केंद्र सरकार ने अगस्त में जब ऑटो सेक्टर के लिए कई तरह की रियायतों का एलान किया था, उसे और उद्योग को भी उम्मीद थी कि इससे मोटरगाड़ियों की बिक्री बढ़ेगी, ऑटो सेक्टर पर छाया संकट टल जाएगा और यह क्षेत्र एक बार फिर आगे की ओर बढ़ेगा। उत्पादन बढ़ेगा, खपत बढेगी, मुनाफ़ा बढ़ेगा और नई परियोजनाएँ आएँगी, रोज़गार के नए मौक़े भी बनेंगे। पर उम्मीद के मुताबिक़ ऐसा नहीं हो सका। नवंबर महीने की बिक्री पर नज़र डालने से साफ़ पता चलता है कि बिक्री बढ़ने के बजाय, पहले से भी कम ही हुई है। ऐसा चारपहिया ही नहीं, दोपहिया क्षेत्र में भी हुआ है। किसी एक नही, तमाम कंपनियों की बिक्री कम हुई है।
देश की सबसे बड़ी ऑटो कंपनी मारुति सुज़ुकी ने कहा है कि इसकी नवंबर में इसकी बिक्री 3.2 प्रतिशत कम हो गई। इस कंपनी ने 1,41,400 गाड़ियाँ बेचीं, जबकि पिछले साल इस दौरान इसकी 1,46,018 गाड़ियाँ बिकी थीं।
कंपनी ने कहा है कि वैगन आर, ड़िजायर और स्विफ़्ट जैसी गाड़ियों की बिक्री बढ़ी है, लेकिन मारुित ऑल्टो, एस-प्रेसो जैसी गाड़ियों की बिक्री कम हुई है। कंपनी का कहना है कि इसका निर्यात 7.7 प्रतिशत गिरा। कंपनी सिर्फ़ 6,944 गाड़ियाँ ही बेच सकी, जबकि बीते साल इस दौरान 7521 गाड़ियों की बिक्री हुई थी।
होन्डा
होन्डा कार्स लिमिटेड ने रविवार को कहा कि नवंबर में इसकी बिक्री आधे से भी कम हो गई। इसकी बिक्री 13,006 से गिर कर 6,459 गाड़ियों पर आ गई, यानी नवंबर में बिक्री में 50.33 प्रतिशत की कमी देखी गई।टाटा मोटर्स
इसी तरह पिछले महीने टाटा मोटर्स की बिक्री में 25.32 प्रतिशत की कमी देखी गई, यह सिर्फ़ 41,124 गाड़ियाँ बेच पाई, जबकि बीते साल इस दौरान इसकी 55,074 गाड़ियाँ बिकी थीं।महिंद्रा
महिंद्रा एंड महिंद्रा ने रविवार को बताया कि नवंबर में यह सिर्फ़ 41,235 गाड़ियाँ ही बेच पाई, जबकि बीते साल इसी दौरान इसकी 45,101 गाड़ियाँ बिकी थीं। इसका निर्यात इस दौरान 26 प्रतिशत गिरा। कंपनी का निर्यात 3,537 से घट कर 2,361 गाड़ियों पर आ गया।हुंदे की बिक्री बढ़ी
लेकिन, हुंदे मोटर इंडिया की बिक्री नवंबर में 7.2 प्रतिशत बढ़ गई। कंपनी इस महीने 60,500 गाड़ियाँ बेचने में कामयाब रही, जबकि पिछले साल इसी महीने इसकी 56,411 गाड़ियाँ ही बिकी थीं। इसी तरह का निर्यात 25.2 प्रतिशत बढ़ा। इसने 15,900 गाड़ियों का निर्यात किया, जबकि बीते साल इस दौरान 12,702 गाड़याँ ही बिकी थीं।क्या थीं सरकारी रियायतें?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 23 अगस्त को ऑटो उद्योग को सहारा देने के लिए कई तरह की घोषणाएँ की थीं। उन्होंने कहा था कि सरकार ने नई गाड़ियों की खरीद पर जो रोक लगा दी थी, उसे हटाया जा रहा है। इसके साथ ही बीएस-चार के तहत जिन गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन 31 मार्च, 2020 तक हो जाएगा, वे अपने पूरे समय रहेंगी यानी जितने समय के लिए वह रजिस्टर्ड हो, तब तक वह गाड़ी रखी जा सकेगी। पहले यह हुआ था कि प्रदूषण के नियमों को कड़ा कर दिया गया था और ऐसी गाड़ियों को हटाने की बात कही गई थी जो उसके मानकों को पूरा नहीं करतीं।
निर्मला सीतारमण ने यह एलान भी किया था कि गाड़ियों की नई खरीद पर अतिरिक्त 15 प्रतिशत डिप्रेशिएसन मिल सकेगी, यानी कोई कंपनी गाड़ी खरीदने के बाद उसकी कीमत का 15 प्रतिशत हर साल टैक्स के रूप में बचा सकेगी।
पहले से ही 15 प्रतिशत डिप्रेशिएसन है, यानी अब कुल मिला कर गाड़ियों पर 30 प्रतशित डिप्रेशिएसन हो गया। यह सुविधा 31 मार्च, 2020 तक मिल सकेगी।
वित्त मंत्री ने कहा कि पुरानी गाड़ियों और स्क्रैप के मामले में नई नीति बनाई जाएगी। इस नीति का मक़सद होगा ऑटो उद्योग को सहारा देना।
उस समय भी पर्यवेक्षकों ने केंद्र सरकार की इन घोषणाओं पर सवाल उठाए थे और पूछा था कि इससे कितना फ़ायदा होगा। जानकारों का कहना था कि इससे ऑटो उद्योग की समस्याओं का कोई समाधान नहीं होगा, क्योंकि उनकी मुख्य समस्या गाड़ियों की बिक्री में कमी होना है। गाड़ियों की माँग कम होने का कारण आर्थिक मंदी है। सरकार ने नई गाड़ियों की खरीद पर लगी रोक तो हटा ली, पर सवाल यह है वह कितनी गाड़ियाँ खरीदती हैं। बीएस-चार के मामले में छूट देने से गाड़ियों की बिक्री बढ़ेगी, ऐसा लगता है। पर वह छूट एक साल से कम समय के लिए ही है।