पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के लिए वोट पड़ चुके हैं। नतीजे 11 दिसंबर को आएँगे। लेकिन 7 दिसंबर को आख़िरी वोट पड़ने के तुरंत बाद टीवी चैनलों पर एग्ज़िट पोल की बहार आ गई। इन पाँच चुनावों में बीजेपी, कांग्रेस, मिज़ो नैशनल फ़्रंट और तेलंगाना राष्ट्र समिति मुख्य खिलाड़ी हैं। बसपा, सपा, तेलुगु देशम, कम्युनिस्ट पार्टी जैसे कुछ दल साइड रोल में हैं। आख़िरी वोट के बाद एग्ज़िट पोल के उत्सव के साथ ही नतीजों के इंतज़ार का काम शुरू हो गया। तरह-तरह के बुकराती से परिपूर्ण ज्ञान का अजीर्ण आजकल दिल्ली की सड़कों, दफ़्तरों, रेस्तराओं में डंके की चोट पर देखा जा सकता है।
जो एग्ज़िट पोल आए हैं, उनसे नतीजों के बारे में कोई तसवीर साफ़ नहीं हो रही है। साफ़ होने की बात तो दूर, माहौल और भी पेचीदा हो गया है। राजस्थान में तो सभी चैनलों ने कांग्रेस की जीत का दावा किया है लेकिन उसके अलावा हर राज्य में तसवीर बिलकुल घालमेल हो गई है। किसी सर्वे में कांग्रेस जीत रही है तो किसी में बीजेपी। एक ही राज्य की अलग-अलग भविष्यवाणियाँ कर दी गई हैं। एक चैनल ने तो बहुत ही मनोरंजक एग्ज़िट पोल अपने दर्शकों को दिखाया। उसने दो एजेंसियों से एग्ज़िट पोल करवाया। एक एग्ज़िट पोल में बीजेपी की जीत दिखाई जा रही थी तो उसी चैनल पर दिखाए जा रहे दूसरे एग्ज़िट पोल में कांग्रेस की जीत का मौसम था। समर्पित पत्रकारिता की दिशा में इस चैनल का यह कारनामा निश्चित रूप से एक नया पैमाना है। नतीजों के दिन इस चैनल के बहुत ही ऊँची आवाज़ वाले सर्वज्ञ ऐंकर घोषित करेंगे कि उनके चैनल पर दिखाया गया एग्ज़िट पोल बिलकुल सही है क्योंकि उनका चैनल तो दोनों ही पार्टियों की जीत का एग्ज़िट पोल दिखा चुका है।
एग्ज़िट पोल कितना सच?
लेकिन एग्ज़िट पोल वाली एजेंसियों की भी बात निराली ही है। किसी ने बीजेपी की जीत बताई तो किसी ने कांग्रेस की। पिछले कई चुनावों का तज़ुरबा है कि एजेंसी की भविष्यवाणी या डेटा का विश्लेषण सच्चाई से काफ़ी दूर होता है। लेकिन एजेंसी के ज़िम्मेदार लोग हिम्मत नहीं हारते। वे रिज़ल्ट के दिन टीवी पर विराजते हैं और बाक़ायदा समझाते हैं कि उनकी भविष्यवाणी बिलकुल सही थी, बस थोड़ा-सा आँकड़ों में छुपे हुए कुछ तथ्य सीटों की भविष्यवाणी करते समय नज़रअंदाज़ हो गए थे। कुछ चैनलों ने तो जो भविष्यवाणी दिखाई, उसके लघुत्तम और महत्तम में इतना फ़र्क़ था कि कोई भी उस भविष्यवाणी को कर सकता था। एक चैनल पर दिखाया जा रहा था कि बीजेपी किसी राज्य में 102-122 सीट लाएगी और कांग्रेस 104–124 सीटें। अब बताइए, इसका क्या मतलब है?
टीवी ऐंकरों के अजब-ग़ज़ब तर्क
इससे भी ज़्यादा दिलचस्प बात यह है कि टीवी चैनलों में जो कुछ ऐसे ऐंकर हैं जिनकी किसी पार्टी के साथ पक्षधरता उनके गले में मेडल की तरह लटकती रहती है। वे भी बहुत दुखी थे और अपने तरीक़े से व्याख्या कर रहे थे। एक बानगी देखिये : एक ऐंकर ने कहा कि बीजेपी ने राजस्थान में भारी उछाल दर्ज़ की है। उन्होंने फ़रमाया कि जब पहला चुनाव पूर्व सर्वेक्षण आया था तो राजस्थान में बीजेपी को 20-25 सीटें मिलती बताई जा रही थीं और आज एग्ज़िट पोल के दिन वह संख्या 70-80 तक पहुँच गई है। इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की ज़बरदस्त चुनाव जीतने की रणनीति को जाता है। उन्होंने दावा किया कि दुनिया जानती है कि जितनी मेहनत अमित शाह चुनाव को जीतने के लिए करते हैं, उतनी मेहनत किसी पार्टी का कोई भी नेता नहीं कर सकता। कांग्रेस के प्रति आस्था रखने वाले एक ऐंकर ने बताया कि विधानसभा चुनाव 2018 का सीधा मतलब यह है कि लोकसभा 2019 का नतीजा यही होगा। अब इनसे कोई पूछे कि इतने तूफ़ानी बयानों का क्या मतलब है। अपनी पूर्वाग्रही कुंठाओं को टीवी पर एलानिया व्यक्त नहीं करना चाहिए। इससे पत्रकारिता के पेशे का बहुत नुक़सान होता है।
एग्ज़िट पोल को मानता कौन है?
टीवी पर एग्ज़िट पोल की बहस के दौरान पिछले कई हफ़्तों से चुनावी प्रचार टाइप टीवी बहसों को झेल रही देश की जनता के लिए मौसम थोड़ा बदला हुआ था। हिन्दू-मुस्लिम, मंदिर-मसजिद, चीन-पाकिस्तान आदि विषयों से पक चुके लोगों ने हालात-ए-हाजरा पर तथ्यात्मक टिप्पणी करते हुए नेताओं और पत्रकारों को देख कर निश्चित रूप से राहत की साँस ली होगी। लेकिन वहाँ भी विरोधाभासी बयानों की कमी नहीं थी। बीजेपी वाले पिछले चार-पाँच साल से हर चुनाव के बाद टुडेज़ चाणक्य के विश्लेषण की जय-जयकार करते रहते थे। लेकिन इस बार वे उसको ग़लत बताते पाए गए। एक प्रवक्ता ने तो उसकी क्षमता पर गंभीर अनियमितता का आरोप भी लगा दिया। लेकिन मज़ा दूसरी तरफ़ था। इस बार वही कांग्रेसी जो एग्ज़िट पोल के दिन टुडेज़ चाणक्य को बंकम बताते थे, इस बार उसकी शान में कसीदे पढ़ते देखे गए। शायद ऐसा इसलिए था कि टुडेज़ चाणक्य ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी बहुमत का तख़मीना पेश कर दिया है।
तसवीर को और धुँधला कर दिया
कुछ मिला कर एग्ज़िट पोल के दिन की व्याख्या यह है कि उसके भाँति-भाँति के आँकड़ों ने तसवीर को बिलकुल धुँधला कर दिया है। चुनाव नतीजों के बारे में सच्चाई की आहट ले सकने में इंसानी क्षमता को इन आँकड़ों ने बुरी तरह से झकझोर दिया है। इस बीच राजनीतिक गलियारों में तरह-तरह की गपशप चल रही है। राजनेताओं का तो इन नतीजों पर बहुत-कुछ दाँव पर लगा हुआ है। कई अति उत्साही ऐंकरों ने प्रचारित कर रखा था कि विधानसभा 2018 वास्तव में लोकसभा 2019 का सेमीफ़ाइनल है और अब एग्ज़िट पोल के बाद उनकी बोली बदल रही है।
एग्ज़िट पोल से ज़्यादा सटीक सट्टा बाजार?
लेकिन सच्चाई यह है कि यह 2019 का सेमीफ़ाइनल है, इसमें कोई दो राय नहीं है। 7 दिसम्बर को हुए एग्ज़िट पोल ने दिल्ली के राजनीतिक दरबारों में होने वाली बातचीत में काफ़ी नरमी का तड़का दे दिया है, इस बात से कोई इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन यह भी अब बहुत ज़रूरी है कि अपने-आपको मज़ाक का विषय बनाने से रोकने के लिए सर्वे वालों को चाहिए कि अपने काम को और भी पेशेवराना अंदाज़ में करने की कोशिश करें। यूरोप और अमरीका की कम्पनियाँ भी एग्ज़िट पोल करती हैं और उनके नतीजे सच से इतने दूर नहीं होते जितने हमारे होते हैं। इन एजेंसियों की क्षमता पर एक ज़बरदस्त तमाचा सट्टा बाज़ार से भी आता है जो फलोदी और इंदौर की अंधेरी कोठरियों में बैठ कर, गैरक़ानूनी तरीके से चुनावी नतीजों के बारे में लगभग सही आकलन करते हैं। दुनिया लगातार छोटी होती जा रही है और अगर प्रतिस्पर्धा में रहना है तो चुनाव का सर्वे करने वाली कंपनियों को अपनी पेशेवराना क़ाबिलियत को बढ़ाना होगा।