बालाकोट के शोर के बीच ग़रीबी को चुनावी मुद्दा बनाएँगे राहुल?

08:48 am Mar 07, 2019 | संजय राय - सत्य हिन्दी

क्या राहुल गाँधी भी अपनी दादी इंदिरा गाँधी की तरह समाजवाद की प्रत्यंचा चढ़ाकर अपने विरोधियों को पस्त करने की तैयारी कर रहे हैं? क्रोनि कैपिटलिज़्म, आदिवासियों का जल-जंगल-ज़मीन पर हक़, हर ग़रीब को एक न्यूनतम आमदनी, भारतीय राजनीति में ये शब्द मुख्यधारा की पार्टियों को छोड़ वामपंथी या यूँ कह लें कि समाजवादी विचारधारा की पार्टियाँ ही आमतौर पर इस्तेमाल करती रही हैं। लेकिन पिछले एक साल से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपने हर भाषण या सभाओं में इन शब्दों का प्रमुखता से इस्तेमाल कर रहे हैं। 

देश के धनाढ्य वर्ग, सामंतशाही और राजशाही पर इसी तरह का हमला इंदिरा गाँधी के दौर में हुआ था जब वह कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई से त्रस्त होकर अपनी नई कांग्रेस गढ़ने का प्रयास कर रही थीं। ग्लोबलाइजेशन के दौर की नीतियों की वजह से देश भर में किसानों की साल दर साल बदतर होती स्थिति, जीडीपी के आँकड़ों में वृद्धि लेकिन रोजगार में कमी, देश में तेज़ी से बढ़ती आय असमानता, जैसे सवाल क्या कांग्रेस को  समाजवादी नारों की तरफ़ धकेल रहे हैं या इंदिरा गाँधी की तरह किसी मजबूत क़दम उठाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं? 

कांग्रेस आज सत्ता में नहीं है लेकिन किसानों में आक्रोश और युवाओं में बेरोज़गारी के मुद्दे पर उसने हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में बीजेपी से सत्ता छीनी है। कांग्रेस क्या इसी मंत्र के सहारे देश की सत्ता में वापसी करने की तैयारी कर रही है?

1971 के चुनाव में इंदिरा गाँधी ने ‘ग़रीबी हटाओ’ का नारा दिया था। 1969 में जब कांग्रेस पार्टी टूटी तो लोकसभा में इंदिरा गाँधी के साथ मात्र 228 सांसद थे लेकिन उनके समाजवादी फ़ैसलों के चलते वामपंथी दलों ने उनकी सरकार का समर्थन जारी रखा। 

इंदिरा के नारे का हुआ असर

1971 के चुनाव प्रचार में इंदिरा गाँधी ने यह कहते हुए आमजन की हमदर्दी बटोरी, ‘वे कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं ग़रीबी हटाओ’। विरोधियों ने ग़रीबी हटाओ के जवाब में नारा दिया, ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल’। लेकिन विरोधियों का यह नारा काम नहीं आया। इसका जो सबसे बड़ा कारण रहा वह यह कि इंदिरा गाँधी ने उस नारे को देने से पहले राजा-महाराजाओं और बैंकों के मालिकों के ख़िलाफ़ कारवाई कर देश की ग़रीब जनता से एक नाता बना लिया था।

नारे की तलाश में कांग्रेस

राजा-महाराजाओं, सामंतों व धनाढ्य वर्ग के ख़िलाफ़ इससे पहले देश में ऐसी कारवाई नहीं हुई थी। पाँचवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने चुनाव में दो-तिहाई सीटें हासिल की। कांग्रेस ने 518 में से 352 सीटों पर विजय हासिल की थी। राहुल गाँधी और उनकी कांग्रेस भी क्या आज इसी तरह के नारे की तलाश कर रही है? 

दायरा बढ़ाने में जुटी पार्टी

किसानों की कर्जमाफ़ी के वादे पर राहुल गाँधी ने जब छत्तीसगढ़ में हुई आभार सभा में हर ग़रीब के लिए न्यूनतम आमदनी की बात कही तो कुछ ऐसे संकेत ज़रूर दिखे कि कांग्रेस अब किसानों, युवाओं के अलावा अपना दायरा देश के ग़रीब लोगों तक फैलाने का प्रयास कर रही है। तीन राज्यों के अलावा पंजाब में भी किसानों की कर्जमाफ़ी आज कांग्रेस के पास बोलने के लिए एक मॉडल के रूप में तैयार है और जनता उस पर विश्वास भी कर सकती है।

भूमंडलीकरण के इस दौर में सरकार की उद्योगपरक नीतियों के चलते देश में आय में विषमता की बहुत बड़ी खाई बन रही है और ये तेज़ी से बढ़ती जा रही है।

ऑक्सफ़ैम इंटरनेशनल की नई रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में 2018 में प्रतिदिन 2,200 करोड़ रुपये का इजाफ़ा हुआ है। इस दौरान, देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि 50 प्रतिशत ग़रीब आबादी की संपत्ति में महज तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 

इस रिपोर्ट पर ऑक्सफ़ैम इंटरनेशनल की कार्यकारी निदेशक विनी ब्यानिमा ने कहा भी कि 'नैतिक रूप से यह क्रूर' है कि भारत में जहाँ ग़रीब दो वक़्त की रोटी और बच्चों की दवाओं के लिए जूझ रहे हैं, वहीं कुछ अमीरों की संपत्ति लगातार बढ़ती जा रही है।

यदि एक प्रतिशत अमीरों और देश के अन्य लोगों की संपत्ति में यह अंतर बढ़ता गया तो इससे देश की सामाजिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी।


विनी ब्यानिमा, कार्यकारी निदेशक, ऑक्सफ़ैम इंटरनेशनल

शायद राहुल गाँधी और कांग्रेस ऑक्सफ़ैम की इसी रिपोर्ट के सहारे न्यूनतम आमदनी वाले अपने नए नारे को साधने का प्रयास भी करें? लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न्यूनतम आमदनी वाले बयान पर इंदिरा गाँधी के ग़रीबी हटाओ वाले नारे का तंज कसा है। लेकिन मोदी सरकार या उससे पूर्ववर्ती सरकार के आँकड़ों को देखें तो 1971 में ग़रीबी की दर 57 प्रतिशत थी।

इंदिरा के क़दमों का हुआ असर

इंदिरा गाँधी ने ग़रीबी हटाओ का नारा देकर कई योजनाएँ शुरू कीं। 1973 में श्रीमान कृषक एवं खेतिहर मजदूर एजेंसी व लघु कृषक विकास एजेंसी तथा 1975 में ग़रीबी उन्मूलन के लिए बीस सूत्रीय कार्यक्रम लागू किए। ये क़दम गाँव के लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और ग़रीबी घटाने के लिए प्रभावशाली साबित हुए। इससे 1977 में ग़रीबी दर 52 प्रतिशत और 1983 में 44 प्रतिशत हो गई। इसके बाद यह 1987 में 38.9 फीसदी तक आ गई। मौजूदा समय में ग़रीबी की दर लगभग 27.5 प्रतिशत ज़रूर है लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि ग़रीब घटे नहीं और देश में किसान ही नहीं हर मेहनतकश वर्ग परेशानी के दौर से गुजर रहा है।