क्या आरएसएस और बीजेपी नर्वस हैं? क्या उन्हें इस बात का भरोसा नहीं है कि मोदी सरकार 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर बहुमत का आँकड़ा पा पायेगी या सरकार बनाने में कामयाब होगी? क्या मोदी जी का करिश्मा चुक गया? क्या वो अब वोट बटोरवा नेता नहीं रहे? क्या उनके दम पर अब बीजेपी चुनाव नहीं लड़ पायेगी? आप पूछ सकते हैं कि मैं ये सवाल क्यों उठा रहा हूँ। दरअसल एकबार फिर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने राममंदिर का मुद्दा बड़े ज़ोर शोर से उठाया। उन्होंने कहा कि राजनीति की वजह से मंदिर निर्माण नहीं हो रहा है। अनावश्यक देरी हो रही है। लेकिन सबसे बड़ी बात उन्होंने ये कही कि मंदिर निर्माण के लिये सरकार कानून बनाये!
आरएसएस की ओर से प्रचारित राम मंदिर का प्रस्तावित मॉडल।
चुनाव के मौक़े पर मंदिर निर्माण की बात क्यों?
आरएसएसस का कोई कार्यकर्ता अगर ये बात कहता तो इतनी तवज्जो देने की ज़रूरत नहीं पड़ती। पर संघ प्रमुख ये बात कहें तो उसे गंभीरता से लेना पड़ेगा। और ये प्रश्न उछलेगा कि ठीक चुनाव के मौक़े पर मंदिर निर्माण की बात क्यों ? बीजेपी की केंद्र में सरकार 2014 से है। बहुमत की सरकार है। अभी तक तो राममंदिर पर सब सोये पड़े थे। किसी को उसकी सुध नहीं थी। सबका साथ, सबका विकास का नारा बुलंद किया जा रहा था।
ऐसे में कोने में पड़े राम मंदिर को फिर झाड़ पोंछ कर क्यों मैदान में दुबारा उतारा जा रहा है? इसका सबब क्या है? यानी सरकार कानून बनाये राम मंदिर के लिये ये बात एक रणनीति के तहत और किसी बड़े लक्ष्य के लिये कही गई होगी। वो लक्ष्य क्या हो सकता है?
मोदी सरकार नाक़ाम?
अब ये स्पष्ट तौर पर कहा जा सकता है कि मोदी जी की सरकार एक नाकाम सरकार है। जितने बड़े बड़े वायदे किये गये वो नहीं पूरे हुये। न लोगों के खाते में 15 लाख गये और न ही 2 करोड़ लोगों को रोज़गार मिला। महंगाई का आलम ये है कि पेट्रोल 90 रूपये लीटर बिक रहा है। डीजल के दाम में भयानक बढ़ोत्तरी हुई है। रुपया डालर के मुक़ाबले गिरता जा रहा है। किसान आत्महत्या और आंदोलन कर रहे हैं! दलित सड़कों पर हैं। मुसलमान कभी भी इतना असुरक्षित नहीं रहा। आयात और निर्यात दोनों की हालत ख़राब है। नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापारियों की कमर तोड़ दी है। साफ है कि मोदी, सरकार के काम के नाम पर चुनाव में नहीं उतर सकते। उन्हें स्थूल की जगह भावनात्मक मुद्दे खोजने होंगे। और राम मंदिर का मुद्दा सबसे आसान मुद्दा है। पर क्या काठ की हांडी बार-बार चढ़ेगी?क्यों नहीं आये अच्छे दिन?
एक समय था जब मोदी के ख़िलाफ़ लोग एक शब्द सुनने को तैयार नहीं थे। लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते थे। पिछले एक साल में हवा बदली है। लोगों को लगा है कि बातें तो बड़ी -बड़ी हुयी पर आम जनता का भला नहीं हुआ। अच्छे दिन नहीं आये। उनकी हालत पहले से बदतर हो गई। वादे झूठे निकले। सरकार ने हर चीज़ के लिये कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया। पर लोग पूछ रहे हैं कि हमने आपको चुना था लिहाज़ा ये बताओ कि आप हमें क्या दे रहे हो? बहाना नहीं चलेगा। ठोस जवाब नहीं मिलने से लोगों का मोदी को लेकर मोहभंग हुआ है। उनका करिश्मा टूटा है। ओपिनियन पोल्स भी कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें घटेंगी। आँकड़ा बहुमत से काफी पीछे भी हो सकता है। इस स्थिति में मोदी पर दाँव कैसे लगाया जा सकता है?
जब न मोदी वोट दिला पायेंगे और न ही सरकार के कामकाज पर वोट पड़ेंगे तब इनसे इतर मुद्दा तो खोजना होगा। राम मंदिर पर सरकार कानून लाए, यह नया पैंतरा है राम के नाम पर लोगों को भ्रमित कर चुनाव जीतने का।
पहले ये उम्मीद की जा रही थी की अदालत दिसंबर तक कोई न कोई फ़ैसला सुना देगी। तब दीपक मिश्रा मुख्य न्यायाधीश थे। जिनके बारे में कहा जाता था कि वो संघ से सहानुभूति रखते थे। अब रंजन गोगोई हैं जिन्हें “रेबल जज” कहा जा सकता है । ऐसे में ये सवाल उठता है कि कही ये सुप्रीम कोर्ट पर दबाव डालने का प्रयास तो नहीं है?
संघ की भारतीय संविधान में आस्था नहीं
सबसे बडी बात ये है कि ये भारतीय संविधान व्यवस्था का उल्लंघन है? मेरा मानना है कि भागवत ने कानून बनाने की बात कर इस आरोप को सही साबित कर दिया है कि संघ की भारतीय संविधान में आस्था नहीं है। ये बात दूसरे संघ प्रमुख एम एस गोलवलकर ने अपनी किताब बंच आफ थाट में कही है कि संविधान का भारतीय संस्कृति से जुड़ाव नहीं है, ये विदेशी विचारों से प्रभावित है। लिहाज़ा इसमें बदलाव होना चाहिये। दीन दयाल उपाध्याय भी कमोवेश यही बात कहते हैं। राममंदिर पर संघ ये कह चुका है कि ये आस्था का मसला है और आस्था के मसले पर अदालत फ़ैसला नहीं कर सकती है। हालाँकि हाल में भागवत ने कहा है कि ये प्रचार ग़लत है कि संघ की आस्था संविधान में नहीं है। पर मौजूदा बयान ये भरोसा नहीं देता।जब मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो सरकार कानून कैसे ला सकती है? इसका साफ अर्थ होगा कि उसे कोर्ट के विवेक पर भरोसा नहीं है। वो उसे बायपास करना चाहती है। राजीव गांधी ने शाह बानो के मसले पर सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की और इसकी सजा देश ने लंबे समय तक भुगती। अब फिर वही ग़लती देश क्यों करे?