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असम में पुराना है मिया और असमिया का विवाद

असम में पुराना है मिया और असमिया का विवाद

असम में मिया संग्रहालय को क्यों सील किया गया? आख़िर मिया और असमिया का विवाद क्या है? जानिए, मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा इस पर पर रुख क्या है।

असम में अवैध होने के आरोप में खुलने के दो दिनों के भीतर ही मिया (मियां) संग्रहालय सील कर उसके संस्थापकों की गिरफ्तारी भले सुर्खियों में हो, राज्य में मिया और असमिया का विवाद देश के विभाजन जितना ही पुराना है। पड़ोसी बांग्लादेश से होने वाली घुसपैठ की समस्या और यह विवाद एक-दूसरे से जुड़े हैं। असम में बंगाली मूल के मुसलिमों के लिए मिया (मियां) शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इसे ज़्यादा अच्छा शब्द नहीं मानते और कुछ लोग इसे अपमान के रूप में भी देखते हैं। तत्कालीन ब्रिटिश शासकों ने इस तबक़े के लोगों को 1890 के दशक के उत्तरार्ध में असम में ब्रह्मपुत्र नदी के दोनों किनारों पर खेती और दूसरे कामों के लिए बसाया था।

राज्य में इस तबक़े के लोगों को सम्मान की निगाह से नहीं देखा जाता। ख़ासकर बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सत्ता में लौटने और सरकार की कमान हिमंत बिस्वा सरमा के हाथों में जाने के बाद इस तबक़े के प्रति अपने रवैए को लेकर सरकार अक्सर कठघरे में रही है।

बीते विधानसभा चुनाव में हिमंत ने साफ़ कहा था कि उनको मिया मुसलमानों के वोट नहीं चाहिए। उनका कहना था, ‘भाजपा को असम में बंगाली मूल के मुसलिम समुदाय के वोटों की ज़रूरत नहीं है। मुझे मिया मुसलिमों का वोट नहीं चाहिए।’ राज्य के बहुत से लोगों का मानना है कि प्रवासी मुसलिमों की वजह से असम ने अपनी पहचान, संस्कृति और भूमि खो दी है। सरकार ने सत्ता में आने के बाद कई विवादास्पद क़ानून तो बनाए ही, बड़े पैमाने पर अवैध अतिक्रमण हटाने का अभियान भी चलाया। यह अभियान कई मौक़ों पर काफी हिंसक साबित हुआ। लेकिन सरकार अपने रुख पर अडिग रही।

बीते साल जुलाई में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने मवेशी का वध, उपभोग और परिवहन विनियमित करने के लिए एक विधेयक असम विधानसभा में पेश किया था। तब सरमा ने कहा था कि नए क़ानून का मक़सद सक्षम अधिकारियों की ओर से चिन्हित जगहों के अलावा बाक़ी जगहों पर गोमांस की खरीद-फरोख्त पर रोक लगाना है।

इस नए क़ानून के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे। क़ानून का उल्लंघन करने की स्थिति में दोषियों को कम से कम आठ साल की क़ैद और 5 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। नए क़ानून के तहत अगर कोई व्यक्ति दूसरी बार दोषी पाया जाता है तो सजा दोगुनी हो जाएगी। उस समय कई अल्पसंख्यक संगठनों ने इसका विरोध किया था। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ़) के विधायक अमीनुल इस्लाम का आरोप था, ‘बीजेपी ध्रुवीकरण के मक़सद से इस क़ानून के ज़रिए एक ख़ास तबक़े को निशाना बना रही है।’

इसी तरह राज्य में सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए दो बच्चों वाला नियम अनिवार्य किया गया है। यानी जिनको दो से ज्यादा बच्चे होंगे उनको सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ नहीं मिल सकेगा।

हालाँकि अनुसूचित जाति, जनजाति और चाय बागान के आदिवासी मज़दूरों को इससे छूट दी गई है। इस फ़ैसले पर भी काफी विवाद हुआ था। माना गया था कि सरकार के निशाने पर राज्य के अल्पसंख्यक हैं। उससे पहले मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यकों से जनसंख्या पर नियंत्रण के लिए परिवार नियोजन उपायों को अपनाने की सलाह दी थी। सरकार ने दूसरे धर्म (मुसलिम लड़कों के साथ हिंदू युवतियों) में होने वाली शादियों को रोकने के लिए लव जिहाद की तर्ज पर भी एक क़ानून बनाया है।

राज्य में चलने वाले मदरसे भी सरकार का कोपभाजन रहे हैं। मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने हाल में कहा था कि हमने एक एसओपी बनाई है। अगर राज्य के बाहर से कोई नया इमाम किसी गाँव में आता है, तो स्थानीय ग्रामीण इसकी सूचना स्थानीय पुलिस स्टेशन को देंगे। उसके बाद पुलिस उस व्यक्ति की पहचान की पुष्टि करेगी। इस काम के लिए एक सरकारी पोर्टल बनाया जाएगा, जिस पर इमामों और मदरसा शिक्षकों को अपना पंजीकरण कराना होगा।

सरकार जिहादी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में कई मदरसों पर बुलडोजर भी चला चुकी है। सरकार ने हाल ही में प्रदेश में चल रहे क़रीब 700 सरकारी मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदल दिया था।

ताजा मामला

असम के ग्वालपाड़ा जिले में मुसलिम समुदाय से जुड़े मिया संग्रहालय के उद्घाटन और फिर सील करने वाले मामले ने राज्य की सियासत में उबाल ला दिया है। इसका उद्घाटन रविवार को किया गया था लेकिन मंगलवार को ही इसे सील कर दिया गया। असम मिया परिषद के अध्यक्ष मोहर अली ने पीएमएवाई के तहत उन्हें आवंटित घर के परिसर में संग्रहालय की स्थापना की थी। पीएमएवाई के तहत आवंटित घर में संग्रहालय के खुलने से विवाद पैदा हो गया और भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इसे तत्काल बंद करने की मांग की। बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के सदस्य अब्दुर रहीम जिब्रान ने घर में संग्रहालय बनाए जाने के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई थी। खेती और मछली पकड़ने में काम आने वाले कुछ औजारों और लुंगी आदि को संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया था। अली ने दावा किया कि ये वस्तुएं 'मिया' समुदाय की पहचान हैं। लेकिन संग्रहालय को सील करने के बाद पुलिस ने उनको हिरासत में ले लिया है।

इससे पहले मुख्यमंत्री ने कहा था कि ‘मिया’ समुदाय के कुछ सदस्यों की ऐसी गतिविधियों से असमिया पहचान के लिए ख़तरा पैदा हो गया है। उनका सवाल था कि वे (मिया समुदाय) कैसे दावा कर सकते हैं कि हल उनकी पहचान है? राज्य के सभी किसान सदियों से इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। केवल लुंगी पर वे अपना दावा कर सकते हैं। हिमंत ने कहा कि मिया संग्रहालय में जो कुछ भी प्रदर्शित किए गए थे वे दरअसल असमिया संस्कृति से संबंधित हैं।

पुलिस का दावा है कि इस संग्रहालय के तार अल-क़ायदा से जुड़े हैं। इस मामले में अब तक पाँच लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।

दूसरी ओर दक्षिणी असम में करीमगंज उत्तर के कांग्रेस विधायक कमलाख्या डे पुरकायस्थ इस संग्रहालय का समर्थन करते हैं। उनका कहना है कि असम में मतदान करने वाले बंगालियों की संस्कृति और पहचान को संरक्षित करना ज़रूरी है। पूर्व कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद ने पहले गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में मिया संग्रहालय स्थापित करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन मुख्यमंत्री ने उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था।

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