उर्फ पप्पू भागने में कामयाब रहे थे।

स्थानीय लोगों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने इसे फ़र्ज़ी मुठभेड़ कहा था, लेकिन मानवाधिकार आयोग ने इसे मानने से इनकार कर दिया था। इसी बीच कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी इस पर सवाल उठाए थे।

बहरहाल, किताब में करनाल सिंह ने जो इन राजनीतिक घटनाक्रमों का ज़िक्र किया है वह मुठभेड़ को लेकर दिग्विजय सिंह, सलमान खुर्शीद, चिदंबरम और शिवराज पाटिल के बीच आए विरोधाभासी बयानों के पहले के हैं। यानी इस किताब के अनुसार मनमोहन सिंह सरकार को कांग्रेस नेताओं के बीच इस विवाद से पहले से ही यक़ीन था कि बटला हाउस मुठभेड़ सही थी। तो फिर इसके बावजूद अपनी पार्टी के ही नेताओं में विवाद क्यों होता रहा

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