महाराष्ट्र: बीजेपी-शिवसेना के सामने कांग्रेस-एनसीपी, किसका दावा मजबूत
चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के साथ ही हरियाणा में भी चुनाव की तारीख़ों की घोषणा कर दी है। दोनों राज्यों में 21 अक्टूबर को मतदान होगा और 24 अक्टूबर को नतीजे आएँगे। इस ख़बर में हम बात करेंगे कि महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव को लेकर क्या हालात हैं और राजनीतिक दलों की क्या तैयारी है।
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन सत्ता में है। पहले ये ख़बरें आ रही थीं कि टिकट बंटवारे को लेकर दोनों दलों के बीच तनातनी है और दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ सकते हैं। लेकिन अब सब कुछ साफ़ हो गया है और ख़बरों के मुताबिक़ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि शिवसेना-बीजेपी मिलकर चुनाव लड़ेंगे और एक से दो दिनों के भीतर टिकट बंटवारे की घोषणा हो जाएगी।
अलग-अलग लड़े थे दोनों दल
महाराष्ट्र में 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना ने टिकट बंटवारे को लेकर झगड़ा होने के बाद अलग-अलग चुनाव लड़ा था लेकिन बाद में ये साथ आ गए थे और मिलकर सरकार बनाई थी। तब बीजेपी ने 122 सीटों पर जबकि शिवसेना ने 63 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने बड़े पैमाने पर अन्य पार्टियों के जीते हुए विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल किया है। इसी तरह शिवसेना भी दूसरे दलों के कई विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कराने में सफल हुई है। कांग्रेस को 42 और एनसीपी को 41 सीटों पर जीत मिली थी।
विधानसभा की हैं 288 सीटें
उत्तर प्रदेश के बाद लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र दूसरा सबसे बड़ा राज्य है और यहाँ लोकसभा की 48 और विधानसभा की 288 सीटें हैं। बीजेपी अपनी सहयोगी शिवसेना के साथ एक बार फिर महाराष्ट्र जीतने के लिए तैयार दिख रही है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम को विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो 226 विधानसभा सीटों पर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को बढ़त मिली जबकि विपक्षी कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को सिर्फ़ 56 सीटों पर। जबकि 6 सीटों पर अन्य को बढ़त मिली।
बीजेपी को 2014 के विधानसभा चुनावों में 27 फीसदी वोट मिले थे जबकि शिवसेना को 19 फीसदी, कांग्रेस को 17 फीसदी और एनसीपी को भी 17 फीसदी वोट मिले थे।
‘मिशन 220 प्लस’ का दिया नारा
लोकसभा चुनाव की जीत से उत्साहित होकर बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने ‘मिशन 220 प्लस’ का नारा दिया है और लोकसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें तो बीजेपी-शिवेसना का ‘मिशन 220 प्लस’ का दावा बहुत मुश्किल नहीं दिखाई देता है। लोकसभा चुनाव से पहले शिवसेना और बीजेपी के बीच कड़वाहट चरम पर थी। गठबंधन सरकार का हिस्सा होते हुए भी शिवसेना ने लगातार बीजेपी पर हमले किए थे और नरेंद्र मोदी को भी नहीं बख्शा था।
लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत के बाद शायद शिवसेना को यह समझ आ गया है कि गठबंधन को तोड़ने से उसे ही नुक़सान होगा इसलिए उसके तेवर पिछली बार की तरह तीख़े न होकर शांत हैं।
गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस महा जन आदेश यात्रा के माध्यम से मतदाताओं तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी के लिए महाराष्ट्र में चुनावी रैली कर चुके हैं।
कांग्रेस-एनसीपी में भगदड़
दूसरी ओर कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी(एनसीपी) महागठबंधन में निराशा छाई हुई है। महाराष्ट्र में 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 2 सीटों पर जीत मिली थी लेकिन इस बार उसे केवल 1 ही सीट मिली है। एनसीपी को इस बार सिर्फ़ 4 लोकसभा सीटों पर जीत मिली है। पार्टी की ख़राब हालत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अशोक चव्हाण भी चुनाव हार गए थे। वरिष्ठ कांग्रेस नेता और विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे राधाकृष्णन विखे पाटिल और पूर्व मंत्री कृपाशंकर सिंह बीजेपी में शामिल हो गए हैं। इसके अलावा एनसीपी के भी कई वरिष्ठ नेता उसे छोड़ चुके हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुईं फ़िल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर पार्टी छोड़ चुकी हैं और इसके बाद मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरुपम और मिलिंद देवड़ा के बीच झगड़ा चौराहे पर आ चुका है।
हालाँकि कांग्रेस और एनसीपी के बीच महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में सीटों को लेकर बंटवारा हो गया है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि कांग्रेस और एनसीपी 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। समझौते के मुताबिक़, 38 सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ी गई हैं। लेकिन इन दलों में जिस तरह की भगदड़ मची है और मुंबई कांग्रेस में जो घमासान की ख़बरें आम हुई हैं, उससे इनके लिए बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को टक्कर देना बेहद मुश्किल साबित दिख रहा है।
ईवीएम से ही होंगे चुनाव
हाल ही में सभी विपक्षी दलों ने ईवीएम हटाने को लेकर महाराष्ट्र में आंदोलन खड़ा करने की कोशिश की थी। तब इन दलों के नेताओं ने कहा था कि जर्मनी जैसे कई पश्चिमी देशों में ईवीएम से असंतोष के चलते इसके प्रयोग को बंद कर दिया गया है। इन विपक्षी दलों की माँग थी कि विधानसभा का चुनाव ईवीएम के बदले बैलेट पेपर से हो। लेकिन चुनाव आयोग ने साफ़ कर दिया है कि विधानसभा चुनाव ईवीएम से ही होंगे।