असम में चार साल पहले बीजेपी सत्ता में आई। तभी से लगातार बीजेपी सरकार और संघ परिवार की तरफ से सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने वालों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करवाने और विरोध की आवाज़ को खामोश करने का सिलसिला चल रहा है।
पिछले साल जब राज्य में नागरिकता संशोधन कानून के ख़िलाफ़ प्रबल जन आंदोलन शुरू हुआ तो इस आंदोलन के समर्थन में पोस्ट लिखने वालों को खास तौर पर निशाना बनाया गया और कई लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। इसमें गौर करने की बात यह भी है कि जिस आईटी एक्ट को सुप्रीम कोर्ट द्वारा निरस्त किया जा चुका है, उसके तहत भी मामले दर्ज होते रहे।
सरकार का तुग़लकी फ़रमान
जब सीएए विरोधी आंदोलन में सरकारी कर्मचारी भी शामिल होने लगे तब 24 दिसंबर, 2019 को एक आधिकारिक निर्देश पत्र जारी कर सरकार ने कर्मचारियों को सोशल मीडिया पर राजनीतिक स्टैंड न लेने के प्रति आगाह किया। राज्य के प्रारंभिक शिक्षा विभाग द्वारा जारी किए गए पत्र में कर्मचारियों को चेतावनी दी गई थी कि फेसबुक, ट्विटर, वॉट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर "राजनीतिक गतिविधियों में लिप्त और भाग लेने वाले" के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
26 दिसंबर को असम के जोरहाट जिले में एक सरकारी स्कूल के शिक्षक को सीएए विरोधी आंदोलन में कथित रूप से भाग लेने के आरोप में निलंबित कर दिया गया।
सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान सरकार ने नौ दिनों तक इंटरनेट सेवा को बंद रखा। फिर 23 दिसंबर को वित्त मंत्री हिमंता विश्व शर्मा ने सरकार के विरोधियों को चेतावनी देने के लिए पत्रकार सम्मेलन आयोजित किया। इसमें उन्होंने कहा था, "सीएए से संबंधित हिंसा को भड़काने के लिए जो 206 सोशल मीडिया पोस्ट जिम्मेदार हैं, इनमें से तीन उत्तेजक और आपत्तिजनक पोस्ट संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में बनाई गई हैं।" उन्होंने कहा कि सीएए को लेकर असम में हुई हिंसा के पीछे सोशल मीडिया की बड़ी भूमिका रही है।
शर्मा ने आगे बताया था कि असम पुलिस ने भड़काऊ और आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए 28 मामले दर्ज किए हैं और सीएए के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने के लिए दस लोगों को गिरफ्तार किया है। उन्होंने कहा कि 9 दिसंबर को राज्य में कानून और व्यवस्था की खराब स्थिति के लिए 206 सोशल मीडिया पोस्ट जिम्मेदार थीं।
शर्मा ने कहा था, “हमारी सरकार लोकतांत्रिक रूप से किए जाने वाले विरोध का सम्मान करती है। भड़काऊ और आपत्तिजनक सोशल मीडिया पोस्ट के 28 मामलों में दस लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से पांच को जमानत पर रिहा कर दिया गया है और बाकी पांच को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है।"
उन्होंने कहा था, "इसके अलावा, हमने 23 नाबालिगों के माता-पिता को भी बुलाया है जिन्होंने सोशल मीडिया पर इस तरह के संदेश पोस्ट किए हैं और उन्हें भविष्य में ऐसी गतिविधियों से दूर रखने के लिए उचित परामर्श के बाद जाने दिया गया।"
प्रोफेसर के ख़िलाफ़ एफ़आईआर
अब एक ताजा मामले में असम विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में सहायक प्रोफेसर अनिंद्य सेन के ख़िलाफ़ भगवान राम पर "अपमानजनक टिप्पणी" करने को लेकर एक प्राथमिकी दर्ज की गई है। प्राथमिकी में कहा गया है कि वह लगातार ऐसी अपमानजनक पोस्ट करते हैं जो हिंदू धर्म को बदनाम करती हैं और देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री जैसे संवैधानिक पदों का भी इस वजह से अपमान होता है।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्राथमिकी के आधार पर सेन के ख़िलाफ़ धारा 295 ए, 294 और 501 के तहत मामला दर्ज किया गया है। प्राथमिकी दर्ज करवाने वाले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्य रोहित चंदा के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है- "हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करना और धार्मिक भावनाओं को आहत करना सिलचर में एक फैशन बन गया है।"
चंदा ने कहा, “सरकार और सरकारी अधिकारियों की आलोचना करते-करते अब वे धर्म को बदनाम करने लगे हैं। एक प्रतिष्ठित संस्थान का प्रोफेसर होने के नाते जब वे इस तरह के विचारों का प्रचार करते हैं, तो अन्य लोग इसका अनुसरण करना शुरू कर देते हैं।’’
रोहित चंदा ने कहा कि उदाहरण के तौर पर हमने हाल ही में देखा कि एक स्कूल के छात्र ने फेसबुक पर गोमांस की खपत को प्रचारित किया। उन्होंने कहा, ‘हमने प्रोफेसर सेन के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कराई है क्योंकि हमारा मानना है कि ऐसा करना उन लोगों के लिए ज़रूरी है, जो धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर चोट पहुंचाने के लिए भड़काऊ टिप्पणी पोस्ट करते रहते हैं।"
प्रोफेसर सेन ने जताया खेद
रिपोर्ट में प्रोफेसर सेन के हवाले से लिखा गया है कि, “श्री राम चंद्र का अपमान करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। रामायण के विभिन्न संस्करण हैं और उनमें से कई में यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि श्री राम चंद्र ने वाल्मीकि के आश्रम में अपनी पत्नी को छोड़ दिया था। इस कृत्य के लिए श्री राम चंद्र की कई लोगों द्वारा आलोचना की गई और उसको लिखा भी गया। मैंने सिर्फ उस आलोचना को साझा किया था। अगर ऐसा करने से मैंने अनजाने में किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाई है तो मैं उसके लिए खेद व्यक्त करना चाहूंगा।"
चुप कराने की कोशिश
इस देश में जब तक संविधान जीवित है, लोकतंत्र जीवित है, तब तक हर किसी को अपना विचार व्यक्त करने का अधिकार है, भले ही वर्तमान समय के बहुसंख्यवाद के नजरिए को इस तरह के विचार खटक सकते हैं। अनिंद्य सेन पर हमला करने वाली कई टिप्पणियां असंवेदनशील, उत्तेजक और धमकी देने वाली हैं। ये धमकियां जो किसी खास विचारधारा के ख़िलाफ़ जाने वाली किसी भी आवाज़ को चुप कराने की कोशिश करती हैं, ऐसा होना हाल के दिनों में एक आम बात बन गई है।
‘धार्मिक भावनाओं का आहत होना’ एक सामान्य बहाना बन गया है जिसका उपयोग दमन के हथियार के रूप में किया जा रहा है और जिसके तहत संगठित हिंसा पनप रही है।