बीजेपी क्यों चाहती है कि दिल्ली में कांग्रेस फिर से ज़िंदा हो?
दिल्ली में आम आदमी पार्टी सरकार रोज़ाना नयी-नयी घोषणाएँ कर रही है। मुफ़्त बिजली-पानी से लेकर महिलाओं की बसों की मुफ़्त सवारी, मुफ़्त तीर्थयात्रा, ऑटो-टैक्सी वालों, वकीलों और यूथ को आकर्षित करने के लिए फ़्री वाई-फ़ाई, महिला सुरक्षा के नाम पर बसों में सीसीटीवी कैमरे वगैरह-वगैरह। रोज़ाना इतना कुछ घोषित किया जा रहा है कि जनता के सामने सुविधाओं का पिटारा खुल गया है। हर कोई हैरान है कि आख़िर केजरीवाल की घोषणाओं की पोटली में और क्या-क्या है।
दरअसल, मई के लोकसभा चुनावों में सातों सीटों पर हारने और पाँच सीटों पर तीसरे नंबर पर पिछड़ने के बाद केजरीवाल को यह पता चल गया था कि अब दिल्ली चुनाव का एजेंडा तय करना होगा। उस वक़्त लोगों को लग रहा था कि केजरीवाल चूक गए हैं क्योंकि पीएम नरेंद्र मोदी ने जिस तरह पूरे विपक्ष को बुलडोज़ किया, उसके बाद कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। केजरीवाल को यह बात तभी समझ में आ गई थी कि अगर दिल्ली का चुनाव दिल्ली के मुद्दों पर हुआ, तभी आम आदमी पार्टी मुक़ाबले में नज़र आ सकती है वरना यह पार्टी इतिहास के पन्नों में सिमट जाएगी। हालाँकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि केजरीवाल अपनी योजना में सफल हो गए हैं या फिर उनकी कुर्सी बचना तय हो गया है लेकिन यह ज़रूर है कि केजरीवाल ने अगले चुनाव में अपनी तरफ़ से एजेंडा तय कर दिया है। अब यह बीजेपी पर निर्भर करता है कि वह इस एजेंडे को कैसे बदलती है।
मई के लोकसभा चुनावों में हार के बाद केजरीवाल और उनकी पार्टी के बाक़ी लोगों ने यह तर्क दिया था कि यहाँ मुक़ाबला मोदी वर्सेज राहुल था। इसलिए दिल्ली और केजरीवाल कहीं पीछे रह गए। उन्होंने यह दावा भी किया था कि लोगों ने हमसे कहा है कि दिल्ली में तो केजरीवाल को ही वापस लाएँगे। यहाँ तक कि मुसलिम वोटरों के कांग्रेस के पक्ष में जाने पर भी केजरीवाल एंड पार्टी ने यही जवाब दिया था कि विधानसभा चुनावों में ये सारे वोट हमारे पास लौट आएँगे। अब ये वोट केजरीवाल के पक्ष में तभी जा सकते हैं, जब केजरीवाल दिल्ली को यह विश्वास दिलाने में कामयाब हों कि मैंने आपके लिए बहुत काम किया है। अभी मुझे और भी बहुत काम करना है।
दिल्ली में केजरीवाल की वापसी इसी बात पर निर्भर करती है कि दिल्ली का चुनाव किस मुद्दे पर लड़ा जाता है। केजरीवाल ने जिस तरह धुँआधार सुविधाओं की घोषणाएँ की हैं, उन्हें यह लग रहा है कि दिल्ली का चुनाव दिल्ली की सुविधाओं के मुद्दे पर ही होना चाहिए।
केजरीवाल उसी सूरत में नंबर दो या तीन पर खिसकेंगे, अगर विधानसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव जैसा माहौल बन जाए यानी चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा जाए।
बीजेपी को भी यह अहसास तो है कि दिल्ली में चुनाव मोदी के नाम पर होगा, तभी जीतेंगे। इसीलिए दिल्ली के नेताओं को यह लग रहा था कि अयोध्या में मंदिर का निर्माण एक बहुत बड़ा मुद्दा होगा। ‘जय श्रीराम’ चल गया तो बस हो गया काम लेकिन दिल्ली में अभी अयोध्या में मंदिर के निर्माण का मुद्दा अंडर करंट के रूप में भी नज़र नहीं आ रहा। केंद्र सरकार ने दिल्ली की 1700 से ज़्यादा कॉलोनियों को पास करने का एक्ट संसद के दोनों सदनों में पास करा लिया है। अब यह क़ानून बनने जा रहा है और दिल्ली बीजेपी यह प्रचार कर रही है कि 16 दिसंबर से इन कॉलोनियों के रहने वालों को मालिकाना अधिकार देने के लिए रजिस्ट्री शुरू कर दी जाएगी। मगर, इस मुद्दे पर केजरीवाल सेंध लगाने की तैयारी में हैं। उन्होंने इन कॉलोनियों में किए गए विकास कार्यों के बड़े-बड़े विज्ञापन देकर यह दिखाने की कोशिश की है कि यह विकास और अनधिकृत कॉलोनियों का भविष्य मेरे कारण ही बदलने वाला है।
अयोध्या मुद्दा बनेगा?
बीजेपी की कामयाबी का मूल मंत्र यही होगा कि वह इन मुद्दों अयोध्या मंदिर और अनधिकृत कॉलोनियों को आख़िर दिल्ली के लोगों के मन में कितना उतार पाती है। अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा क़रीब 30 सीटों को प्रभाावित करता है जोकि दिल्ली की 70 सीटों में एक बहुत बड़ा हिस्सा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में इन कॉलोनियों के लोगों ने बीजेपी को वोट दिया था लेकिन 2015 में वे सभी आम आदमी पार्टी के साथ खड़े नज़र आए थे। पिछले लोकसभा चुनावों में इन कॉलोनियों के लोगों का वोट तीनों पार्टियों में बँटा है लेकिन कॉलोनियों की मंज़ूरी का श्रेय कौन ले जाता है, यह देखना बाक़ी है। जहाँ तक अयोध्या में मंदिर निर्माण की बात है तो अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए की गई कोई बड़ी कार्रवाई फिर से इस मुद्दे को सभी की ज़ुबान पर ला सकती है।
बीजेपी की परेशानी, कांग्रेस ज़िंदा नहीं?
बीजेपी के लिए परेशानी और चिंता की बात यह भी है कि कांग्रेस ज़िंदा नहीं हो पा रही। लोकसभा चुनावों में शीला दीक्षित ने चमत्कार करते हुए कांग्रेस को नंबर दो पर लाकर खड़ा किया था लेकिन यह कांग्रेस ही नहीं, बल्कि बीजेपी भी बदक़िस्मती है कि जब कांग्रेस के ज़िंदा होने की बात हो रही थी, शीला दीक्षित ही नहीं रहीं। उनके उत्तराधिकारी को चुनने में कांग्रेस ने इतना वक़्त लगा दिया कि कांग्रेस के लिए अब उम्मीदें नहीं बचीं।
अगर कांग्रेस का वोट बैंक नहीं बढ़ता तो फिर आम आदमी पार्टी का वोट बैंक कम नहीं होगा। इसलिए बीजेपी नेताओं की दिली इच्छा है कि किसी तरह दिल्ली में कांग्रेस अपने पाँवों पर खड़ी हो जाए तो बीजेपी को भी ताक़त मिले।
लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का वोट बैंक 22 फ़ीसदी था जबकि आम आदमी पार्टी का 18 फ़ीसदी। बीजेपी ने 56 फ़ीसदी वोट लिए थे। 2015 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का हिस्सा 32 और कांग्रेस का 9 फ़ीसदी था, जबकि आम आदमी पार्टी ने 54 फ़ीसदी वोट लिए थे। ज़ाहिर है कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत आप के लिए नुक़सान और बीजेपी के लिए फ़ायदेमंद होगा।
बीजेपी-कांग्रेस का प्रचार कमज़ोर
हैरानी की बात यह भी है कि बीजेपी और कांग्रेस का अब तक का प्रचार संगठित या फिर योजनाबद्ध नज़र नहीं आ रहा। उसके नेता केजरीवाल पर लगातार अटैक कर रहे हैं लेकिन होमवर्क कहीं नज़र नहीं आ रहा। बीजेपी तो अपनी गुटबाज़ी से ही नहीं उबर पा रही। मसलन, केजरीवाल ने घोषणा की कि 5 नवंबर तक दिल्ली की सारी सड़कों को दुरुस्त कर दिया जाएगा। दिल्ली की सड़कें अभी भी बुरी हालत में हैं लेकिन न तो कांग्रेस और न ही बीजेपी ने उन्हें इस मुद्दे पर घेरा। सीसीटीवी लगाने का एलान तो हुआ लेकिन अभी कितने सीसीटीवी लग चुके हैं या फिर उनमें से कितने चोरी हो गए हैं या ख़राब हो गए हैं- दोनों पार्टियों ने इस पर कोई काम नहीं किया।
बीजेपी की चूक?
केजरीवाल ने दिल्ली के प्रदूषण के लिए पराली को ज़िम्मेदार ठहरा दिया लेकिन अब फिर प्रदूषण बढ़ने लगा है जबकि केजरीवाल 16 नवंबर को ट्वीट करके यह एलान कर चुके हैं कि अब पराली जलनी बंद हो गई है। तो फिर अब प्रदूषण क्यों है और 25 फ़ीसदी प्रदूषण कम होने का दावा कहाँ गया? दिल्ली में सिर्फ़ 100 बसें लाने पर ही केजरीवाल ऐसे जश्न मना रहे हैं जैसे दिल्ली की बस की समस्या ही ख़ात्म हो गयी है जबकि पिछले पाँच सालों में डीटीसी के बेड़े में एक भी नई बस नहीं आई। न ही किसी पार्टी ने आप सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में क्रांति का रिएलटी चेक किया है। कहने का मतलब यह है कि बीजेपी अयोध्या में मंदिर और अनधिकृत कॉलोनियों के मुद्दे पर ही नैया पार लगाने की उम्मीद लगाए बैठी है। 22 दिसंबर को दिल्ली में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली भी होने जा रही है। हो सकता है कि उसके बाद बीजेपी के प्रचार में कोई जान आए। फ़िलहाल तो केजरीवाल अपनी रोज़-रोज़ की घोषणाओं से दिल्ली को आकर्षित कर रहे हैं और विपक्षी दलों में बेचैनी पैदा कर रहे हैं।