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सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद दिल्ली सरकार ने सेवा सचिव को हटाया

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद दिल्ली सरकार ने सेवा सचिव को हटाया

क्या अब पहले से नियुक्त दिल्ली में अधिकारियों को धड़ाधड़ा हटाया जाएगा? जानिए, दिल्ली सरकार के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद ही केजरीवाल सरकार ने क्या कार्रवाई शुरू की है।

सेवाओं पर नियंत्रण के मुद्दे पर दिल्ली सरकार के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ घंटे बाद ही दिल्ली सरकार ने सेवा सचिव आशीष मोरे को हटा दिया। अब अनिल कुमार सिंह को नए सेवा सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज दिन में ही एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि उनकी सरकार पिछले आठ वर्षों से कई मुद्दों से जूझ रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि दिल्लीवासी अगले कुछ दिनों में बड़े पैमाने पर प्रशासनिक बदलाव देखेंगे।

दिल्ली के सेवा विभाग के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने आईएएस अधिकारी आशीष मोरे को सेवा सचिव के पद से हटाने का आदेश जारी किया। मोरे की जगह लेने वाले अनिल कुमार सिंह 1995 बैच के एजीएमयूटी कैडर के आईएएस अधिकारी हैं। सिंह ने पूर्व में अन्य पदों के साथ सीईओ, डीजेबी का प्रभार संभाला है।

सुप्रीम कोर्ट ने एक सर्वसम्मत फ़ैसले में कहा है कि दिल्ली सरकार के पास सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां हैं। अदालत ने कहा कि अगर अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देते हैं या उनके निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो सामूहिक जिम्मेदारी का सिद्धांत प्रभावित होता है। अगर अधिकारियों को लगता है कि वे सरकार के नियंत्रण से अछूते हैं, तो यह जवाबदेही को कम करेगा और शासन को प्रभावित करेगा।

सुनवाई के दौरान अपनी शुरुआती टिप्पणी में शीर्ष अदालत ने कहा कि वह न्यायमूर्ति भूषण के खंडित फैसले से सहमत नहीं है कि दिल्ली सरकार के पास सभी सेवाओं पर कोई शक्ति नहीं है। 

बता दें कि शीर्ष अदालत राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद पर अपना फ़ैसला सुना रही थी।

सुनवाई के दौरान पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार होने की ज़रूरत पर सवाल उठाया था। इसने यह बात तब कही थी जब केंद्र ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश संघ का एक विस्तार हैं, जो उन्हें प्रशासित करना चाहता है।

अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने फरवरी 2019 में राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं के संबंध में दिल्ली सरकार और केंद्र की शक्तियों पर खंडित फ़ैसला सुनाया था। इसके बाद यह तीन-न्यायाधीशों की पीठ के पास गया, जिसने मई 2022 में इस मुद्दे को संविधान पीठ को भेज दिया।

सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के तुरंत बाद एक संवाददाता सम्मेलन में केजरीवाल ने संकेत दिया कि सार्वजनिक कार्यों में बाधा डालने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा, 'सतर्कता अब हमारे पास होगी। ठीक से काम नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू की जा सकती है।'

केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने ट्वीट किया, 'निर्वाचित सरकार के पास अधिकारियों के तबादले-पोस्टिंग की शक्ति होगी। अधिकारी चुनी हुई सरकार के माध्यम से ही काम करेंगे।'

वर्षों से केजरीवाल ने अक्सर शिकायत की है कि वह एक चपरासी भी नियुक्त नहीं कर सके या किसी अधिकारी का स्थानांतरण नहीं कर सके। उन्होंने कहा था कि नौकरशाहों ने उनकी सरकार के आदेशों का पालन नहीं किया क्योंकि उनका नियंत्रक प्राधिकारी गृह मंत्रालय था।

आम आदमी पार्टी के विधायक और कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज ने ट्वीट किया है, 'ये जनता की जीत है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 8 साल तक दिल्ली की जनता की लड़ाई अदालत में लड़ी। और आज जनता जीत गई।'

राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट में लिखा, 'लंबे संघर्ष के बाद जीत, अरविंद केजरीवाल जी के जज्बे को नमन। दिल्ली की दो करोड़ जनता को बधाई। सत्यमेव जयते।'

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