एआईएमआईएम के सदर असदउद्दीन ओवैसी उत्तर प्रदेश के तीन दिन के दौरे पर आ रहे हैं। ओवैसी उत्तर प्रदेश में 100 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुके हैं और बीते महीनों में हुए उनके सियासी दौरों में अच्छी संख्या में लोग उमड़े हैं।
ओवैसी का यह दौरा 7 सितंबर को शुरू होगा और सुल्तानपुर, बाराबंकी होते हुए वह लखनऊ भी जाएंगे। हैदराबाद से सांसद ओवैसी के दौरे की सबसे बड़ी बात यह है कि वे अयोध्या जिले में भी जाएंगे।
वही अयोध्या, जहां राम मंदिर का निर्माण हो रहा है, जहां से बीजेपी 2022 के चुनाव प्रचार का आगाज़ करने की तैयारी कर रही है और ऐसी भी ख़बरें हैं कि ख़ुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यहां से चुनाव लड़ सकते हैं।
ओवैसी इस दौरे में पार्टी संगठन और कार्यकर्ताओं में जोश भरने का काम करेंगे। ओवैसी का कहना है कि योगी आदित्यनाथ की हुक़ूमत को हराना ही उनका लक्ष्य है।
ओवैसी हैदराबाद से बाहर अपना सियासी वज़ूद बनाना चाहते हैं। लंबे वक़्त तक वे हैदराबाद की चार मीनार से आगे नहीं बढ़ पाए थे लेकिन बीते कुछ सालों में उन्होंने कई राज्यों में सियासी पंख फैलाए हैं और बिहार में तो उनकी पार्टी के 5 विधायक विधानसभा में पहुंचने में कामयाब रहे हैं।
ओवैसी का फ़ोकस
ओवैसी उत्तर प्रदेश में अपनी तकरीरों में मुसलमानों के साथ नाइंसाफ़ी होने, सेक्युलर दलों के द्वारा उनका राजनीतिक इस्तेमाल होने और मुसलमानों को उनकी सियासी भागीदारी न मिलने की बात को बार-बार कहते हैं। वह राज्य के अंदर मुसलमानों की लीडरशिप खड़ी करना चाहते हैं, इसके साथ ही वह दलितों और वंचित समाज की लड़ाई लड़ने की बात भी करते हैं।
राजभर के साथ आएंगे
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से मुलाक़ात करने के बाद ओवैसी और राजभर के रिश्तों में खटास आई थी। लेकिन बीते दिनों ये नेता फिर से साथ दिखाई दिए हैं। ओवैसी राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा के साथ मिलकर चुनाव लड़े तो कुछ हलचल पैदा कर सकते हैं। राजभर ने भागीदारी संकल्प मोर्चा के तहत 10 दलों को जोड़ा है।
बीजेपी की बी टीम?
ओवैसी के उत्तर प्रदेश में आने से कांग्रेस, एसपी और बीएसपी परेशान हैं। क्योंकि इन दलों को मुसलिम मतों का एक बड़ा हिस्सा मिलता था लेकिन इन्हें डर है कि कहीं ओवैसी उनके सियासी समीकरण न बिगाड़ दें। इन्हें यह भी डर है कि ओवैसी के आने से कहीं हिंदू मतों का ध्रुवीकरण हो गया तो बीजेपी को तो इससे फ़ायदा होगा ही, उनका सियासी वजूद भी ख़तरे में पड़ जाएगा। इसीलिए कांग्रेस और एसपी ओवैसी को बीजेपी की बी टीम बताते हैं।
ओवैसी-राजभर सहित भागीदारी संकल्प मोर्चा के कुछ और छोटे दल मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो इन्हें नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। ओमप्रकाश राजभर जहां अति पिछड़ों की लड़ाई प्रमुखता से लड़ते हैं, वहीं ओवैसी के साथ उत्तर प्रदेश के मुसलिम वोटर जुड़ सकते हैं।