कृषि क़ानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के सदस्य अनिल घनवत ने कहा है कि अगर एमएसपी को लेकर क़ानून बनाया जाता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट का सामना करना पड़ेगा।
इस बीच किसानों ने एलान किया है कि वे एमएसपी को क़ानूनी गारंटी मिलने तक अपना आंदोलन जारी रखेंगे। लेकिन घनवत ने एएनआई से कहा, “अगर एमएसपी को लेकर क़ानून बनता है तो भारत को मुश्किलों का सामना करना होगा। अभी हम केवल गेहूं और चावल ख़रीद रहे हैं लेकिन अगर एमएसपी को लेकर क़ानून बन जाता है तो सारे किसान कहेंगे कि उनकी भी फसल ख़रीदी जाए। ऐसे में सरकार कैसे सारी फ़सलों को खरीदेगी।” घनवत ने कहा है कि सरकार के पास इतना पैसा नहीं है कि वह सारी फसलों को ख़रीद ले।
शेतकरी संगठन के अध्यक्ष घनवत ने कहा है कि केंद्र सरकार और किसान नेताओं को सोचकर कोई रास्ता निकालना चाहिए कि किस तरह किसानों की आय बढ़े और एमएसपी पर क़ानून बनाना कोई समाधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि किसान पिछले 40 साल से सुधारों की मांग कर रहे थे और आंदोलन के बाद सरकार द्वारा कृषि क़ानूनों को वापस लेना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है।
क़ानून वापस लेने का फ़ैसला राजनीतिक
कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने के एलान के बाद अनिल घनवत ने कहा था, 'सुप्रीम कोर्ट में हमारी सिफारिशें प्रस्तुत करने के बावजूद अब ऐसा लगता है कि इस सरकार ने इसे पढ़ा भी नहीं है। कृषि क़ानूनों को रद्द करने का निर्णय विशुद्ध रूप से राजनीतिक है, जिसका उद्देश्य आने वाले महीनों में उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनाव में जीत हासिल करना है।'
प्रधानमंत्री ने कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने की अपनी घोषणा के दौरान यह भी कहा था कि एमएसपी को और अधिक प्रभावी बनाने सहित खेती-किसानी से जुड़े कई और मसलों पर फ़ैसले लेने के लिए सरकार एक कमेटी का गठन करेगी। किसानों का कहना है कि एमएसपी को लेकर क़ानूनी गारंटी लिए बिना वे पीछे नहीं हटेंगे।
सवाल यह है कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के जोरदार आंदोलन के सामने पीछे हटी मोदी सरकार क्या किसानों की एमएसपी की मांग को भी मानेगी।