वित्त मंत्री और किसी समय बीजेपी के दिग्गज़ नेता रहे अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर कहा है कि वह स्वास्थ्य कारणों से उनकी सरकार में फ़िलहाल शामिल नहीं होंगे। उनका यह फ़ैसला ऐसे समय आया है जब मोदी सरकार को अर्थव्यवस्था के जानकार और कड़े फ़ैसले लेने वाले ऐसे आदमी की ज़रूरत है, जो हर हाल में डावाँडोल अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला सके। इस ख़त के साथ यह सवाल भी उठने लगा है कि जेटली की जगह कौन लेगा।
अगली सरकार 30 मई को शपथ लेगी। जेटली राज्यसभा सदस्य हैं और वह तकनीकी रूप से मंत्री बन सकते हैं। पर उन्होंने फ़िलहाल किसी तरह के सरकारी कामकाज से ख़ुद को दूर रखने का फ़ैसला किया है। मोदी को लिखे ख़त में उन्होंने कहा है कि वह पिछले 18 महीनों से बुरी तरह बीमार रहे हैं, चिकित्सा कराने और डॉक्टरों की सलाह से वह संकट से कुछ हद तक बाहर निकलने में कामयाब रहे हैं। पर वह चाहते हैं कि अभी कुछ समय ख़ुद को दें, अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें, इसलिए उन्हें सरकार में शामिल न किया जाए। उन्होंने यह भी कहा है कि वह अनौपचारिक रूप से सरकार का कामकाज थोड़ा बहुत कर सकते हैं, पर किसी तरह की ज़िम्मेदारी उठाने की स्थिति में नहीं हैं।
मालूम हो, जेटली लंबे समय से बीमार हैं और उन्होंने देश में लंबे इलाज के बाद अमेरिका में भी अपनी चिकित्सा कराई है। वहाँ उन्हें काफ़ी राहत मिली, पर उन्हें स्वस्थ्य नहीं कहा जा सकता है।
जेटली की जगह कौन?
अरुण जेटली की जगह कौन लेगा, यह अभी साफ़ नहीं है और तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि अर्थव्यवस्था बुरी स्थिति में है। चुनाव जीतने और सरकार गठित करने के बाद अब पूरा ध्यान अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने पर ही होगा। ऐसे में रेल मंत्री पीयूष गोयल या पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को वित्त मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी जा सकती है। यह भी मुमकिन है कि मोदी किसी अर्थशास्त्री को यह काम सौंपें।जीएसटी
वकील से राजनेता बने अरुण जेटली मोदी सरकार को विपदा से बाहर निकालने वाले शख़्स के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने कई बार कई गंभीर मुद्दों पर सरकार का बचाव ज़बरदस्त ढंग से किया है और विपक्ष को सदन में और उसके बाहर क़रारा जवाब दिया है। यह अरुण जेटली ही हैं, जिन्होंने लगभग दो दशकों से ठंडे बस्ते में पड़े गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स यानी जीएसटी को लंबे जद्दोजहद के बाद संसद से पारित करवाया। यह वह विवादास्पद मुद्दा है, जिस पर ख़ुद उनकी पार्टी एकमत नहीं थी, विपक्षा उसके ख़िलाफ़ था और अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग राय थी। पर जेटली ने इस मुद्दे पर लगभग एकमत कायम करवा लिया। हालाँकि हड़बड़ी में और बग़ैर पूरी तैयारी के उसे लागू करने का आरोप सरकार पर लगा था, पर वित्त मंत्री यह समझाने मे कामयाब रहे कि इसका कोई विकल्प नहीं है। जेटली जीएसटी लागू करवाने वाले वित्त मंत्री के रूप में याद किए जाएँगे।जेटली मोदी सरकार में वित्त के अलावा रक्षा और सूचना व प्रसारण मंत्रालय का कामकाज भी संभाल चुके हैं।