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वरुण गांधी के गढ़ पीलीभीत में पहली बार प्रचार करने क्यों पहुँचे पीएम?

वरुण गांधी के गढ़ पीलीभीत में पहली बार प्रचार करने क्यों पहुँचे पीएम?

प्रधानमंत्री मोदी को आख़िर पीलीभीत जाकर प्रचार करने की ज़रूरत क्यों महसूस हुई? क्या वह एक सामान्य प्रचार अभियान के तहत गए या फिर वरुण गांधी का टिकट कटने की वजह से कुछ और संदेश देने के लिए?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को पहली बार चुनाव प्रचार करने पीलीभीत पहुँचे। इससे पहले वह इस क्षेत्र में कभी नहीं गए थे। न तो 2009 या 2014 में और न ही 2019 के चुनाव में। 2009 में मेनका गांधी की जगह पर पहली बार उनके बेटे वरुण गांधी को बीजेपी का टिकट दिया गया था। तो अब आख़िर क्या वजह है कि पीएम मोदी पीलीभीत को प्राथमिकता दे रहे हैं और चुनाव प्रचार करने पहुँच गए? क्या इसकी वजह पिछले कुछ वर्षों से पीएम पर हमलावर रहे वरुण गांधी का टिकट पीलीभीत से कटना है और अब किसी भी हालत में बीजेपी इस सीट को जीतकर एक संदेश देने की कोशिश कर रही है?

पीलीभीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार मंगलवार को चुनावी सभा को संबोधित किया, लेकिन जिले के सांसद वरुण गांधी नहीं पहुँचे। यह साफ़ नहीं है कि उनको कार्यक्रम में बुलाया नहीं गया या फिर उन्होंने वहाँ जाना पसंद नहीं किया। इससे पहले वह मुख्यमंत्री योगी के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में भी नहीं पहुंचे थे। भाजपा ने पीलीभीत सीट से वर्तमान सांसद वरुण गांधी का टिकट काटकर प्रदेश के पीडब्ल्यूडी मंत्री जितिन प्रसाद को मैदान में उतारा है।

22 मार्च को उम्मीदवारों की पांचवीं सूची में जितिन प्रसाद को पीलीभीत से मैदान में उतारने के फ़ैसले पर वरुण गांधी ने कहा था कि इस फैसले से उन्हें ठगा महसूस हुआ। इसके क़रीब हफ्ते भर बाद ही उन्होंने पीलीभीत की जनता के नाम एक भावुक ख़त लिखा था और उन्होंने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के साथ अपना भावनात्मक जुड़ाव बताया और कहा था कि वह बचपन से ही पीलीभीत से जुड़ गए थे। 

वरुण ने कहा था, 'मैं आम आदमी की आवाज़ उठाने के लिए राजनीति में आया हूँ और आज मैं आपका आशीर्वाद चाहता हूं कि मैं हमेशा यह काम करता रहूँ, चाहे इसकी कोई भी कीमत चुकानी पड़े। मेरा और पीलीभीत का रिश्ता प्यार और विश्वास का है, जो किसी भी रिश्ते और राजनीतिक जोड़-घटाव से कहीं ऊपर है।'

पिछले कुछ सालों से बीजेपी की नीतियों की कड़ी आलोचना करते रहने वाले बीजेपी सांसद वरुण ने कहा था, 'आज जब मैं यह पत्र लिख रहा हूं तो अनगिनत यादों ने मुझे भावुक कर दिया है। मुझे वह 3 साल का छोटा बच्चा याद है जो 1983 में अपनी मां की उंगली पकड़कर पहली बार पीलीभीत आया था, उसे क्या पता था कि एक दिन ऐसा होगा कि यही भूमि उसका कार्यस्थली बन जाएगी और यहां के लोग उनका परिवार बन जाएंगे।'

वैसे तो काफी पहले से ही वरुण के टिकट कटने के कयास लगाए जा रहे थे। ऐसा इसलिए कि वरुण बीजेपी सांसद होते हुए भी पीएम मोदी की नीतियों की कड़ी आलोचना करते रहे थे। वह बेरोजगारी से लेकर गंगा की सफाई, अग्निवीर योजना तक के मुद्दे पर मोदी सरकार पर हमला करते रहे।

पिछले साल नवंबर में पीलीभीत में हुए एक जनसंवाद कार्यक्रम में वरुण ने भाजपा सरकार पर बेरोजगारी को लेकर जमकर तंज कसा था। उन्होंने शायराना अंदाज में कहा था कि, 'तेरी मोहब्बत में हो गए फना, मांगी थी नौकरी मिला आटा, दाल और चना।' इस शेर के जरिये उन्होंने कहना चाहा कि गरीबों को मुफ्त में मिल रहे राशन देने की जगह रोजगार देना चाहिए था। उन्होंने कहा कि आज बेरोजगारी काफी बढ़ चुकी है। वरुण ने आरोप लगाया था कि चुनाव जीतने के लिए यह सब किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाए थे कि उत्तर प्रदेश में बीतें पांच वर्ष में निजीकरण के कारण 18 लाख लोग नौकरियों से हटाए गए हैं। 

पीएम मोदी ने जब 2014 में वाराणसी से लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने को लेकर कहा था कि 'मुझे गंगा मैया ने बुलाया है' तो गंगा की सफाई और स्वच्छता को लेकर बड़ी उम्मीदें जगी थीं। लेकिन क्या ऐसा हुआ? मोदी सरकार ने 'नमामि गंगे' परियोजना शुरू भी की। लेकिन वरुण गांधी ने 2022 में गंगा में गंदे पानी के कारण मछलियों के मरने का एक वीडियो साझा करते हुए 'नमामि गंगे' परियोजना पर सवाल उठाए थे। उन्होंने पूछा था कि नमामि गंगे पर 20,000 करोड़ का बजट बना। 11,000 करोड़ खर्च के बावजूद प्रदूषण क्यों? 

इसी तरह उन्होंने अग्निवीर योजना की भी आलोचना की थी। उन्होंने केंद्र सरकार की अग्निवीर योजना की आलोचना करते हुए कहा कि आज आर्मी में योद्धा बनने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता है। अग्निवीरों से 5 वर्ष सेवा लेने के बाद उनको निकाला जायेगा। अब जरा सोचें गांव लौटने के बाद जब उनके पास गांव में कोई काम नहीं होगा तब वे क्या करेंगे। उन्होंने पूछा कि क्या यह सेना का अपमान नहीं है?

बहरहाल, अब वरुण गांधी पीलीभीत से बीजेपी के उम्मीदवार नहीं हैं। अभी तक वह बीजेपी में ही बने हुए हैं। उनका अगला क़दम क्या होगा, यह भी उन्होंने साफ़ नहीं किया है।

कई रिपोर्टों में कयास लगाए गए हैं कि वह विपक्षी इंडिया गठबंधन के दलों की ओर से चुनाव लड़ सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो वह किस सीट से चुनाव लड़ेंगे? क्या पीलीभीत से ही या फिर किसी अन्य सीट से?

2009 के आम चुनाव में बीजेपी ने वरुण गांधी को उनकी माँ मेनका गांधी के बजाय पीलीभीत निर्वाचन क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाने का फ़ैसला किया था। उन्होंने 4 लाख 19 हज़ार वोट हासिल किए थे और 2 लाख 81 हज़ार मतों से जीत हासिल की थी। 2014 में भी उन्होंने वहाँ से बड़ी जीत दर्ज की थी। उन्होंने 2019 के आम चुनावों में पीलीभीत लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और वह लगभग ढाई लाख वोटों से जीतकर लगातार तीसरी बार सांसद बने। 

तो क्या पीलीभीत वरुण गांधी का गढ़ है और उनके यहाँ से उम्मीदवार होने से उनके सामने खड़े उम्मीदवार के लिए काफी कड़ा मुक़ाबला होने की संभावना है? और यदि ऐसा है तो फिर बीजेपी ने वरुण गांधी को पार्टी से टिकट क्यों नहीं दिया? आख़िर जितिन प्रसाद को टिकट देकर और जीतने के लिए पूरा जोर लगाकर बीजेपी क्या संदेश देना चाहती है? क्या यह कि वरुण गांधी की पीलीभीत में जो औक़ात है वह बीजेपी की वजह से है? क्या यह संदेश पूरे गांधी-नेहरू परिवार के लिए भी इसी तरह देने की कोशिश है? आख़िर पीएम मोदी पीलीभीत में प्रचार करने क्यों पहुँचे!

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