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शिवपाल-अखिलेश की अलग-अलग यात्राएँ, बीजेपी को फ़ायदा?

शिवपाल-अखिलेश की अलग-अलग यात्राएँ, बीजेपी को फ़ायदा?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में यदि अखिलेश और उनके चाचा शिवपाल अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे तो फ़ायदा क्या बीजेपी को होगा?

पिछले चुनाव में सिर्फ एक सीट जीतने वाली मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) क्या सौ सीटों पर उम्मीदवार उतार कर समाजवादी पार्टी की साइकिल को पंक्चर करने की योजना पर काम कर रही है?

क्या शिवपाल यादव अपने भतीजे अखिलेश के साथ चुनावी गठबंधन न होने की स्थिति में बीजेपी को फ़ायदा पहुँचाने की रणनीति पर चल रहे हैं?

आखिर इस यादव संघर्ष का नतीजा यादवों की दोनों पार्टियों को नुक़सान और संघ परिवार की पार्टी बीजेपी को लाभ पहुँचा कर होगा?

ये सवाल ऐसे समय उठ रहे हैं जब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं।

यात्राएं

ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और उनके चाचा व प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के नेता शिवपाल सिंह यादव मंगलवार यानी 12 अक्टूबर को अलग-अलग यात्राएँ निकाल रहे हैं।

अखिलेश कानपुर से 'रथ यात्रा' शुरू करेंगे और पहले चरण में हमीरपुर और जालौन जाएंगे। इस यात्रा में ज़िले भर के समाजवादी पार्टी कार्यकर्ता जमा होंगे। पार्टी ने कह रखा है कि बाहर के लोग न आएं और सिर्फ ज़िले के कार्यकर्ता  यात्रा में शिरकत करें।

दूसरी ओर शिवपाल इसी दिन मथुरा से 'सामाजिक परिवर्तन यात्रा' निकालेंगे और राज्य के सभी 403 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा करेंगे। यह यात्रा 27 नवंबर को अमेठी में ख़त्म होगी।

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सियासी चाल?

शिवपाल की यह यात्रा राज्य की राजनीति के लिए अहम इसलिए है कि उन्होंने इसके पहले अखिलेश को प्रस्ताव दिया था कि दोनों दल आपस में गठजोड़ कर लें और एक साथ मिल कर चुनाव लड़ें।

लेकिन अखिलेश यादव ने अपने चाचा को अब तक कोई जवाब नहीं दिया है।

शिवपाल का अल्टीमेटम!

यात्रा शुरू करने के पहले 23 सितंबर को शिवपाल ने अलीगढ़ में कहा था कि उनकी पार्टी 100 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि शिवपाल ने राजनीतिक मोलभाव के लिए यह एलान किया और वे समाजवादी पार्टी पर दबाव बढाना चाहते हैं।

अखिलेश की चुप्पी

लेकिन जब अखिलेश ने तुरन्त जवाब नहीं दिया तो शिवपाल ने चिढ़ कर कहा कि वे अनिश्चितकाल तक इंतजार नहीं कर सकते।

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के नेता ने 7 अक्टूबर को एक कार्यक्रम के दौरान अखिलेश को चेतावनी देते हुए कहा था, 

अखिलेश की ओर से अब तक कोई जवाब नहीं आया है, ऐसे में चुनाव में टकराव होगा। हम अपनी यात्रा का एलान कर चुके हैं।


शिवपाल सिेंह यादव, नेता, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)

कौरव-पाँडव?

इसके बाद उन्होंने कौरव-पाँडवों से अपने परिवार की तुलना करते हुए चेतावनी दे डाली कि इससे दोनों परिवारों को ही नुक़सान होगा। उन्होंने कहा,

द्रोणाचार्य, भीष्म और दुर्योधन को कोई नहीं मार सकता था, लेकिन श्रीकृष्ण पाँडवों के साथ थे, लिहाज़ा सारे लोग नष्ट हो गए।


शिवपाल सिेंह यादव, नेता, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)

उन्होंने कहा, “पाँडवों की तरह हमने भी सिर्फ सम्मान माँगा है, हमारी कोई राजनीतिक महत्वाकाँक्षा नहीं है। मैं मंत्री और पार्टी का अध्यक्ष रह चुका हूँ।” 

शिवपाल यादव ने यह भी कहा,

कौरवों को पूरा साम्राज्य मिल गया, पाँडव सिर्फ पाँच गाँव चाहते थे। पाँडवों की तरह हम भी सिर्फ सम्मान चाहते हैं, पर हमें वह भी नहीं दिया जा रहा है।


शिवपाल सिेंह यादव, नेता, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया)

क्या चाहते हैं मुलायम?

पर्यवेक्षकों का कहना है कि यदि अखिलेश और शिवपाल के दल एक साथ मिल कर चुनाव लड़ेंगे तो उन्हें शानदार कामयाबी मिल सकती हैं।

समझा जाता है कि मुलायम सिंह यादव इस सच्चाई को जानते हैं और इसलिए वे चाहते हैं कि दो दल एक साथ मिल कर चुनाव लड़ें। पर अखिलेश मानने को तैयार नहीं हैं।

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अखिलेश फिलहाल अपना पूरा ध्यान रथ यात्रा पर केंद्रित किए हुए हैं। जिस बस से वे रथ यात्रा निकालना चाहते हैं, उस पर मुलायम सिंह यादव ही नहीं, मुसलमानों के बीच लोकप्रिय आज़म ख़ान की भी तसवीर लगी हुई है।

इस यात्रा का नारा बनाया गया है- 'किसान, महिला, युवा, ग़रीब, कारोबारी, सबकी एक आवाज़ है, हम समाजवादी'।

दूसरी ओर, शिवपाल यादव के बेटे आदित्य ने पत्रकारों से कहा, हमारी यात्रा मौजूदा राज्य सरकार के ख़िलाफ़ है। इसकी तारीख का एलान पहले ही कर दिया गया था।

उन्होंने समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की संभावित यात्रा का समर्थन करते हुए कहा कि विपक्ष को इस तरह की यात्राएं निकालनी चाहिए।

लेकिन यदि दोनों यादव चुनाव में एक-दूसरे के मुखातिब हुए तो दोनों को ही नुक़सान होगा, यह साफ है। सरकार विरोधी यानी बीजेपी के ख़िलाफ़ पड़ने वाले वोट यदि बँटेंगे तो उसका फ़ायदा किसे मिलेगा, यह साफ है।

तो क्या कौरव- पाँडव युद्ध होकर रहेगा?

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