सरकार ने शनिवार शाम को एक महत्वपूर्ण घोषणा की, जिसमें 1985 बैच के पंजाब काडर के आईएएस अरुण गोयल को केंद्रीय चुनाव आयोग में चुनाव आयुक्त नियुक्त कर दिया गया। वे मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और चुनाव आयुक्त अनूप चंद्र पांडे के साथ टीम में शामिल होंगे।
सुशील चंद्र इस साल मई में मुख्य चुनाव आयुक्त के पद से रिटायर हुए थे, जिसके बाद राजीव कुमार ने कार्यभार संभाला था।
अरुण गोयल की नियुक्ति के महत्व को इस तरह समझा जा सकता है कि रिटायरमेंट से 6 हफ्ता पहले इस नौकरशाह ने शुक्रवार 18 नवंबर को अचानक वीआरएस ले लिया। किसी को इस बात की भनक नहीं लगी कि इस ब्यूरोक्रेट ने रिटायरमेंट से सिर्फ 6 हफ्ते पहले क्यों वीआरएस ले लिया। अरुण गोयल इस समय भारी उद्योग मंत्रालय में सचिव थे। लेकिन सरकार ने शुक्रवार को ही उनका वीआरएस मंजूर करते हुए उनकी जगह आईएएस कामरान रिजवी को सचिव नियुक्त कर दिया।
सरकार किस तरह अपने कदम उठाती है, उसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कामरान रिजवी को केंद्र सरकार ने भारी उद्योग मंत्रालय में 19 अक्टूबर को ओएसडी नियुक्त किया था। कामरान के तबादला आदेश में लिखा था कि वो अरुण गोयल के 31 दिसंबर 2022 तक रिटायर होने के समय तक ओएसडी बने रहेंगे। यानी सरकार 31 दिसंबर को कामरान रिजवी को सचिव हैवी इंडस्ट्रीज बनाने वाली थी। लेकिन बीच में क्या होने वाला है, इसे सिर्फ अरुण गोयल और पीएमओ जानता था।
अभी जब कल शुक्रवार को अरुण गोयल ने वीआरएस का आवेदन किया और फौरन मंजूर कर लिया गया तब तक भी ब्यूरोक्रेट्स सर्कल में किसी को अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने की भनक नहीं थी। शुक्रवार को केंद्र सरकार ने जब उनका वीआरएस मंजूर किया तो कुछ ब्यूरोक्रेट्स ने अंदाजा लगाया था कि शायद अरुण गोयल को पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कोई पेशकश की है, क्योंकि वो पंजाब काडर से ही हैं। लेकिन पूरी नौकरशाही के कयास धरे रह गए।
चुनाव आयोग विवादों में
टीएन शेषन ने भारत में चुनाव आयोग को जो महत्व दिलाया था, उनके जाने के बाद आयोग की संवैधानिक स्थिति विवादों में रही है। विपक्षी दल आरोप लगाते रहे हैं कि सरकार मुख्य चुनाव आयुक्त अपनी पसंद के लोगों को रख रही है। हाल ही में गुजरात कॉडर के अधिकारी जब चुनाव आयोग समेत कई संस्थाओं में लाए गए तो कांग्रेस ने बीजेपी पर इस तरह के आरोप लगाए। हालांकि कांग्रेसी कार्यकाल में भी कम नियुक्तियां ऐसी नहीं होती थीं।हाल ही में मौजूदा सीईसी राजीव कुमार उस समय विवाद में आ गए जब चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तारीख घोषित कर दी लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित नहीं कीं। इससे पहले हिमाचल-गुजरात की तारीखें एकसाथ घोषित होती रही हैं। इसी दौरान गुजरात में मोरबी हादसा हो गया और आयोग पर फिर से तारीख को आगे बढ़ाने का आरोप लगा। चुनाव आयोग पर महाराष्ट्र और झारखंड के मामले में वहां के राजनीतिक दलों ने तमाम आरोप लगाए हैं।