अतीक के बेटे असद के एनकाउंटर पर भी उठ रहे हैं सवाल
अतीक अहमद के बेटे असद अहमद और गुलाम के एनकाउंटर पर सवाल उठ रहे हैं। इंडिया टुडे ने झांसी में एनकाउंटर स्थल पर जाकर इस घटना की ग्राउंड स्टोरी की है और उसने जो वीडियो दिखाए हैं, उसने यूपी पुलिस की सारी कहानी को पलट दिया है। हकीकत ये है कि इंडिया टुडे की ग्राउंड रिपोर्ट इस एनकाउंटर को फर्जी बताने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगी। यूपी पुलिस और सरकार को देर सवेर अदालत में इन सवालों के जवाब देने ही होंगे।
इंडिया टुडे ने वीडियो फुटेज के जरिए जो तमाम सवाल उठाए हैं। उसको सत्य हिन्दी ग्राउंड रिपोर्ट के हवाले से पेश कर रहा है। असद अहमद और गुलाम के एनकाउंटर का जो फोटो और पुलिस द्वारा बनाया गया जो वीडियो सामने आया, उसमें दिखाया गया है कि असद और गुलाम के शवों के पास एक बाइक को गिरा दिखाया गया है। पुलिस ने जो एफआईआर दर्ज की है, उसमें बताया गया है कि असद और गुलाम बाइक पर भाग रहे थे और पुलिस उनके पीछे थी।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट में कहा गया और दिखाया गया कि उत्तर प्रदेश एसटीएफ के अनुसार, असद और गुलाम लाल और काले रंग की डिस्कवर मोटरसाइकिल पर बिना लाइसेंस नंबर प्लेट के यात्रा कर रहे थे। पुलिस उनका पीछा कर रही थी और बाद में बाइक को देखा जो सड़क से दूर एक बांस के पेड़ के पास पलट गई और गिर गई। बाइक के पलटने और सड़क से नीचे गिरने के बावजूद पथरीली और उबड़-खाबड़ जमीन होने के बावजूद बाइक पर एक खरोंच तक नहीं आई। असद और गुलाम के भागते समय बाइक गिर गई या बाद में पलट गई, यह पूछे जाने वाले सवालों में से एक है।
कहां गई वो चाबीः इंडिया टुडे के मुताबिक एक और पहलू जिस पर सवाल उठाये जा रहे हैं वह यह है कि मोटरसाइकिल की चाबी न तो चलाने वालों के पास और न ही बाइक में कोई चाबी लगी हुई मिली। एनकाउंटर स्थल की तस्वीरों में यह साफ नजर आ रहा है। असद के एनकाउंटर के बाद स्थानीय पुलिस के पहुंचने से पहले मीडियाकर्मी तस्वीरें लेने मौके पर पहुंच गए थे। हो सकता है बाइक पुरानी होने के कारण चाबी कहीं गिर गई हो। इस बात की बहुत कम संभावना है कि पुलिस मुठभेड़ में मारे गए किसी व्यक्ति ने मारे जाने से पहले बाइक से चाबी निकाल ली होगी। बाइक की खोई हुई चाबी पर रहस्य बरकरार है। कहीं गई वो चाबी।
न कोई नंबर प्लेट और न चेसिस नंबर
इंडिया टुडे के मुताबिक एनकाउंटर के दौरान असद और गुलाम जिस बाइक पर सवार बताए जा रहे थे, उसे बरामद करने वाली एसटीएफ टीम के पास बाइक की नंबर प्लेट या चेसिस नंबर नहीं है। हो सकता है कि बाइक चोरी की हो। जबकि बाइक पर आम तौर पर एक इंजन नंबर होता है। यह संभावना है कि इंजन का हिस्सा चोरी भी हो सकता है, जिससे जांचकर्ताओं और पुलिस के लिए बाइक के मालिक की पहचान करना एक कठिन काम हो जाता है। पुलिस ने सबूत के तौर पर बाइक को अपने कब्जे में ले लिया और बड़ागांव थाने पहुंचा दिया।यूपी के लोग जानते हैं कि चोरी, हादसा और जांच के दौरान पुलिस तमाम वाहनों को थाने में खड़ा कर लेती है। बाद में इनका इस्तेमाल पुलिस वाले करते पाए जाते हैं। क्या यह सवाल बनता है कि असद एनकाउंटर में बरामद बाइक का संबंध पुलिस से है। हालांकि इसकी फॉरेसिंक जांच से ही पता चलेगा, फॉरेंसिक जांच तभी मुमकिन है जब बाइक पर तमाम निशानों के नमूने लिए गए हों। यह काम बाद में कैसे हो पाएगा। क्योंकि बाइक तो अब घटनास्थल से उठाई जा चुकी है।
ताज्जुब है इतनी दूर से भाग रहे थे और हेल्मेट नहींः इंडिया टुडे के मुताबिक घटनास्थल से कोई हेल्मेट बरामद नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक, असद और गुलाम कई दिनों से लापता थे और पुलिस के रडार से बचने के लिए अलग-अलग राज्यों में रह रहे थे। यहां एक और सवाल उठता है। यदि सुरक्षा के लिए नहीं, लेकिन क्या उन्होंने पहचान से बचने के लिए हेल्मेट का इस्तेमाल नहीं किया होता? अगर कोई हेल्मेट पहनकर बाइक चलाता है तो उसे पहचानना मुश्किल होता है।
पुलिस से बचने की कोशिश करते हुए भी यह कैसे संभव है कि उन्होंने हेल्मेट नहीं पहना होगा? इस तथ्य को देखते हुए कि असद और गुलाम दोनों पुलिस द्वारा वांछित थे, और उनके सिर पर इनाम थे, हेल्मेट ने उन्हें पहचानने से बचने के लिए अपने चेहरे को ढंकने में मदद की होगी। बहरहाल, घटनास्थल पर कोई हेल्मेट नहीं मिला है।
Here are the details of how don-turned-politician Atiq's son was killed. Watch @shams_iyc | #ITVideo #AtiqAhmed #Asad #UP #AsadEncounter pic.twitter.com/eq4U7R3jnD
— IndiaToday (@IndiaToday) April 14, 2023
अगर उन्होंने हेल्मेट नहीं भी पहना था, तो एक राज्य से दूसरे राज्य की यात्रा करने के बाद वे झांसी में कैसे प्रवेश कर गए? मुठभेड़ के दौरान भी दोनों आरोपियों ने हेल्मेट नहीं पहना हुआ था। ऐसे में हेल्मेट गायब होने पर सवाल उठ रहे हैं।
पुलिस की कहानी का सबसे बड़ा झोल
इंडिया टुडे के मुताबिक राजमार्ग से जिस कच्चे रास्ते पर एनकाउंटर होना बताया गया है, वो कच्चा रास्ता ऊबड़-खाबड़ है। रास्ते में जगह-जगह गड्ढे हैं। मुठभेड़ गुरुवार दोपहर झांसी के बड़ागांव थाना क्षेत्र में हुई। पुलिस के मुताबिक, असद और गुलाम परीछा बांध के पास छिपे हुए थे। यह जगह नेशनल हाईवे से दो किलोमीटर दूर थी। उस स्थान तक पहुँचने के लिए यही छोटा-सा रास्ता पगडंडी वाला है, जो पथरीला और ऊबड़-खाबड़ है। ऐसे में किसी भी वाहन को 10 से 20 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार से नहीं चलाया जा सकता था।जबकि एसटीएफ असद और गुलाम का पीछा कर रही थी, वे इतनी दूर कैसे जा सकते थे? इतनी उबड़-खाबड़ सड़क पर पुलिस टीम के साथ दोनों ने इतनी दूरी तय की, यह सवाल खड़ा कर रहा है।
इंडिया टुडे के रिपोर्टर ने उस कच्चे रास्ते पर अपना वाहन चलाकर और एक स्कूटी का पीछा कर सच्चाई नजदीक से जानने की कोशिश की।
असद और गुलाम की लोकेशनः इंडिया टुडे के मुताबिक एनकाउंटर की जगह पर भी सवाल उठ रहे हैं। जिस इलाके में मुठभेड़ हुई, वह नेशनल हाईवे से महज दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। राजमार्ग तक पहुँचने के लिए एक छोटा सा रास्ता है, जो दूसरों के लिए बहुत खराब है। उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक, असद और गुलाम राजस्थान और अन्य जगहों पर छिपे हुए थे और झांसी भाग गए थे। इस छोटी सी ऊबड़-खाबड़ सड़क के बारे में शायद ही उन्हें पता होगा। क्योंकि इससे पहले वो इस रास्ते से कहां परिचित रहे होंगे, क्या पुलिस के पास इसका कोई सबूत है कि आरोपी रास्ते जानते थे। साथ ही, जब दोनों राजस्थान से आ रहे थे, तो कच्ची सड़क दूसरी तरफ रही होगी, इसलिए उनके देखने की संभावना बहुत कम थी।
पुलिस के पास कोई इलेक्ट्रॉनिक सबूत अपनी बात को साबित करने के लिए नहीं है। सीसीटीवी कैमरों की संभावना वाला निकटतम टोल गेट घटनास्थल से 30 किलोमीटर दूर था और आसपास कोई ढाबा भी नहीं था। इसलिए एनकाउंटर की जगह को लेकर सवाल पूछे जा रहे हैं।
घटनास्थल जिस पगडंडी पर है, वहां बीच में एक ऊंची दीवार भी है, जिस पर से कोई वाहन नहीं कुदाया जा सकता। पुलिस कह रही है कि हमारी दो टीम असद और गुलाम का पीछा कर रही थी। एक टीम बाइक के पीछे थी, दूसरी टीम आगे थी यानी उनके भागने की दिशा में उनसे भी आगे। अगर एनकाउंटर उसी टीम ने किया है तो क्या उन्होंने दीवार पर से गाड़ी कुदा दी या क्या वो दीवार के पीछे छिपे हुए थे और उन्हें पहले से मालूम था कि असद और गुलाम इसी रास्ते से भागकर आएंगे।