असम-मिज़ोरम विवाद की जड़ में है अंग्रजों का 150 साल पुराना फ़ैसला
असम-मिज़ोरम सीमा पर झड़प और उसमें असम पुलिस के छह लोगों की मौत से पुराने घाव हरे हो गए हैं और अतीत से जुड़े कई सवाल खड़े हो गए हैं।
यह पहली बार नहीं है कि दोनों राज्यों में सीमा को लेकर विवाद हुआ है न ही यह पहली बार हुआ है कि दोनों राज्यों ने विवाद को पीछे छोड़ते हुए बेहतर रिश्तों की शुरुआत की है, बाद में उन्हीं मुद्दों पर विवाद फिर उभरे हैं।
क्या है मामला?
यह जानने के लिए हमें असम के इतिहास की ओर झांकना होगा, जब वहाँ चाय की खेती शुरू हुई थी और ईस्ट इंडिया कंपनी वहाँ की चाय यूरोप में बेचकर मालामाल हो रही थी।
उन्नीसवी सदी के बीचोबीच अंग्रेज़ों का ध्यान असम की बराक घाटी की ओर गया था जब लगा था कि वहाँ चाय बागान की बेहतर संभावना है। बराक घाटी के कछार, हेलाकांडी और करीमगंज ज़िलों में चाय बागाल लगने शुरू हो गए।
असम-मिज़ोरम के बीच सीमा संकट के बीज उसी समय पड़ गए।
इन ज़िलों से सटी लुशाई की पहाड़ियों पर मिज़ो मूल के लोग रहते थे।
अंग्रेजों ने अगस्त, 1875 में एक आदेश पारित कर कछार ज़िले और लुशाई के बीच सीमा रेखा खींची और उसे असम गज़ट में प्रकाशित किया। इसे मिज़ो क़बाइली सरदारों ने मान लिया।
इनर लाइन रिज़र्व फ़ॉरेस्ट
इसके दो साल बाद इसी आधार पर इनर लाइन रिज़र्व फ़ॉरेस्ट की शुरुआत हुई।
लेकिन संकट की शुरुआत 1933 में हुई जब लुशाई पहाड़ियों और मणिपुर के बीच सीमा तय की गई। मणिपुर उन दिनों एक राजा के अधीन था।
मणिपुर की सीमा रेखा लुशाई की पहाड़ियों, कछार ज़िले और मणिपुर राज्य के बीच तय हुई।
लेकिन मिज़ोरम ने इस बँटवारे को स्वीकार नहीं किया। उन्होंने 1875 में तय की गई सीमा रेखा की ओर ध्यान दिलाया और उसे ही मानने पर ज़ोर दिया।
असम का बँटवारा
आज़ादी के समय नागालैंड 1963 में, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और मिज़ोरम 1972 में असम से काट कर अलग कर दिए गए।
मिज़ोरम और असम में यह सहमति बनी कि स्थिति जस की तस बनी रहेगी।
लेकिन फरवरी 2018 में मिज़ोरम के छात्र संगठन मिज़ ज़िरलाई पॉल ने सीमा पर लकड़ी का एक घर बनाया। असम पुलिस ने यह कह कर इसे गिरा दिया कि यह असम की सीमा में है। इस पर हिंसक झड़पें हुईं।
विवाद की शुरुआत
पिछले साल अक्टूबर में असम के लैलापुर में एक निर्माण कार्य का मिज़ोरम ने यह कह कर विरोध किया था कि यह उसके इलाक़े में है।
लैलापुर असम के कछार ज़िले में है और यह मिज़ोरम के कोलासिब ज़िले के वैरेंगेते इलाक़े से सटा हुआ है।
इस हिंसा के बाद 9 अक्टूबर को असम के करीमगंज और मिज़ोरम के मामित ज़िले के लोगों के बीच झड़पें हुईं।
मिज़ोरम के दो बाशिंदों के पान के बगीचे में आग लगा दी गई थी।
कछार में एक और वारदात हुई, जिसमें मिज़ोरम पुलिस के लोगों पर लैलापुर के लोगों ने पत्थर फेंके। इसके बाद मिज़ोरम के लोग एकत्रित हो गए और उन्होंने लैलापुर के लोगों पर हमला कर दिया।
मौजूदा विवाद की शुरुआत इसी इलाक़े से हुई। मिज़ोरम के कोलासिब के डिप्टी पुलिस सुपरिटेंडेंट एच. ललथंगलियाना के मुताबिक़,
कुछ साल पहले असम और मिज़ोरम के बीच स्थिति जस का तस बनाए रखने पर सहमति बनी थी। लेकिन लैलापुर के लोगों ने इस क़रार को तोड़ा और सीमा पर अस्थायी निर्माण कार्य किया। मिज़ोरम के लोग इस पर वहाँ गए और आग लगा दी।
दोष किसका?
लेकिन असम के कछार ज़िले के उपायुक्त ने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा कि वह ज़मीन असम की है।
लेकिन उस ज़मीन पर मिज़ोरम के लोग खेत करते आए हैं।
करीमगंज के उपायुक्त अनबथुम एमपी का कहना है कि हालांकि मिज़ोरम के लोग उस ज़मीन पर खेती करते आए हैं, पर वह करीमगंज के सिंगला रिज़र्व फॉरेस्ट का हिस्सा है।
इसका एक तीसरा और रोचक पहलू है बांग्लादेश। मिज़ोरम के लोगों का कहना है कि बांग्लादेश से आए अवैध घुसपैठिए इस सीमा पर असम में बसे हुए हैं। सारा बावेला वे ही करते हैं। वे पेड़ काट ले जाते हैं, बागवानी खराब कर देते हैं, पत्थरबाजी करते हैं।
एक ही देश के दो राज्य!
बहरहाल, यह बेहद चिंताजनक स्थिति है कि भारत के दो राज्य सीमा पर इस तरह लड़ते हैं मानो वे दो अलग-अलग देश हों।
दिलचस्प बात यह है कि दिनों ही राज्यों में बीजेपी की सरकार है, केंद्र में भी बीजेपी की सरकार है। असम और मिज़ोरम के मुख्यमंत्री ट्वीट कर केंद्रीय गृह मंत्री को टैग करते हैं, पर वे आपस में बात नहीं करते।
केंद्रीय मंत्री बीते हफ़्ते पूर्वोत्तर गए हुए थे, इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाक़ात की थी, आपस में बात कर विवाद सुलझाने को कहा था। लेकिन उनके जाते ही विवाद फिर बढ़ा और गोलीबारी हुई। असम के छह पुलिस अफ़सर मारे गए, पड़ोसी राज्य की गोलीबारी से।