रोमांचक हुआ रामपुर उपचुनाव, आज़म के करीबी शानू गए बीजेपी में
रामपुर विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव बेहद रोमांचक हो गया है। इस विधानसभा सीट से 10 बार विधायक रहे सपा के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आज़म खान के बेहद करीबी फसाहत अली खान उर्फ शानू ने समाजवादी पार्टी छोड़कर बीजेपी का हाथ थाम लिया है। शानू के बीजेपी में जाने को आज़म के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है।
बताना होगा कि साल 1977 के बाद यह पहला मौका है जब आज़म खान या उनके परिवार का कोई सदस्य इस सीट से चुनाव मैदान में नहीं उतरा है।
शानू ने प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह के सामने बीजेपी में शामिल होने की घोषणा की और कहा कि बीजेपी के शासन में समाज के सभी वर्गों को पूरा फायदा मिल रहा है।
कुछ महीने पहले रामपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में बीजेपी प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आसिम राजा को हरा दिया था। इस बार भी समाजवादी पार्टी ने आसिम राजा को ही चुनाव मैदान में उतारा है। बीजेपी ने यहां से आकाश सक्सेना को टिकट दिया है।
उत्तर प्रदेश में इसके साथ ही मैनपुरी लोकसभा सीट के उपचुनाव और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खतौली विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव हो रहा है। इन सभी सीटों पर 5 दिसंबर को वोट डाले जाएंगे और 8 दिसंबर को नतीजे आएंगे। इन उपचुनावों को लेकर उत्तर प्रदेश का सियासी माहौल गर्म है।
शानू के अलावा कांग्रेस के नेता और पांच बार विधायक रहे नवाब काजिम अली खान ने भी रामपुर के उपचुनाव में बीजेपी को समर्थन देने का ऐलान किया है। आज़म खान के वार्ड के सभासद तनवीर अली खान गुड्डू ने भी बीजेपी का हाथ पकड़ लिया है।
शानू रामपुर में समाजवादी पार्टी के मीडिया प्रभारी थे और उन्हें आज़म खान के करीबी लोगों में गिना जाता था। रामपुर की राजनीति में कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी में मोहम्मद आज़म खान और उनके विधायक बेटे अब्दुल्ला आज़म के बाद शानू को ही तीसरा बड़ा नेता माना जाता था। इससे पहले एक मुस्लिम प्रत्याशी एजाज अहमद ने अपना नाम वापस ले लिया था और बीजेपी प्रत्याशी आकाश सक्सेना का समर्थन करने का ऐलान किया था।
ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी इस बार रामपुर में कमल खिला पाएगी क्योंकि बीजेपी ने रामपुर जीतने के लिए आज़म के किले में जबरदस्त सेंधमारी कर दी है। इस उपचुनाव में बीएसपी और कांग्रेस ने अपने उम्मीदवारों को नहीं उतारा है, ऐसे में उनके समर्थक किसके पक्ष में मतदान करेंगे, यह भी एक अहम सवाल है।
कमल खिलाने की कोशिश
बताना होगा कि बीजेपी ने रामपुर की सीट को जीतने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के अलावा योगी सरकार के मंत्री सुरेश खन्ना सहित कई और मंत्री बीजेपी संगठन के पदाधिकारी रामपुर में कमल खिलाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री और रामपुर सीट से सांसद रहे मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि इस बार रामपुर में कमल जरूर खिलेगा। योगी सरकार में मंत्री दानिश अंसारी भी यहां बीजेपी के लिए मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन जुटाने का काम कर रहे हैं।
जबकि सपा का पूरा दारोमदार सिर्फ आज़म खान पर ही है।
अगर बीजेपी यहां कमल खिलाने में कामयाब हो जाती है तो इसे समाजवादी पार्टी की एक बड़ी हार माना जाएगा।
जीतते रहे आज़म खान
आज़म खान इस सीट से 1977 में चुनाव हारे थे। लेकिन 1980 से 1993 के बीच लगातार पांच बार विधानसभा का चुनाव जीते थे। 1996 के विधानसभा चुनाव में उन्हें कांग्रेस के अफरोज़ अली खान से हार मिली थी। इसके बाद आज़म खान को राज्यसभा भेजा गया था। लेकिन साल 2002 से 2022 तक हुए विधानसभा चुनाव में (2019 को छोड़कर) आज़म खान को लगातार जीत मिलती रही थी। 2019 में आज़म खान के लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद उनकी पत्नी तंजीन फातिमा यहां से विधायक चुनी गई थीं। 2022 का विधानसभा चुनाव आज़म खान ने जेल में रहते हुए ही जीता था।
आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला आज़म इसी जिले की स्वार टांडा सीट से विधायक हैं। आज़म की पत्नी तंजीन फातिमा भी रामपुर सीट से सपा के टिकट पर विधायक रह चुकी हैं।
निश्चित रूप से रामपुर विधानसभा का उपचुनाव इस बार बीजेपी और सपा के बीच जबरदस्त चुनावी जंग का मैदान बन चुका है। इस सीट पर कुल 3,88,994 मतदाता हैं। इसमें से लगभग 50 फीसद मुस्लिम मतदाता हैं।